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नारीवाद~

17 सितम्बर 2022

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नारीवाद~

एक इंसान के तौर पर जब हम इस धरती पर आते है तो सबसे पहला सानिध्य जिससे होता है वो एक नारी है, एक बुभुक्षु के तौर पर हमें कराई गयी पहली क्षुधा पूर्ति का माध्यम एक नारी होती है , और तो और हमारे समझदार और परिपक्व अवस्था मे पहुंचने या पंहुचाये जाने का आधार एक नारी ही होती है । हमारे ग्रंथो , शास्त्रों और ऋचाओं तक में नारी को शब्द दर शब्द, हरफ़ दर हरफ़ "नारी तू नारायणी" , "देवी" और महत्तम अलंकारों से विभूषित किया गया है ।गार्गी , अपाला, घोषा जैसी अनेक विदुषियों से हमारी प्राचीनता समृद्ध और गौरवशाली भी रही है ,
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 आधुनिकता की इस अंधदौड़ मे भी "हर सफल इंसान के पीछे एक नारी का हाथ" जैसे जुमले आम हैं , इस पूरे नैरेटिव में ही केंद्र में इंसान के तौर पर एक पुरुष को रखा जाना और नारी को उसकी प्रेरणा , आराध्या, देवी ,सहयोगी या सहायिका की भूमिका देना वर्तमान "जेंडर ईनेकुलिटी" की समस्या का वास्तविक आधार है ।,

 समझने की बात ये है कि कुदरत ने स्त्री और पुरुष को एक दूसरे के सम्पूरक और सहचारी के रूप में सृजित किया । पत्थर और फूल दोनों ही एक समेकित जीवन के लिए कितने आवश्यक हैं सभी जानते हैं । इस तर्ज़ पर ही बल यदि पुरुष को दिया तो करुणा , सहिष्णुता और सौंदर्य बोध स्त्री को । लेकिन सभ्यता के विकास के क्रम में पत्थर ने फूल की अवहेलना , बल ने करुणा पर बर्चस्व ,और पुरुष ने स्त्री पर अधिकार जिस तरह से किया है उसी का परिणाम है कि आज सारी बुराइयों , मसलन भ्रूण हत्या, लैंगिक शोषण, दहेज जैसे अभिशापों से पूरा समाज अभिशप्त है । 

संतुलन एक अवश्यम्भावी और अपरिहार्य प्रक्रिया है । किसी भी असमानता , अनैतिकता का परिहार और उसका संतुलन प्रकृति का अटल नियम है । सदियों से परतंत्रता को झेल रही आधी आबादी की अपने अधिकारों की लड़ाई आज की समस्या भर नही हैं बल्कि विश्व के तथाकथित विकसित हो चुके देशों में भी ये कुछेक दशकों में ही ज्वलंत हुए हैं ।
 फ्रांसीसी नारीवादी लेखिका सिमोन द बुआ ने अपनी चर्चित कृति ‛द सेकंड सेक्स’  में कहा कि,“ स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि उसे ऐसा बना दिया जाता है” सिमोन ने कहा कि पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को ‛द्वितीय लिंग’ का दर्जा दिया जाता है।

