एक तुम्हारा होना~
तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द शिल्प से बांधने की एक असफल कोशिश में लग पड़ा हूँ फिर से एक दफा । कुछ यूं मन को फुसलाकर की तुमसे जो बचा खुचा रह गया था कहने को इस दफा अंतिम रूप से निबटा के ही मानूंगा ।
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आज तुम्हे इतिहास सुनाऊंगा ऐसे कि जैसे सृष्टि और सभ्यता का आज तक का विकास हमारी इस दास्तान के लिए ही हुआ था मानो । गोया कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का सृजन और विकास हमारी कहांनी को आधार देने के लिए हुआ था ,
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चाहे भले सिंधु लिपि अब तक अपठित है पर जिस दिन ये पढ़ी जाएगी तुम्हारे भोलेपन और मेरी दीवानगी का जिक्र उसमे जरूर आएगा , यकीन मानो ।ठीक वैसे ही जैसे वेदों की ऋचाओं में तुम्हारा जिक्र अक्सर महकता है , मुंडकोपनिषद का विधान ही तुम्हारे जिक्र के लिए ही किया गया था मानो हां उन सूक्तियों की गायत्री तुम ही तो हो , और तुम्हे अपने मे समेटता आत्मसात करता वो पांडुलिपी मैं रहा हूँ , जिसने समय की अविरत धारा में तुमको साहलाद तब तक निर्वाहित किया जब तक लेखन अस्तित्व में नही आ गया ।
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गंगा की घाटी के पुनः नगरीकरण की प्रेरणा तुम रही हो , मगध पल्लवित ही हुआ तुम्हारे यौवन को चीर यौवन करने को , तुम अशोक के धम्म का सार हो , तुमही ने गुप्तों के स्वर्णिम साम्रज्य के वैभव को हेतु प्रदान किया , पूर्व मध्यकाल का ढलान और पल्लव और चोलो का शिल्प तुम्हारी काया के आरोह अवरोह को रहस्यात्मक उदघाटन देते हैं मानो । विजयनगर का संजाल तुम्हारे लिये रचा गया , मुगलो का आना और व्यवस्था का स्थापन न होता तो क्या हम तुम यूँ मिल सकते थे क्या कभी । ,
ब्रिटिशों ने आकर यहां लूट खसोट मचाई क्योंकि हिन्द को हिंदुस्तान बनना था , आजाद भारत को पींगे भरनी थी 21वी सदी की ओर , इसलिए क्योंकि एक किस्सा शुरू होना था , तुम्हारा और मेरा । ये सब नहीं होता तो क्या ये अनुभूति ऐसी मिलती हमें , ज्यो ज्यो इस तथ्य से अवगत होता जाता हूँ मुझे, अतीत की हर अनुभूति मानो ,तुमसे अपने अंचल के उस माटी से , उस राष्ट्र की हर एक खुशबू से और कभी कभी इस पूरे ब्रह्मांड की निमित्ति से योजित कर देते है मुझे ~ऋतेश