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धार्मिक उन्माद~

27 अगस्त 2022

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धार्मिक उन्माद~

धारयते इति धर्म: , अर्थात जो धारण किया जाता है वो धर्म है । धर्म की परिभाषा उसका होना और अनुपालन इतना ही शालीन और सुस्पष्ट है । हमारी चिंतन परम्परा में भी चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष के अन्तर्गत धर्म को सर्वोपरि रखा गया है । धर्म सर्वोपरि इसलिए भी रखा गया और रहा है कि किसी भी मनुष्य के विचार, विश्वास और कर्मों की बुनियाद यही से आरंभ होती है , और यही से आरंभ होती है उसके व्यक्तित्व के  निर्माण की आधारशिला भी । 
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इन मायनों में न केवल हिन्दू धर्म बल्कि इस्लाम ,सिख और ईसाईयत और अन्य तमाम सभी धर्मों की बुनियाद समन्वयकारी और उन नैतिक आचरणों से लबरेज होती है जिसके आधार पर उस पंथ को मानने वाले समुदायों का दीर्घकालिक हित संरक्षित रह सके । यहां तक तो सब ठीक है , लेकिन "  इस धार्मिक स्वतंत्रता की छड़ी को घुमाने की मर्यादा जब दूसरे की नाक पर चोट करने पर आमादा हो और यह काफी अनियंत्रित स्वरूप में हो , समस्या की शुरुआत वही से हो जाती है ।और यह अतिक्रमण की समस्या नयी तो कदापि नहीं है । धार्मिक उन्माद की पृष्ठभूमि हूबहू इसे से बनती है ।
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भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर समूचे यूरोप और पूरे विश्व में भिन्न भिन्न पंथों ,विचारों ,विश्वासों और धर्मों के अनुयायी "मैं सही तू गलत" की तर्ज़ पर दिन ,महीनों और सालों के बजाय सदियों तक युद्धरत रहे हैं । क्रूसेड, जिहाद, धर्मयुद्ध के नाम पर लड़े जाने वाले ये युद्ध मानवीयता की शायद सबसे बड़ी त्रासदी रही है । ईसाइयत, इस्लाम और यहूदियों के मध्य सदियों तक लड़ा जाने वाला येरुशलम का युद्ध इसकी बहुत बड़ी बानगी है ।.
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भारतवर्ष की अब तक कि अर्जित सांस्कृतिक विरासत (जिसमें धर्म भी समाहित है) यही बतलाते हैं कि धर्म यहां पर कभी भी थोपी हुई चीज नही रही है बल्कि धार्मिक आस्था,विश्वास,और अनेकानेक विधियां और पद्धतियाँ यहां के दैनंदिन की जीवन शैली में स्वतः समाहित रहे हैं  । धार्मिकता का उन्माद यहां कभी भी ग्राह्य नही हुआ । साथ ही समय समय पर आयातित और उन्मादी पंथो ने तीव्रगामी नदियों की तरह हालांकि क्षणिक भूचाल यदा कदा उत्पन्न तो किया , परन्तु वो वक्त के साथ साथ संस्कृति के इस समंदर में स्वयं ही विलीन हो गए और यही रच बस गए । अतः आप देखेंगे कि न केवल मध्यकाल बल्कि आधुनिक काल की शुरुआत में भी धार्मिक उन्मादों के वशीभूत कुछ अतिरेक कार्य किये , मंदिरों का स्तूपों का और तमाम भारतीय उपासना केंद्रों को नष्ट किया गया ।धर्म परिवर्तन के लिए भय और लालच का उपयोग किया गया । इन सबके द्वारा साम-दाम-दण्ड-भेद से यहां की मौलिक आस्था और विश्वास पर उल्लेखनीय प्रहार तो किये , पर शनैः शनैः उन्होंने पराजित होकर स्वयं ही शस्त्र डाल दिये।  बावजूद इसके उन्हें यहां न केवल अपनाया गया बल्कि उनकी भाषा, रहन सहन , खान पान , कला ,विश्वास को संश्लेषित भी किया गया । और यही भारतीयता की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है ।
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धर्म राजनीति का संचालक बनेगा या उसका उपकरण सिद्ध होगा ,इस प्रश्न के जवाब में ही सत्ता की दिशा और दशा तय होती है । तेरहवीं सदी के विचारक "मैकेयवाली" ने धर्म को राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण अस्त्र बताया , सत्ता को पाने और उसे बनाये रखने के लिए धर्म का सजग इस्तेमाल की उसकी सीख बरतानिया हुकूमत ने भारत में भी प्रयोग में लायी , मुस्लिम लीग को प्रश्रय ,साम्प्रदायिक निर्वाचन और मोहम्मद अली जिन्ना की महत्वाकांक्षा को प्रोत्साहित कर धार्मिक उन्माद के तहत ही भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर दो राष्ट्रों में कर दिया गया । ये एक ऐसी त्रासदी रही है जो विश्व की दस सबसे बड़ी त्रासदियों में दर्ज है ।
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भारत विविधता में एकता का नाम है , इसकी बुनियाद एक ऐसी नींव पर रखी गयी जो व्यवाहरिक रूप में संभव ही नही जान पड़ती थी । अंग्रेजो ने कुटिलता के साथ जिस भारत को हमें दिया था वो सैकडों टुकड़ो में बंटा हुआ था , सरदार बल्लभ भाई पटेल और तात्कालिक राजनेताओं ने इसे एक सूत्र में जोड़ा । भारतीय संविधान में इस पंथनिरपेक्षता इस राष्ट्र का प्रमुख चरित्र घोषित किया गया , पंथनिरपेक्ष होना यानी सभी विश्वासों और धर्मों के साथ ऋणात्मक रूख न रखकर धनात्मक रूख रखना । बावजूद इसके धार्मिकता का उन्माद और उसके फलस्वरूप दंगो सरीखा फैलता मलेरिया , धार्मिक प्रतिष्ठानों पर किये जाते रहे बम विस्फोट , मोब लिंचिंग ऐसे अनेकों कृत्य है जिसकी सतर्क निगरानी न केवल जरूरी है बल्कि उसके मूल कारणों पर प्रहार किया जाना आज की प्रभूत आवश्यकता भी है । 


