धार्मिक उन्माद~
धारयते इति धर्म: , अर्थात जो धारण किया जाता है वो धर्म है । धर्म की परिभाषा उसका होना और अनुपालन इतना ही शालीन और सुस्पष्ट है । हमारी चिंतन परम्परा में भी चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष के अन्तर्गत धर्म को सर्वोपरि रखा गया है । धर्म सर्वोपरि इसलिए भी रखा गया और रहा है कि किसी भी मनुष्य के विचार, विश्वास और कर्मों की बुनियाद यही से आरंभ होती है , और यही से आरंभ होती है उसके व्यक्तित्व के निर्माण की आधारशिला भी ।
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इन मायनों में न केवल हिन्दू धर्म बल्कि इस्लाम ,सिख और ईसाईयत और अन्य तमाम सभी धर्मों की बुनियाद समन्वयकारी और उन नैतिक आचरणों से लबरेज होती है जिसके आधार पर उस पंथ को मानने वाले समुदायों का दीर्घकालिक हित संरक्षित रह सके । यहां तक तो सब ठीक है , लेकिन " इस धार्मिक स्वतंत्रता की छड़ी को घुमाने की मर्यादा जब दूसरे की नाक पर चोट करने पर आमादा हो और यह काफी अनियंत्रित स्वरूप में हो , समस्या की शुरुआत वही से हो जाती है ।और यह अतिक्रमण की समस्या नयी तो कदापि नहीं है । धार्मिक उन्माद की पृष्ठभूमि हूबहू इसे से बनती है ।
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भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर समूचे यूरोप और पूरे विश्व में भिन्न भिन्न पंथों ,विचारों ,विश्वासों और धर्मों के अनुयायी "मैं सही तू गलत" की तर्ज़ पर दिन ,महीनों और सालों के बजाय सदियों तक युद्धरत रहे हैं । क्रूसेड, जिहाद, धर्मयुद्ध के नाम पर लड़े जाने वाले ये युद्ध मानवीयता की शायद सबसे बड़ी त्रासदी रही है । ईसाइयत, इस्लाम और यहूदियों के मध्य सदियों तक लड़ा जाने वाला येरुशलम का युद्ध इसकी बहुत बड़ी बानगी है ।.
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भारतवर्ष की अब तक कि अर्जित सांस्कृतिक विरासत (जिसमें धर्म भी समाहित है) यही बतलाते हैं कि धर्म यहां पर कभी भी थोपी हुई चीज नही रही है बल्कि धार्मिक आस्था,विश्वास,और अनेकानेक विधियां और पद्धतियाँ यहां के दैनंदिन की जीवन शैली में स्वतः समाहित रहे हैं । धार्मिकता का उन्माद यहां कभी भी ग्राह्य नही हुआ । साथ ही समय समय पर आयातित और उन्मादी पंथो ने तीव्रगामी नदियों की तरह हालांकि क्षणिक भूचाल यदा कदा उत्पन्न तो किया , परन्तु वो वक्त के साथ साथ संस्कृति के इस समंदर में स्वयं ही विलीन हो गए और यही रच बस गए । अतः आप देखेंगे कि न केवल मध्यकाल बल्कि आधुनिक काल की शुरुआत में भी धार्मिक उन्मादों के वशीभूत कुछ अतिरेक कार्य किये , मंदिरों का स्तूपों का और तमाम भारतीय उपासना केंद्रों को नष्ट किया गया ।धर्म परिवर्तन के लिए भय और लालच का उपयोग किया गया । इन सबके द्वारा साम-दाम-दण्ड-भेद से यहां की मौलिक आस्था और विश्वास पर उल्लेखनीय प्रहार तो किये , पर शनैः शनैः उन्होंने पराजित होकर स्वयं ही शस्त्र डाल दिये। बावजूद इसके उन्हें यहां न केवल अपनाया गया बल्कि उनकी भाषा, रहन सहन , खान पान , कला ,विश्वास को संश्लेषित भी किया गया । और यही भारतीयता की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है ।
