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जल संरक्षण

26 अगस्त 2022

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जल संरक्षण ।

क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच महाभूत । ये वो पांच तत्व है जिनसे न केवल मानव शरीर निर्मित होता है बल्कि किरदार के खत्म होने पर इन्हीं पंच तत्वों में हम सुपुर्द भी हो जाते हैं । 

 भारतीय चिंतन परम्परा में इन पांचों तत्वों के समन्वय से ही मनुष्य और मानव जीवन की संकल्पना रची गयी हैं । आज के समय में ये कितना प्रासंगिक है इसका भान हमें तब होता है जब वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर हाय तौबा मची हुई है । इसे विडम्बना कहिये या संयोग या फिर कोई टोना जोग (😊) , अभी तक की ज्ञात जानकारी में इस विशाल ब्रहांड के कण बराबर पृथ्वी में ही केवल और केवल जल की पर्याप्त संभावनायें मौजूद है , जी हां वो जल जिसकी उपयोगिता तक को हम बिना सूखे से झुलसती फसलों, बिना वाटर सप्लाई बंद हुए घर की दशा या थार और सहारा जैसे मरुथलो में मटकों में पानी खोजते लोगो को देखे बगैर समझ ही नहीं पाते । आज की चर्चा हम जल की उपयोगिता , उसके हो रहे दुरुपयोग और उसके संरक्षण के संभावित उपायों की ओर करेंगे ।

"जल ही जीवन है " जरा सोचिए मानव और मानव निर्मित समाज को , जिन्होंने सभ्यताओं का पालन किया और जिस प्रकार उसमें पोषित हुए वो बिना बहती सदनीराओं के सम्भव भी था क्या ? सिंधु ने अपने गर्भ में हड़प्पा की सभ्यता तो गंगा ने महान मगध साम्राज्य को सृजित किया, एशिया के पश्चिम की जो बुनियाद मेसोपोटामिया ने रखी वो बिना दजला फ़रात दरियाओं के सम्भव भी नही थी । अन्न से लेकर व्यापार तक,  संस्कृति से लेकर धार्मिक अनुष्ठान, शिल्प से लेकर व्यक्तिगत सौन्दर्य  सब चीजों में जल ऐसे ही घुल मिल गया जैसे यही उसकी नियति हो , इंद्रजीत सिंह ने क्या खूब लिखा भी "पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिस रंग में मिला दो उस रंग जैसा
वैसे तो हर रंग में तेरा 
जलवा रंग जमाए
जब तू फिरे उम्मीदों पर तेरा 
रंग समझ ना आए
कली खिले तो झट आ जाए 
पतझड़ का पैगाम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
सौ साल जीने की उम्मीदों जैसा"

 "



"बिन पानी सब सून"

जल ने वो सब सिंचित किया जिसकी मनुष्यता को दरकार थी, खेत तृप्त हुए अन्न फूट पड़े, लोग तृप्त हुए । जल ने सौंदर्यता का बोध दिया, झीलें , पोखर, ताल ,नदियां और समंदर तक रच डालें । वो सब दिया उस जननी की तरह जिसकी दरकार थी मानवीयता को , बस नही दे पायी तो सभ्यताओं को अपना गुण कि निस्वार्थता ही प्रकृति है । और स्वार्थ जैसे प्रकृति का मनुष्यता को दिया गया सबसे बड़ा अभिशाप है , जल के दुरुपयोग , उसका प्रदूषण , उसके प्रवाह को बांधना जैसे तमाम वो कृत्य जो मनुष्यता को अपना सामर्थ्य प्रतीत होता है वास्तव में वो उस कुल्हाड़ी की चोट सरीखी थी जिसकी डाली पर वो बैठा था । तमाम पुरातन सभ्यताओं का पतन बाढ़ ,सूखा जैसे जल असंतुलन कारणों से ही हुआ ।


"जल है तो कल है"
 याद आ रही हैं भारत के रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की वो अभिलेखीय पंक्तियाँ , ‘ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कोई आश्चर्य नहीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो.’ इंसान की फितरत ही ऐसी है कि वो हर उस चीज की तरफ तक नही दौड़ता जब तक कि उसकी उपलब्धता कम ना हो जाये, सोने ,चांदी और ऐसी तमाम कीमती चीजों की कीमत और आकर्षण ही इसी मनोविज्ञान पर टिके हैं । आज चाहे भारत हो या अफ्रीकी देश या फिर अमेरिका जैसे देश में भी पानी की कमी से जलसंकट गहराने लगा है. दरअसल, एक बार तेल के बिना ज़िंदगी चल सकती है लेकिन पानी के बिना नहीं. जब सवाल अस्तित्व का आ जाए तब जाहिर तौर पर जिंदगी की जंग लड़ने के लिए पानी पर युद्ध का फैसला कोई भी ताकतवर देश करने से हिचकेगा नहीं। सभ्यताओं और समाजों ने स्वयं के अस्तित्व के लिए ही सबसे हिंसक नरसंहार किये हैं, इतिहास इसका गवाह है ।