धार्मिकता का ये उन्माद अशिक्षा, बेरोजगारी ,और सियासत के उपकरण के रूप में तब तक व्यवहृत किये जाते रहेंगे जब तक कि हम आप और समाज मोहरों के रूप में इस्तेमाल होते रहेंगे । हालांकि उन्माद की ये अवस्था शिक्षित और विकसित हो चुके लोगो मे भी व्याप्त है , यदि ऐसा नही होता तो अमेरिका की "बंदूक संस्कृति" यूरोप के इटली फ्रांस में सार्वजनिक गोलीबारी और इस्लामी शिक्षित लोगो के द्वारा भी आतंकी कृत्यों को अंजाम नही दिया जाता । 

भारत की सुग्राह्यता आज दुनियावी मंचो पर सर्वविदित है , विश्व शांति से लेकर ऊर्जा संरक्षण हो या पर्यावरण का मुद्दा दुनिया हमारे रुख और विचारों को देख रही होती है । भारत आज उस स्थिति में है कि समस्त दुनिया के समक्ष कुछ उदाहरणों को रख सकता है । अपनी विशाल सांस्कृतिक परम्परा के साथ विविधता में एकता की अपनी अवधारणा को हम क्यों ना इतना मजबूत कर ले कि धर्म नितांत वैयक्तिक विचार बन सके । साथ ही सबके साथ साथ राष्ट्र और समाज का उन्नायक बन सके , सभी धर्मों में छिपे मानवीयता के साथ  समन्वय और सहभागिता के गुण को हम अपने लोगो के व्यवहार में ला सके । यदि ऐसा हुआ तो विश्व धर्मगुरु के हम निर्विवाद और अहर्निश अधिकारी होंगे~
Vijay

Vijay

Thanks for writing 👍

27 अगस्त 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

27 अगस्त 2022

स्वागत है, शुक्रिया🙏

Pragya pandey

Pragya pandey

Nice 👌👌👌

27 अगस्त 2022

Vijay

Vijay

27 अगस्त 2022

Thanks

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

27 अगस्त 2022

धन्यवाद 🙏

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen prastuti lajwab lekhna shaili

27 अगस्त 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

27 अगस्त 2022

धन्यवाद, आभार

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रचनाएँ
दैनिक
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किताब में दैनंदिन लेखन का समावेश है ।
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युवा भारत~

25 अगस्त 2022
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युवा भारत !क्रांति और रोमांस यानी प्रेम दोनों एक ही स्त्रोत से निकलते हैं । और ये दोनों ही बातें किसी व्यक्ति, परिवार ,समाज और देश के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं । युवा होना क

