अंधविश्वास~
आंख मूंद कर किया जाने वाला विश्वास ही अंधविश्वास है । तर्क से परे होकर किसी भी व्यवस्था और विचार को स्वीकारना और उसका अनुकरण करना ही अंधविश्वास है । यहां व्यवस्था और वो विचार किसी भी देश या समाज मे अधिव्याप्त हो सकता है । जाहिर है जिस समाज मे वास्तविक शिक्षा नही होगी वहां का समाज और वहां की व्यवस्था उतने ही प्रकार के अंधविश्वासों को मानने वाली भी होगी ।
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यह विडम्बना ही है कि बाइबिल क़ुरआन और गीता की कसमें खाकर भय से सच बोलने वाला यह समाज इन धर्मशास्त्रों में निहित उस संदेश को समझने में असक्षम है जहां पर भय को समाप्त करने वाला ज्ञान छिपा हुआ है । झाड़ फूंक, टोना टोटका और ना जाने कितने बेसिर पैर के करतब और कारनामे दिखाकर उनपर विश्वास दिलाकर एक व्यापक जन समूह को अंधेरे में ना सिर्फ रखा जाता है बल्कि उस अंधविश्वास के साये में वो अपनी तमाम जिंदगी गुजारने को अभिशप्त भी है ।
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हम देखते आये हैं, हमने देखा है कि अपनी तमाम परेशानियों को खत्म करने के लिए कर्ज लेकर खरीदते बेजुबान जानवरों को और उनकी बलि देती आयी उस भोली अवाम को भी। जिसे ये अंधविश्वास है कि उसके इस कृत्य से उसकी तमाम परेशानियों का हल निकल ही आएगा । हमने देखा है अंधविश्वास के साये में पलती हुई उन बेबस, और बेचारी निरीह नारी की नारकीय स्थिति को । जिन्हें सामाजिक अंधविश्वासों और ढकोसलों ने तमाम उम्र के लिए पर्दों में ढाँप दिया । अंधविश्वास की ख़ुराक जहां अज्ञान है तो इसकी मार सबसे अधिक पड़ती है समाज के उन कमजोर तबकों पर जो हाशिये पर है । गरीबी , अशिक्षा ,बेरोजगारी में तो इनकी विषबेले फैली ही हैं , साथ ही शिक्षित और विकसित समाज भी इससे अछूते नहीं हैं । जाहिर है कि ये समाज का वो कोढ़ है जो किसी भी कोरोना से कमतर नहीं है ।
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धर्म की व्यवस्था और उसके व्यवस्थाकारों ने इसका निर्माण मानव मात्र की बेहतरी के लिए ही किया था । धार्मिक अनुष्ठान और उनकी पद्धतियों का एक विशेष अर्थ मानव और पर्यावरण के समेकित हित के लिए रहा है । पर हर धर्म के छद्म ठेकेदारों ने अपने स्वार्थी हितों के लिए जिस तरह से गलत व्याख्या करके अपने समाज को अंधविश्वास के कुएं में धकेला है उसका दुष्परिणाम वह समाज लंबे समय तक चुकाता रहा है और आगे भी चुकाता रहेगा ।आवश्यकता इस बात की है कि धर्मशास्त्रों में निहित प्रत्येक विधान के वैज्ञानिक महत्व को समझा जाये । धर्मयुद्ध और जेहाद के उस वास्तविक अर्थ से सरोकार किया जाए जिसका अर्थ है खुद के और आसपास के बुराइयों से लड़ना और उसका परिहार करना बजाय कि किसी अन्य विधि विधानों को मानने वालों से लड़ना और उनका परिहार करना ।
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एक नागरिक के तौर पर जिस तरह हम सरकारी विधानों का अपने और अपने समाज के हित के लिए जागरूक होकर पालन करते हैं । सड़क पर बाएं चलना,हेलमेट या सीट बेल्ट का प्रयोग पूरी जिम्मेदारी के साथ करना , पब्लिक प्लेस पर धूम्रपान नही करना हमारे भीतर की मानवीयता से ही आता है । ठीक उसी प्रकार धर्म और उसके विधि विधानों का अनुपालन भी जागरूक और सचेत होकर करना आपको सदैव अंधविश्वास से न सिर्फ सुरक्षित रखेगा बल्कि आपको विरासत में मिली धार्मिक संस्कृति के प्रति भी गर्वानुभूति दिलायेगा~