किताबें बहुत ही पढ़ी होंगी तुमने~
पुस्तक एक संग्रह है ज्ञान का, एक संग्रह अनुभव का ,यह एक समेकन होती है अनुभूतियों की । एक विचार ,एक सोच , अर्जित एक सम्पूर्ण जीवन कैद होता है एक उत्तम पुस्तक में । पुस्तक का लेखक जिस स्तर पर जाकर उस पुस्तक का सृजन करता है उसका अभीष्ट ध्येय पाठक को भी उसी भाव भूमि के धरातल पर पहुंचाने की होती है।
व्यक्तित्व के विकास में पुस्तकों की भूमिका किसी से छिपी नही है । पुस्तकों ने हर आम ओ खास के जीवन में उल्लेखनीय बदलाव किये हैं । इसे यो कहा जाये तो ग़लत नही होगा कि अपने जीवन काल में जिन पुस्तकों के संपर्क में आप आये उन्हीं से आपके व्यक्तित्व के निर्माण की बुनियाद बननी आरम्भ हुई । महान क्रांतिकारी युवा भगत सिंह 23 साल की उम्र में जिस दिन फांसी पर चढ़ने जा रहे थे एक पुस्तक पढ़ रहे थे । इस बारे में एक गूढ़ तथ्य मैं और सांझा करना चाहूंगा कि पुस्तकों का चयन आपका अपना नही होता है बल्कि पुस्तकें आपको स्वयं चुन लेती हैं ।
व्यक्तिगत तौर पर मुझे पहली पुस्तक स्मरण में नहीं आती , यूँ था कि बचपन मे सहित्य से काफी लगाव था । और ये साहित्यिक भूख नैसर्गिक होती है । बाल सुलभ कथाएँ चंदामामा, नंदन और नन्हे सम्राट की कहानियां एक अलग ही दुनिया से साक्षात्कार करवाते । कॉमिक्स की अपनी एक अलग दुनिया थी । सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, भोकाल, बांकेलाल ,परमाणु जैसे तमाम चरित्र जैसे अपने साथ अपनी दुनिया मे ले जाकर छोड़ जाते थे जैसे एलिस अपने वंडरलैंड में अक्सर गुम हो जाया करती थी 😊 ,
तरुणावस्था में प्रेम साहित्य का शिखरतम रूप जिस पुस्तक में अनुभूत हुआ वो थी धर्मवीर भारती की गुनाहों का देवता । उस पुस्तक का नोस्टाल्जिया आज भी जेहन में अक्सर चढ़ आता है । नायक चंदर में हर युवक स्वयं को अक्सर ढूंढ लेता है । साथ ही हर प्रेमी की प्रेयसी सुधा के व्यक्तित्व को कही जाकर स्पर्श कर ही आती है । मुझे लगता है प्रेम की सारी दर्ज कहानियां जहां दूध की नदियां बहाने, रेगिस्तान की खाक छानने , पहाड़ को काटकर रस्ता बनाने, ताज़महल बनाने जैसे प्रतिमानों से युक्त हैं तो गुनाहों का देवता एक ऐसे सामान्य से भाव धरातल पर ले जाकर छोड़ देती है जिसकी अनुभूति शर्तिया हर मध्यम सामान्य इंसान कर चुका है या कर रहा होता है ।
यह कहानी ये बताती है कि प्रेम सींचित एक व्यक्तित्व जीवन के एक पक्ष में देवता सदृश प्रतीत होता है तो दूसरे ही पक्ष में वह गुनाहों के देवता में तब्दील हो जाता है । सुधा, बिनती और पम्मी जैसे कितने ही चरित्र आपको अपने आस पास टहलते मिल ही जायेंगे । इस कहानी का भाव पक्ष आज भी अपील करता है । बहरहाल~
क्रमशः पुस्तकों के संसार मे दाखिल हुए तो हर पुस्तक आपको एक नई सोच और दिशा देने को उत्सुक नजर आती है । प्राचीन काल की श्रृंगारिक कहानी दिव्या हो या फिर मध्यकालीन बिहारी के श्रृंगारिक दोहे , आधुनिक प्रतिमानों से इतर इन सभी मे एक अलग मांसलता अनुभुत होती है ।
मुंशी प्रेमचंद की समस्त पुस्तकें समाज के प्रत्येक वर्ग की कहानी कहती रही हैं । गबन ,निर्मला, प्रेमा मध्यम वर्गीय समाज के सोच और ढकोसलों पर बड़ी ही शालीनता से प्रहार करती हैं । मुंशी जी के विचारों का शिखरतम सौंदर्य मुझे गोदान में परिलक्षित होता हैं ।
एक किसान के रूप में होरी की कहानी जहां भारतीय किसानी के बेचारगी से आपका नंगा परिचय करवाएगी तो मध्यम वर्गीय कोरी ठसक को मालती, राय साहब ,मेहता जैसे चरित्रों से भी परिचित कराएगी । गोदान समाज के नंगे प्रतिविम्ब के रूप में साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है ।
पुस्तकों के संसार में जाकर किसी एक पुस्तक के बारे में कुछ भी कह देना मुझे जैन स्यादवाद के उस सिद्धांत की तरह ही लगता है जिसमें सात दृष्टिहीनों ने अपने हाथ मे आये हाथी के हर अंग को जैसे सम्पूर्ण हाथी मानकर वर्णन किया था ।
यहां यह भी सत्य है कि इस लघु जीवनकाल में प्रत्येक विचारों , समस्त सोच और सारे साहित्य से परिचय सम्भव नहीं हो सकता फिर भी कुछ आधारभूत पुस्तकों से गुजरे बिना उनके अनुभव रस के पान बिना उनके ज्ञान सागर में उतरे बिना जीवन को सही रूप में ना बोधे जाने और उसकी सार्थकता का मलाल तो बच ही जायेगा । समय निकालकर पुस्तकों को अपने जीवनचर्या में हम सभी को जरूर शामिल करना चाहिये~