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धर्म राजनीति का संचालक बनेगा या उसका उपकरण सिद्ध होगा ,इस प्रश्न के जवाब में ही सत्ता की दिशा और दशा तय होती है । तेरहवीं सदी के विचारक "मैकेयवाली" ने धर्म को राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण अस्त्र बताया , सत्ता को पाने और उसे बनाये रखने के लिए धर्म का सजग इस्तेमाल की उसकी सीख बरतानिया हुकूमत ने भारत में भी प्रयोग में लायी , मुस्लिम लीग को प्रश्रय ,साम्प्रदायिक निर्वाचन और मोहम्मद अली जिन्ना की महत्वाकांक्षा को प्रोत्साहित कर धार्मिक उन्माद के तहत ही भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर दो राष्ट्रों में कर दिया गया । ये एक ऐसी त्रासदी रही है जो विश्व की दस सबसे बड़ी त्रासदियों में दर्ज है ।
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भारत विविधता में एकता का नाम है , इसकी बुनियाद एक ऐसी नींव पर रखी गयी जो व्यवाहरिक रूप में संभव ही नही जान पड़ती थी । अंग्रेजो ने कुटिलता के साथ जिस भारत को हमें दिया था वो सैकडों टुकड़ो में बंटा हुआ था , सरदार बल्लभ भाई पटेल और तात्कालिक राजनेताओं ने इसे एक सूत्र में जोड़ा । भारतीय संविधान में इस पंथनिरपेक्षता इस राष्ट्र का प्रमुख चरित्र घोषित किया गया , पंथनिरपेक्ष होना यानी सभी विश्वासों और धर्मों के साथ ऋणात्मक रूख न रखकर धनात्मक रूख रखना । बावजूद इसके धार्मिकता का उन्माद और उसके फलस्वरूप दंगो सरीखा फैलता मलेरिया , धार्मिक प्रतिष्ठानों पर किये जाते रहे बम विस्फोट , मोब लिंचिंग ऐसे अनेकों कृत्य है जिसकी सतर्क निगरानी न केवल जरूरी है बल्कि उसके मूल कारणों पर प्रहार किया जाना आज की प्रभूत आवश्यकता भी है ।
धार्मिकता का ये उन्माद अशिक्षा, बेरोजगारी ,और सियासत के उपकरण के रूप में तब तक व्यवहृत किये जाते रहेंगे जब तक कि हम आप और समाज मोहरों के रूप में इस्तेमाल होते रहेंगे । हालांकि उन्माद की ये अवस्था शिक्षित और विकसित हो चुके लोगो मे भी व्याप्त है , यदि ऐसा नही होता तो अमेरिका की "बंदूक संस्कृति" यूरोप के इटली फ्रांस में सार्वजनिक गोलीबारी और इस्लामी शिक्षित लोगो के द्वारा भी आतंकी कृत्यों को अंजाम नही दिया जाता ।
भारत की सुग्राह्यता आज दुनियावी मंचो पर सर्वविदित है , विश्व शांति से लेकर ऊर्जा संरक्षण हो या पर्यावरण का मुद्दा दुनिया हमारे रुख और विचारों को देख रही होती है । भारत आज उस स्थिति में है कि समस्त दुनिया के समक्ष कुछ उदाहरणों को रख सकता है । अपनी विशाल सांस्कृतिक परम्परा के साथ विविधता में एकता की अपनी अवधारणा को हम क्यों ना इतना मजबूत कर ले कि धर्म नितांत वैयक्तिक विचार बन सके । साथ ही सबके साथ साथ राष्ट्र और समाज का उन्नायक बन सके , सभी धर्मों में छिपे मानवीयता के साथ समन्वय और सहभागिता के गुण को हम अपने लोगो के व्यवहार में ला सके । यदि ऐसा हुआ तो विश्व धर्मगुरु के हम निर्विवाद और अहर्निश अधिकारी होंगे~