श्रद्धया इदं श्राद्धम् (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
पितृ पक्ष यानी पितरों को अर्पित साल के वो सोलह दिन , जब इहलोक से परलोक के बीच एक तादात्म्य स्थापित करने की व्यवस्था भारतीय धर्मशास्त्र और कर्मकांड में कई गयी है । अन्य क्षेत्रों और प्रान्तों में इसे सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है ।
विभिन्न विधि विधानों के द्वारा अपने उन पूर्वजों को जिन्होंने मर्त्यलोक की अपनी यात्रा को पूरा कर लिया है उन्हें तर्पण देकर उनकी संततियों द्वारा उन्हें स्मरण किया जाता है , उन्हें धन्यवाद अर्पित कर कृतज्ञता से हम उनकी अपूरित आकांक्षाओं और असंतुष्टि को शांत कर उसे पूर्ण करने की प्रतिबद्धता भी दर्शाते हैं ।
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वेदों और ब्राह्मणों की बहुत सी पंक्तियों में मृत्यु का उल्लेख मिलता है। पहला जन्म साधारण जन्म है। पिता की मृत्यु के उपरांत पुत्र में ओर पुत्र के बाद पौत्र में जीवन की जो निरंतरता बनी रहती है उसे दूसरे प्रकार का जन्म माना गाया है। मृत्युपरांत पुनर्जन्म तीसरे प्रकार का जन्म है। कौशीतकी में ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख है जो मृत्यु के पश्चात् चंद्रलोक में जाते हैं और अपने कार्य एवं ज्ञानानुसार वर्षा के माध्यम से पृथ्वी पर कीट पशु, पक्षी अथवा मानव रूप में जन्म लेते हैं। अन्य मृत्क देवयान द्वारा अग्निलोक में चले जाते हैं।
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विधि विधानों और कर्मकांडों से इतर यदि देखा जाए तो ये एक अत्यंत खूबसूरत व्यवस्था है । एक ऐसी व्यवस्था जिसके द्वारा वर्तमान पीढ़ी अपनी भूतपूर्व पीढ़ी को उन्हें प्रदान किये गए जीवन , समाज और समस्त सकरात्मक चीजों के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर रही होती है , और साथ ही भावी पीढ़ियों को भी ये संदेश दे रही होती है कि अपनी बुनियाद अपनी नींव और अपनी विरासत में प्राप्त समाज, पर्यावरण और अनुभवों का सदैव ही सम्मान करना और इस श्रृंखला में नित नयी उपलब्धियों को जोड़ते रहना । पितृपक्ष हमारी परिपाटी है जिसे हमारे धर्मविदों ने नियोजित किया है । वर्तमान की सतत विकास की अवधारणा की तरह , जो ये बताती है कि उत्तराधिकार में मिली स्वतन्त्रता, लोकतंत्र, व्यवस्था के प्रति कृतज्ञ होकर इनमें आवश्यक परिष्करण कर हम इसे आने वाले समय मे और बेहतर कर सकें ।
आइए पितृपक्ष के इस क्रम में हम भी अपने उन पूर्वजों को स्मरण में रखें , उनके प्रति कृतज्ञता भाव से तर्पण करे । और उन्हें ये आश्वस्ति दें कि मनसा, कर्मणा और वाचा हम उनके द्वारा सहेजी और सुपुर्द की गयी सकरात्मकताओं को आगे बढ़ाएंगे-एवमस्तु !