"पानी पृथ्वी का खून है इसे यूं ना बहाये"

रोजमर्रा की तमाम क्रियाओं में जाने अनजाने जल का दुरुपयोग होता ही जाता हैं, कभी नल का टैब खोलकर तो कभी गुणवत्ता वाले पेय योग्य जल का अन्य चीजों में दुरुपयोग करके । यहां तक कि उत्तर भारत मे ट्यूबवेल के द्वारा फसलों की सिंचाई में जल का अतिरेक उपयोग भी एक सामान्य सी बात है , साथ ही आधुनिकता की अंधदौड़ में पारंपरिक गांव की धरोहर पोखरे, गड़ही , तालाब , बागों को जिस तरह समूल समाप्त कर दिया जा रहा है उस पर भी सोचने की आवश्यकता है , हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने एक मुकदमें में फैसला देते हुए कहा है कि तालाब, पोखर, गड़ही, नदी, नहर, पर्वत, जंगल और पहाड़ियों आदि सभी जलस्रोत पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं। इसलिये पारिस्थितिकी संकटों से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिये इन प्राकृतिक देनों की सुरक्षा करना आवश्यक है ताकि सभी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिए गए अधिकारों का आनंद ले सकें ।
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 इसके अलावा बारिश के जल का निर्रथक होकर पुनः जल चक्र में चले जाना भी एक चुनौती है जिससे निबटने के लिए व्यक्तिगत, सरकारी और सामूहिक प्रयास जरूरी हैं । दक्षिण भारतीय राज्यों में जल संरक्षण के लिए छतों पर जल भंडारण हेतु किये जा रहे प्रयास अनुकरणीय हैं । फसलों की सिंचाई के लिए इजरायली ड्रिप इरिगेशन से जल की कम से कम खपत में बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकेंगें ।
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और इन सबसे ऊपर जल की उस आध्यत्मिकता को समझने की आवश्यकता है,  उसकी उपयोगिता को समझना जरूरी है , और ये समझ  इसलिए  भी जरूरी है कि पानी, मिट्टी ,हवा कुछ ऐसे मौलिक चीजें जिनका दूषित होना, कम होना और उनका बिल्कुल ही ना होना कुछ ऐसे अनचाहे ,अवांछित परिस्थितयां है जिसकी कल्पना मात्र से जैसे जीवन अपाहिज जान पड़ने लगता है । भगवद्गीता में योगेश्वर कृष्ण स्वयं के विराट रूप को बतलाते हुए "स्त्रोतस्मिम जान्हवी " के द्वारा खुद को जान्हवी भी कह रहे होते हैं । इन मायनों में जल का ईश्वरीय गुण तो प्रगट है ही । 
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शेष पानी के बारे में कुछ भी लिखना पानी पानी कर देना नहीं बल्कि पानी पानी हो जाना ही है , रहीम की ये पंक्तियां वाकई लाज़मी हैं -
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून। 
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून~~

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सार्थक लेख 👍👍👍💯💯💯

26 अगस्त 2022

Vijay

Vijay

बहुत ही बेहतरीन👌👌👌

26 अगस्त 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

26 अगस्त 2022

आभार 🙏🙏

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut hi badhiya likha aapne sir Behtreen prastuti

26 अगस्त 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

26 अगस्त 2022

बहुत धन्यवाद मैडम जी । आपकी रचनाओं से कल गुजरा । गद्य और पद्य दोनों में आप काफी सहज लिखती हैं, 👌

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रचनाएँ
दैनिक
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किताब में दैनंदिन लेखन का समावेश है ।
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युवा भारत~

25 अगस्त 2022
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युवा भारत !क्रांति और रोमांस यानी प्रेम दोनों एक ही स्त्रोत से निकलते हैं । और ये दोनों ही बातें किसी व्यक्ति, परिवार ,समाज और देश के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं । युवा होना क

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जल संरक्षण

26 अगस्त 2022
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धार्मिक उन्माद~