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जल संरक्षण

26 अगस्त 2022
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जल संरक्षण ।क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच महाभूत । ये वो पांच तत्व है जिनसे न केवल मानव शरीर निर्मित होता है बल्कि किरदार के खत्म होने पर इन्हीं पंच तत्वों में हम सुपुर्द भी हो जाते हैं । &

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धार्मिक उन्माद~

27 अगस्त 2022
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अवैध निर्माण~

29 अगस्त 2022
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अवैध निर्माण ~निर्माण एक रचनात्मक प्रक्रिया है । घर का निर्माण , भवन का निर्माण , सृष्टि का निर्माण हो या व्यक्तित्व का निर्माण । नींव से लेकर अपनी परिणति प्राप्त करने तक यह एक वृहद कर्मयज्ञ का

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हिंदी दिवस पर~

14 सितम्बर 2022
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हम हिन्दी भाषियों के लिए हिंदी की एक सामान्य परिभाषा यही है कि यह हमारी अपनी भाषा है । भाषा , जो वास्तव में संस्कृति का एक अंग हैं । और संस्कृति की मजबूती और प्रसार आजकल अर्थ के पहियों पर गतिमान रहती

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इंतेज़ार और सही~

14 सितम्बर 2022
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इंतेज़ार एक ऐसा लफ्ज़जिसमें समूचा जीवनअंगड़ाई ले सकता है ।कायनात की हर शय मानोकिसी के इंतेज़ार में ही है ।बच्चा जवान होने के इंतेज़ार मेंतो कोई फिर सेबच्चा होने की चाह रखता है ●●●●

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बारिशें~

15 सितम्बर 2022
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बारिश एक भीगन ही नही ये एक प्रतीक है संयोग और वियोग का , जहां नीरद से निकला नीर सदानीरा में परिवर्तित हो रहा होता है । इस यात्रा में अनंत पड़ाव है । तीव्रता है तो मादकता भी , पर्वतों पर कलकल करती मीठी

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मानव एक पूंजी ~

15 सितम्बर 2022
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मानव एक संसाधन है । एक ऐसी पूंजी जिसके हाथों ने सदियों से इस सृष्टि को अथक रूप से निरंतर गढ़ा है । सृजन से लेकर विनाश तक अनेकों बार सृष्टि के खेल को देखते ,समझते और सहेजते मानव ने आज वो मुकाम हास

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पितृ पक्ष~

16 सितम्बर 2022
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श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।पितृ पक्ष यानी पित

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नारीवाद~

17 सितम्बर 2022
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नारीवाद~एक इंसान के तौर पर जब हम इस धरती पर आते है तो सबसे पहला सानिध्य जिससे होता है वो एक नारी है, एक बुभुक्षु के तौर पर हमें कराई गयी पहली क्षुधा पूर्ति का माध्यम एक नारी होती है , और तो और हमारे स

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मिमी कहानी एक माँ की ~

17 सितम्बर 2022
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रिश्ता ! क्या होता है ये रिश्ता और इनके मायने क्या होते हैं ? कौन देता है इन्हें मां बाप ,भाई बहन और ऐसे अनेकों नाम, साथ ही इनमे जन्म लेती और पल्लवित होती भावनाएं और एक अपनत्व को जतलाता हुआ अख्त

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अंधविश्वास~

18 सितम्बर 2022
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अंधविश्वास~आंख मूंद कर किया जाने वाला विश्वास ही अंधविश्वास है । तर्क से परे होकर किसी भी व्यवस्था और विचार को स्वीकारना और उसका अनुकरण करना ही अंधविश्वास है । यहां व्यवस्था और वो विचार किसी भी

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बात इक रात की~

18 सितम्बर 2022
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नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर

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कभी कभी अक्सर~

19 सितम्बर 2022
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इक शब गुजर गई फिर से उसकी प्यास से हारकर , गुम गए कुछ सितारे जो यूँ ही उग आए थे रेगिस्तानी आकाश पर गैर मापे पूरे दिन को , इक उम्मीद बुझ गयी फिर से संभावनाओं की गोद में मुँह छिपाकर । .इक गम फिर से अधूर

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एक तुम्हारा होना~

19 सितम्बर 2022
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एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

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क्या लिखूँ का सवाल ~

20 सितम्बर 2022
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अक्सर ऐसा होता है कि इंसान प्यार को भूलने की क़वायद में उसे लिखने लगता है । प्यार को लिखना उसको भूलने की भरसक कोशिश होती है । प्रेम की लेखनीय अभिव्यक्ति उस पीर से निज़ात पाने की कोशिश है । यकीन ना हो तो