विचारक वर्जीनिया वूल्फ ने महिलाओं की  शोषित स्थिति को देखते हुए कहा कि,“महिला होने के नाते मेरा कोई देश नहीं है।” फायरस्टोन ने अपनी चर्चित कृति ‛डायलेक्टिक आफ सेक्स’ के अंतर्गत नारीवाद की नई व्याख्या देकर इससे जुड़े आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की। दार्शनिक केट मिलेट ने अपनी पुस्तक ‛सेक्सुअल पॉलिटिक्स’ के अंतर्गत बताया कि नारीवाद को एक राजनीतिक आंदोलन का रूप देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्त्री-पुरुष का संबंध प्राकृतिक न होकर राजनीतिक है। उन्होंने कहा कि स्त्री पर पुरुष का जो नियंत्रण है वह बायोलॉजिकल अंतर नही है बल्कि सामाजिक संरचना का परिणाम है । केट मिलेट की उपर्युक्त पुस्तक अमेरिका में नारी मुक्ति आंदोलन को बढ़ावा देने में विशेष रूप से उपयोगी साबित हुई।
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, इन पाश्चात्य विचारों से इतर यदि देखा जाए तो भारतवर्ष में स्त्री को सदैव श्रद्धेय माना जाता रहा है । हमारे आदिपुरुष भगवान शिव ने भी स्वयं को अर्धनारीश्वर के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया है ।शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप तो वस्तुतः उनके रौद्र स्वरूप को संतुलित करता है मानो , अर्द्ध नारीश्वर शिव वास्तव में स्वयं में कुछ अद्भुत सत्यता से रूबरू भी करते है । जैसे कि एक पुरुष की महानता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके हृदय में नारी शोभित करुणा कितनी अंतस्थ है , उनके तांडव और लास्य स्वरूप का ये संश्लेषण अद्भुत है स्वयं में, सूर्य का ओज और चाँद की शीतलता ।
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स्वतंत्र भारत में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए शुरू से ही प्रयास निरन्तर रहे हैं । भ्रूण परीक्षण को अपराध बनाकर , जननी माताओं को संबल देकर, कार्यस्थलो पर स्त्रियों को कानूनी अधिकार देकर, वीमेन हेल्पलाइन के द्वारा उन्हें सुरक्षा बोध देकर, घरेलू अहिंसा कानून के द्वारा उन्हें सबल करने आदि के प्रयासों के द्वारा औरतों को आत्मविश्वास देने के काम तो हुआ है , लेकिन इन सबके साथ इनको सही तरह से बरता जाए , इन कानूनों का सही सदुपयोग हो , जरूरतमंदों तक वास्तविक मदद पहुंचे इसकी बहुत सारी गुंजाइशें अभी भी शेष हैं ।
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कानून के द्वारा , सरकारों के द्वारा बनाये कानूनों और नियमों से इतर जरूरी है अपने अंतर्मन और सोच को बदलना । क्योंकि ये नियम और कानून तब तक ही प्रभावी हैं जब तक इनका भय है । आज आवश्यकता इस बात की है कि  पुरुष और स्त्री के मन मे एक दूसरे के लिए सम्मान हो दोनों अपनी अपनी भूमिकाओं को भी गौरवान्वित होकर निभाने की है । स्त्री को पुरुषत्व की गुणों को अपनाकर पुरुषों को ये बोध कराना की वो कम नहीं है ,नारीवादी आंदोलन  के एक उपकरण के तौर पर अच्छी बात है , परन्तु प्रकृति प्रदत्त कोमलता , करुणा, आंतरिक सौंदर्य,प्रेम जैसे जीवनदायी रसों से ही ये सृष्टि कालजयी और सौन्दर्यमयी बनी हुई है । इसके संरक्षण की जिम्मेवारी स्त्री और पुरुष दोनों की है ,इनके द्वारा ही मनुष्यता जीवित रह सकती है । पुरुष और स्त्री का सहचारी और सहयोगी बने रहना ही वास्तविक प्रकृति है -एवमस्तु !



Berlin

Berlin

वाह बहुत उत्कृष्ट सृजन किया आपने सर 👏👏👏👏👏👏👏🙏

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

बहुत शुक्रिया🙏

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

आपने बहुत सुंदर व सार्थक लिखा है एक व्यू मेरी बुक 'स्त्री हूँ ना 'पर दे दें 🙏

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

जी जरूर,,, सादर🙏

Vijay

Vijay

Very well balanced of Eastern and Western thoughts as well women and men, it's an absolute perspective 👌👍

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

Thanks alot 🙏

Pragya pandey

Pragya pandey

संक्षिप्त शब्दों मे ही नारीवाद का बहुत ही व्यापक भावार्थ की रचना की है आपने....उत्तम विश्लेषण नारीवाद पर 👌👌👌👌👌

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

हार्दिक आभार इस सूक्ष्म दृष्टि के लिए 😊🙏

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen prastuti lajwab likha aapne sir 👌

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

हार्दिक शुक्रिया और आभार काव्या जी !

17 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

17 सितम्बर 2022

बहुत शुक्रिया

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रचनाएँ
दैनिक
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किताब में दैनंदिन लेखन का समावेश है ।
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युवा भारत~

25 अगस्त 2022
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युवा भारत !क्रांति और रोमांस यानी प्रेम दोनों एक ही स्त्रोत से निकलते हैं । और ये दोनों ही बातें किसी व्यक्ति, परिवार ,समाज और देश के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं । युवा होना क

2

जल संरक्षण

26 अगस्त 2022
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जल संरक्षण ।क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच महाभूत । ये वो पांच तत्व है जिनसे न केवल मानव शरीर निर्मित होता है बल्कि किरदार के खत्म होने पर इन्हीं पंच तत्वों में हम सुपुर्द भी हो जाते हैं । &