27 अगस्त 2022
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धार्मिक उन्माद~धारयते इति धर्म: , अर्थात जो धारण किया जाता है वो धर्म है । धर्म की परिभाषा उसका होना और अनुपालन इतना ही शालीन और सुस्पष्ट है । हमारी चिंतन परम्परा में भी चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम

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अवैध निर्माण~

29 अगस्त 2022
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अवैध निर्माण ~निर्माण एक रचनात्मक प्रक्रिया है । घर का निर्माण , भवन का निर्माण , सृष्टि का निर्माण हो या व्यक्तित्व का निर्माण । नींव से लेकर अपनी परिणति प्राप्त करने तक यह एक वृहद कर्मयज्ञ का

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हिंदी दिवस पर~

14 सितम्बर 2022
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हम हिन्दी भाषियों के लिए हिंदी की एक सामान्य परिभाषा यही है कि यह हमारी अपनी भाषा है । भाषा , जो वास्तव में संस्कृति का एक अंग हैं । और संस्कृति की मजबूती और प्रसार आजकल अर्थ के पहियों पर गतिमान रहती

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इंतेज़ार और सही~

14 सितम्बर 2022
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इंतेज़ार एक ऐसा लफ्ज़जिसमें समूचा जीवनअंगड़ाई ले सकता है ।कायनात की हर शय मानोकिसी के इंतेज़ार में ही है ।बच्चा जवान होने के इंतेज़ार मेंतो कोई फिर सेबच्चा होने की चाह रखता है ●●●●

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बारिशें~

15 सितम्बर 2022
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बारिश एक भीगन ही नही ये एक प्रतीक है संयोग और वियोग का , जहां नीरद से निकला नीर सदानीरा में परिवर्तित हो रहा होता है । इस यात्रा में अनंत पड़ाव है । तीव्रता है तो मादकता भी , पर्वतों पर कलकल करती मीठी

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मानव एक पूंजी ~

15 सितम्बर 2022
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मानव एक संसाधन है । एक ऐसी पूंजी जिसके हाथों ने सदियों से इस सृष्टि को अथक रूप से निरंतर गढ़ा है । सृजन से लेकर विनाश तक अनेकों बार सृष्टि के खेल को देखते ,समझते और सहेजते मानव ने आज वो मुकाम हास

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पितृ पक्ष~

16 सितम्बर 2022
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श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।पितृ पक्ष यानी पित

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नारीवाद~

17 सितम्बर 2022
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नारीवाद~एक इंसान के तौर पर जब हम इस धरती पर आते है तो सबसे पहला सानिध्य जिससे होता है वो एक नारी है, एक बुभुक्षु के तौर पर हमें कराई गयी पहली क्षुधा पूर्ति का माध्यम एक नारी होती है , और तो और हमारे स

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मिमी कहानी एक माँ की ~

17 सितम्बर 2022
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रिश्ता ! क्या होता है ये रिश्ता और इनके मायने क्या होते हैं ? कौन देता है इन्हें मां बाप ,भाई बहन और ऐसे अनेकों नाम, साथ ही इनमे जन्म लेती और पल्लवित होती भावनाएं और एक अपनत्व को जतलाता हुआ अख्त

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अंधविश्वास~

18 सितम्बर 2022
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अंधविश्वास~आंख मूंद कर किया जाने वाला विश्वास ही अंधविश्वास है । तर्क से परे होकर किसी भी व्यवस्था और विचार को स्वीकारना और उसका अनुकरण करना ही अंधविश्वास है । यहां व्यवस्था और वो विचार किसी भी

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बात इक रात की~

18 सितम्बर 2022
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नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर

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कभी कभी अक्सर~

19 सितम्बर 2022
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इक शब गुजर गई फिर से उसकी प्यास से हारकर , गुम गए कुछ सितारे जो यूँ ही उग आए थे रेगिस्तानी आकाश पर गैर मापे पूरे दिन को , इक उम्मीद बुझ गयी फिर से संभावनाओं की गोद में मुँह छिपाकर । .इक गम फिर से अधूर

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एक तुम्हारा होना~

19 सितम्बर 2022
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एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

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क्या लिखूँ का सवाल ~

20 सितम्बर 2022
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अक्सर ऐसा होता है कि इंसान प्यार को भूलने की क़वायद में उसे लिखने लगता है । प्यार को लिखना उसको भूलने की भरसक कोशिश होती है । प्रेम की लेखनीय अभिव्यक्ति उस पीर से निज़ात पाने की कोशिश है । यकीन ना हो तो