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कोरोना काल और डायरी के पन्ने~

20 सितम्बर 2022
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ये कहते हुए अरस्तू को कोरोना जैसे "अति सामाजिक " प्राणी का ख्याल शायद रहा हो ना रहा हो लेकिन मनुष्य के सहअस्तित्व को चुनौती देता ये सूक्ष्म दानव आज एक बार फिर से भागती दौड़त

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जैविक खेती~

21 सितम्बर 2022
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जैविक खेती।।मानव सभ्यता के विकास में सर्वप्रथम क्रांति खेती की खोज थी । तकरीबन दस हज़ार वर्ष पूर्व इसे नवपाषाण क्रांति के रूप में भी जाना जाता है । खेती यानी मनुष्य के मनुष्यता की गाथा । खेती यानी जानव

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पुस्तकों की दुनिया~

22 सितम्बर 2022
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किताबें बहुत ही पढ़ी होंगी तुमने~पुस्तक एक संग्रह है ज्ञान का, एक संग्रह अनुभव का ,यह एक समेकन होती है अनुभूतियों की । एक विचार ,एक सोच , अर्जित एक सम्पूर्ण जीवन कैद होता है एक उत्तम पुस्तक में । पुस्त

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क्या लिखूँ ~

24 सितम्बर 2022
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मैं चाहता था कुछ ऐसा लिखूं जो कुछ अद्भुत बन जाये, कुछ ऐसा जो लेखन की मापनी में ना समाया जा सके , मैंने बहुत सोचा , मन के पतंगे की करनी साधी , उसे कल्पना के नवनीत नभपटल में ले जाकर छोड़ा , हर बार उसके ब

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क्षमा करना हिंदी मां !

24 सितम्बर 2022
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साहित्य एक पवित्र नदी की तरह है । एक ऐसी नदी जिसमे स्नान करके मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है । ये वो गंगा है जिसके पवित्र जल से सभ्यताएं तक पुनीत होती आयी है ।... साहित्य रूपी गंगा क

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ग्राम गमन~

4 अक्टूबर 2022
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गांव जाता हूँ तो टुकड़ा टुकड़ा हो जाता हूँ , गाँव यानि जड़ें , जहां जीवन बसता है , जहां से प्राण तत्व निकलता है मानो , हालांकि जड़ों की शुष्क कठोरता भी एक अदद सच्चाई है , जड़ों तक पहुचने की बेचैनी अक्सर पत

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जब मिलना समंदर से~~

4 अक्टूबर 2022
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पत्थरों के किनारे ओढ़ रखे है दरिया ने , राहगीर देखते है , अक्सर समझते है , कौन स्पर्श करे इन्हें , अगर ये फूट गए , तो कौन रोकेगा उमड़ते हुए नीर को, कौन संभालेगा इसकी पीर को

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शायद हो~

7 अक्टूबर 2022
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शायद हो...इस जहां के पार एक दूसरा जहां ,जहां ना हो कोई नफ़रतें ना शिकवे ना गिले,, जहां लोग एक दूसरे से हंस के मिले तो बस हँस के ही मिले ,, ऐसा एक जहाँ , जिसकी जमीं पर तानों के कांटे ना चुभते हो , ,हां

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दीपावली~

23 अक्टूबर 2022
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त्योहार दीवाली का है तो मन वीणा के तार झंकृत ना हो जाये ऐसा संभव कैसे हो सकता है ।त्योहार की संकल्पना वास्तव में भारतीय परंपरा का एक अद्भुत पहलू है , जिसमे अंतरिक्ष की ज्यामिति , भूगोल की तारतम्यता ,

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5जी तकनीक ~

3 नवम्बर 2022
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बचपन की यादों में अक्सर आसमानी रंग के वो दो पन्ने याद हो आते है ,जिसे अंतरदेशी कहा जाता था , जो आपस मे जुड़े होकर अपने ऊपर लिखी इबारतों से न जाने कितनी दूर बैठे दो लोगों को जोड़ने का काम करते थे ।

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वैश्विक जलवायु परिवर्तन~

5 नवम्बर 2022
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जब भी जलवायु परिवर्तन की बात होती है । ना जाने कहाँ से उस विशाल अजगर की कहानी ज़ेहन में तैरने लगती है ,जो इतना विशाल था जितना स्वयं में एक टापू हो। जिसकी सुषुप्त अवस्था में उसके तन पर हरे भरे मैदान को

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