3

धार्मिक उन्माद~

27 अगस्त 2022
5
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धार्मिक उन्माद~धारयते इति धर्म: , अर्थात जो धारण किया जाता है वो धर्म है । धर्म की परिभाषा उसका होना और अनुपालन इतना ही शालीन और सुस्पष्ट है । हमारी चिंतन परम्परा में भी चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम

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अवैध निर्माण~

29 अगस्त 2022
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अवैध निर्माण ~निर्माण एक रचनात्मक प्रक्रिया है । घर का निर्माण , भवन का निर्माण , सृष्टि का निर्माण हो या व्यक्तित्व का निर्माण । नींव से लेकर अपनी परिणति प्राप्त करने तक यह एक वृहद कर्मयज्ञ का

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हिंदी दिवस पर~

14 सितम्बर 2022
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हम हिन्दी भाषियों के लिए हिंदी की एक सामान्य परिभाषा यही है कि यह हमारी अपनी भाषा है । भाषा , जो वास्तव में संस्कृति का एक अंग हैं । और संस्कृति की मजबूती और प्रसार आजकल अर्थ के पहियों पर गतिमान रहती

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इंतेज़ार और सही~

14 सितम्बर 2022
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इंतेज़ार एक ऐसा लफ्ज़जिसमें समूचा जीवनअंगड़ाई ले सकता है ।कायनात की हर शय मानोकिसी के इंतेज़ार में ही है ।बच्चा जवान होने के इंतेज़ार मेंतो कोई फिर सेबच्चा होने की चाह रखता है ●●●●

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बारिशें~

15 सितम्बर 2022
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बारिश एक भीगन ही नही ये एक प्रतीक है संयोग और वियोग का , जहां नीरद से निकला नीर सदानीरा में परिवर्तित हो रहा होता है । इस यात्रा में अनंत पड़ाव है । तीव्रता है तो मादकता भी , पर्वतों पर कलकल करती मीठी

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मानव एक पूंजी ~

15 सितम्बर 2022
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मानव एक संसाधन है । एक ऐसी पूंजी जिसके हाथों ने सदियों से इस सृष्टि को अथक रूप से निरंतर गढ़ा है । सृजन से लेकर विनाश तक अनेकों बार सृष्टि के खेल को देखते ,समझते और सहेजते मानव ने आज वो मुकाम हास

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पितृ पक्ष~

16 सितम्बर 2022
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श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।पितृ पक्ष यानी पित

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नारीवाद~

17 सितम्बर 2022
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नारीवाद~एक इंसान के तौर पर जब हम इस धरती पर आते है तो सबसे पहला सानिध्य जिससे होता है वो एक नारी है, एक बुभुक्षु के तौर पर हमें कराई गयी पहली क्षुधा पूर्ति का माध्यम एक नारी होती है , और तो और हमारे स

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मिमी कहानी एक माँ की ~

17 सितम्बर 2022
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6

रिश्ता ! क्या होता है ये रिश्ता और इनके मायने क्या होते हैं ? कौन देता है इन्हें मां बाप ,भाई बहन और ऐसे अनेकों नाम, साथ ही इनमे जन्म लेती और पल्लवित होती भावनाएं और एक अपनत्व को जतलाता हुआ अख्त

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अंधविश्वास~

18 सितम्बर 2022
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अंधविश्वास~आंख मूंद कर किया जाने वाला विश्वास ही अंधविश्वास है । तर्क से परे होकर किसी भी व्यवस्था और विचार को स्वीकारना और उसका अनुकरण करना ही अंधविश्वास है । यहां व्यवस्था और वो विचार किसी भी

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बात इक रात की~

18 सितम्बर 2022
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7

नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर

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कभी कभी अक्सर~

19 सितम्बर 2022
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8

इक शब गुजर गई फिर से उसकी प्यास से हारकर , गुम गए कुछ सितारे जो यूँ ही उग आए थे रेगिस्तानी आकाश पर गैर मापे पूरे दिन को , इक उम्मीद बुझ गयी फिर से संभावनाओं की गोद में मुँह छिपाकर । .इक गम फिर से अधूर

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एक तुम्हारा होना~

19 सितम्बर 2022
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एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

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क्या लिखूँ का सवाल ~

20 सितम्बर 2022
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2

अक्सर ऐसा होता है कि इंसान प्यार को भूलने की क़वायद में उसे लिखने लगता है । प्यार को लिखना उसको भूलने की भरसक कोशिश होती है । प्रेम की लेखनीय अभिव्यक्ति उस पीर से निज़ात पाने की कोशिश है । यकीन ना हो तो