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कोरोना काल और डायरी के पन्ने~

20 सितम्बर 2022
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ये कहते हुए अरस्तू को कोरोना जैसे "अति सामाजिक " प्राणी का ख्याल शायद रहा हो ना रहा हो लेकिन मनुष्य के सहअस्तित्व को चुनौती देता ये सूक्ष्म दानव आज एक बार फिर से भागती दौड़त

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21 सितम्बर 2022
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जैविक खेती।।मानव सभ्यता के विकास में सर्वप्रथम क्रांति खेती की खोज थी । तकरीबन दस हज़ार वर्ष पूर्व इसे नवपाषाण क्रांति के रूप में भी जाना जाता है । खेती यानी मनुष्य के मनुष्यता की गाथा । खेती यानी जानव

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पुस्तकों की दुनिया~

22 सितम्बर 2022
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किताबें बहुत ही पढ़ी होंगी तुमने~पुस्तक एक संग्रह है ज्ञान का, एक संग्रह अनुभव का ,यह एक समेकन होती है अनुभूतियों की । एक विचार ,एक सोच , अर्जित एक सम्पूर्ण जीवन कैद होता है एक उत्तम पुस्तक में । पुस्त

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क्या लिखूँ ~

24 सितम्बर 2022
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मैं चाहता था कुछ ऐसा लिखूं जो कुछ अद्भुत बन जाये, कुछ ऐसा जो लेखन की मापनी में ना समाया जा सके , मैंने बहुत सोचा , मन के पतंगे की करनी साधी , उसे कल्पना के नवनीत नभपटल में ले जाकर छोड़ा , हर बार उसके ब

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क्षमा करना हिंदी मां !

24 सितम्बर 2022
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साहित्य एक पवित्र नदी की तरह है । एक ऐसी नदी जिसमे स्नान करके मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है । ये वो गंगा है जिसके पवित्र जल से सभ्यताएं तक पुनीत होती आयी है ।... साहित्य रूपी गंगा क

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ग्राम गमन~

4 अक्टूबर 2022
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गांव जाता हूँ तो टुकड़ा टुकड़ा हो जाता हूँ , गाँव यानि जड़ें , जहां जीवन बसता है , जहां से प्राण तत्व निकलता है मानो , हालांकि जड़ों की शुष्क कठोरता भी एक अदद सच्चाई है , जड़ों तक पहुचने की बेचैनी अक्सर पत

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जब मिलना समंदर से~~

4 अक्टूबर 2022
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पत्थरों के किनारे ओढ़ रखे है दरिया ने , राहगीर देखते है , अक्सर समझते है , कौन स्पर्श करे इन्हें , अगर ये फूट गए , तो कौन रोकेगा उमड़ते हुए नीर को, कौन संभालेगा इसकी पीर को

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शायद हो~

7 अक्टूबर 2022
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शायद हो...इस जहां के पार एक दूसरा जहां ,जहां ना हो कोई नफ़रतें ना शिकवे ना गिले,, जहां लोग एक दूसरे से हंस के मिले तो बस हँस के ही मिले ,, ऐसा एक जहाँ , जिसकी जमीं पर तानों के कांटे ना चुभते हो , ,हां

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दीपावली~

23 अक्टूबर 2022
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त्योहार दीवाली का है तो मन वीणा के तार झंकृत ना हो जाये ऐसा संभव कैसे हो सकता है ।त्योहार की संकल्पना वास्तव में भारतीय परंपरा का एक अद्भुत पहलू है , जिसमे अंतरिक्ष की ज्यामिति , भूगोल की तारतम्यता ,

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5जी तकनीक ~

3 नवम्बर 2022
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बचपन की यादों में अक्सर आसमानी रंग के वो दो पन्ने याद हो आते है ,जिसे अंतरदेशी कहा जाता था , जो आपस मे जुड़े होकर अपने ऊपर लिखी इबारतों से न जाने कितनी दूर बैठे दो लोगों को जोड़ने का काम करते थे ।

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वैश्विक जलवायु परिवर्तन~

5 नवम्बर 2022
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जब भी जलवायु परिवर्तन की बात होती है । ना जाने कहाँ से उस विशाल अजगर की कहानी ज़ेहन में तैरने लगती है ,जो इतना विशाल था जितना स्वयं में एक टापू हो। जिसकी सुषुप्त अवस्था में उसके तन पर हरे भरे मैदान को

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