शायद हो...
इस जहां के पार एक दूसरा जहां ,
जहां ना हो कोई नफ़रतें ना शिकवे ना गिले,, जहां लोग एक दूसरे से हंस के मिले तो बस हँस के ही मिले ,, ऐसा एक जहाँ , जिसकी जमीं पर तानों के कांटे ना चुभते हो , ,हां ऐसा इक जहां शायद हो...
शायद हो ..कि ऐसा वो जो बादलों का गुच्छा सा जो उड़ता है और बनती है एक तस्वीर सी उसमें शायद सच मे हो कि वो उड़ता हुआ वो सफेद सा हाथी बसता हो उनमें ।
,जादू वाली छड़ी लिए वो परी जो दिखा करती थी , इन दिनों जाने कहाँ गुम रहती है , शायद हो कि छुट्टी पर हो वो इन दिनों ,, या फिर शायद किसी और जहाँ में जा बसी हो जहां के वाशिंदे अब भी उसे ऐसे ही मुस्कुराते हुए उड़ते देखना चाहते हो , जहां उससे वैसा ही बेलाग से प्रेम किया जाता हो जो पहले यहां भी हुआ करता था , वो प्रेम कि अब जो भूल गए है यहां के वाशिंदे, उन्हें बादलों के किसी हिस्सें में अक्स नजर ही नहीं आता , अब उन्हें नजर आता है तो बस वो जो नज़र किया जाता हैं । हां शायद ऐसा ही हो ,, शायद हो~~