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कोरोना काल और डायरी के पन्ने~

20 सितम्बर 2022
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2

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ये कहते हुए अरस्तू को कोरोना जैसे "अति सामाजिक " प्राणी का ख्याल शायद रहा हो ना रहा हो लेकिन मनुष्य के सहअस्तित्व को चुनौती देता ये सूक्ष्म दानव आज एक बार फिर से भागती दौड़त

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जैविक खेती~

21 सितम्बर 2022
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6
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जैविक खेती।।मानव सभ्यता के विकास में सर्वप्रथम क्रांति खेती की खोज थी । तकरीबन दस हज़ार वर्ष पूर्व इसे नवपाषाण क्रांति के रूप में भी जाना जाता है । खेती यानी मनुष्य के मनुष्यता की गाथा । खेती यानी जानव

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पुस्तकों की दुनिया~

22 सितम्बर 2022
11
7
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किताबें बहुत ही पढ़ी होंगी तुमने~पुस्तक एक संग्रह है ज्ञान का, एक संग्रह अनुभव का ,यह एक समेकन होती है अनुभूतियों की । एक विचार ,एक सोच , अर्जित एक सम्पूर्ण जीवन कैद होता है एक उत्तम पुस्तक में । पुस्त

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क्या लिखूँ ~

24 सितम्बर 2022
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मैं चाहता था कुछ ऐसा लिखूं जो कुछ अद्भुत बन जाये, कुछ ऐसा जो लेखन की मापनी में ना समाया जा सके , मैंने बहुत सोचा , मन के पतंगे की करनी साधी , उसे कल्पना के नवनीत नभपटल में ले जाकर छोड़ा , हर बार उसके ब

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क्षमा करना हिंदी मां !

24 सितम्बर 2022
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1

साहित्य एक पवित्र नदी की तरह है । एक ऐसी नदी जिसमे स्नान करके मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है । ये वो गंगा है जिसके पवित्र जल से सभ्यताएं तक पुनीत होती आयी है ।... साहित्य रूपी गंगा क

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ग्राम गमन~

4 अक्टूबर 2022
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गांव जाता हूँ तो टुकड़ा टुकड़ा हो जाता हूँ , गाँव यानि जड़ें , जहां जीवन बसता है , जहां से प्राण तत्व निकलता है मानो , हालांकि जड़ों की शुष्क कठोरता भी एक अदद सच्चाई है , जड़ों तक पहुचने की बेचैनी अक्सर पत

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जब मिलना समंदर से~~

4 अक्टूबर 2022
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3

पत्थरों के किनारे ओढ़ रखे है दरिया ने , राहगीर देखते है , अक्सर समझते है , कौन स्पर्श करे इन्हें , अगर ये फूट गए , तो कौन रोकेगा उमड़ते हुए नीर को, कौन संभालेगा इसकी पीर को

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शायद हो~

7 अक्टूबर 2022
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शायद हो...इस जहां के पार एक दूसरा जहां ,जहां ना हो कोई नफ़रतें ना शिकवे ना गिले,, जहां लोग एक दूसरे से हंस के मिले तो बस हँस के ही मिले ,, ऐसा एक जहाँ , जिसकी जमीं पर तानों के कांटे ना चुभते हो , ,हां

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दीपावली~

23 अक्टूबर 2022
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त्योहार दीवाली का है तो मन वीणा के तार झंकृत ना हो जाये ऐसा संभव कैसे हो सकता है ।त्योहार की संकल्पना वास्तव में भारतीय परंपरा का एक अद्भुत पहलू है , जिसमे अंतरिक्ष की ज्यामिति , भूगोल की तारतम्यता ,

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5जी तकनीक ~

3 नवम्बर 2022
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बचपन की यादों में अक्सर आसमानी रंग के वो दो पन्ने याद हो आते है ,जिसे अंतरदेशी कहा जाता था , जो आपस मे जुड़े होकर अपने ऊपर लिखी इबारतों से न जाने कितनी दूर बैठे दो लोगों को जोड़ने का काम करते थे ।

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वैश्विक जलवायु परिवर्तन~

5 नवम्बर 2022
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जब भी जलवायु परिवर्तन की बात होती है । ना जाने कहाँ से उस विशाल अजगर की कहानी ज़ेहन में तैरने लगती है ,जो इतना विशाल था जितना स्वयं में एक टापू हो। जिसकी सुषुप्त अवस्था में उसके तन पर हरे भरे मैदान को

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