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अध्याय 3: रहमान का बेटा

20 अगस्त 2023

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पंजाब के एक छोटे-से कस्बे में सरकारी नौकरी करते हुए मैने वहां के निम्न वर्ग को काफी पास से देखा। इधर-उधर उनमें जो चेतना जाग्रत हो रही थी उसका अनुभव किया और एक दिन यह कहानी लिख बैठा । एक ही बैठक में मैंने बहुत कम कहानियां लिखी है लेकिन इस कहानी को लिखते समय न मुझको कुछ सोचना पड़ा और न मुझे कल्पना ही करनी पडी। मेरी इस कहानी की भी बहुत चर्चा हुई है।

क्रोध और वेदना के कारण वारणी में गहरी तलखी आ गई थी और बात- वह चिनचिना उठता था । यदि उस समय गोपी न आ जाता तो सम्भव था कि वह किसी बच्चे को पीट देता और इस प्रकार अपने दिल का गुबार निकालता । गोपी ने श्राकर दूर से ही पुकारा, 'साहब सलाम भाई रहमान ! कहो क्या बना रहे हो ?"

रहमान के मस्तिष्क का पारा सहसा कई डिग्री नीचे आ गया, यद्यपि क्रोध की मात्रा अभी भी काफी थी, बोला, 'आश्रो गोपी काका । साहब सलाम ।' 'बड़े तेज़ हो रहे हो, क्या बात है ?"

गोपी बैठ गया । रहमान ने उसके सामने बीड़ी निकालकर रखी और फिर सुलगाकर बोला, 'क्या बात होगी काका ! श्राजकल के छोकरों का दिमाग बिगड़ गया है । जाने कैसी हवा चल पड़ी है। मां-बाप को कुछ समझते ही नहीं ।'

गोपी ने बीड़ी का लम्बा कश खींचा और मुस्कराकर कहा, 'रहमान, बात हमेशा ही ऐसी रही है। मुझे तो अपनी याद है। बाबा सिर पटककर रह गए मगर मैं चटशाला में जाकर ही नहीं दिया । अब बुढ़ापे मे वे दिन याद आते हैं । सोचता हूं, दो अच्छर पेट में पड़ जाते तो ।'

बीच में बात काटकर रहमान ने तेज़ी से कहा, 'तो काका, नशा चढ़ जाता । अच्छरों में नाज से ज्यादा नशा होवे है । यह दो अच्छर का नशा ही तो है जो सलीम को उड़ाए लिए जावे है । कहवे है, इस वस्ती में मेरा जी नहीं लगे । सब गन्दे रहवे है । बात करने की तमीज़ नहीं । चोरी करने से नहीं चूके।'

गोपी चौंककर बोला, 'सलीम ने कहा ऐसे ?'

'जी हा, सलीम ने कहा ऐसे और कहा हम इन्सान नहीं हैं, हैवान है । जैसे नाली मे कीड़ बिलबिलावे है न, उसी तरह की हमारी जिन्दगी है ।'

कहते कहते रहमान की ग्रांखें चढ़ गई। बदन कांपने लगा। हुक्के को, जिसे उसने अभी तक छुप्रा भी नहीं था, इतने जोर से पैर से सरकाया कि चिलम नीचे गिर पड़ी और आग बिखरकर चारों ओर फैल गई। तेजी से पुकारा, करीमन ! ओ हरामजादी करीमन ! कहां मर गई जाकर ले जा इस हुक्के को । साला, श्राज हमें गुण्डा कहवे है''''

गोपी ने रहमान की तेजी देखकर कहा, 'उसका बाप स्कूल में चपरासी था

'जी हां, वही असर तो खराब करे है। पढ़ा नहीं था तो क्या; हर वक्त पढ़े-लिखों के बीच रहवे था मगर साले ने किया क्या ? भरी जवानी में हाथ फैलाकर मर गया । बीबी को कहीं का भी नहीं छोड़ा। न जाने किसके पल्ले पड़ती, वह तो उसकी मा ने मेरे श्रागे धरना दे दिया। वह दिन और श्राज का दिन; सिर पर रखा है । कह दे कोई सलीम रहमान की श्रीलाद नहीं है । पर वह बात है काका'

आगे जैसे रहमान की प्रांख में कहीं से आकर कुरणक पड़ गई। जोर-जोर से मलने लगा । उसी क्षरण शून्य में ताकते ताकते गोपी ने कहा, 'सलीम की मा बड़ी नेक दिल औरत है ।'

रहमान एकदम बोला, 'काका, फरिश्ता है। ऐसी नेक दिल श्रौरत कहां देखने को मिले है आजकल । क्या मजाल जो कभी पहले शौहर का नाम लिया हो ! ऐसी जी-जान से खिदमत करे है कि बस सिर नहीं उठता। और काका, उसीका नतीजा है । तुमसे कुछ छुपा है । कभी इधर-उधर देखा है मुझे ?'

गोपी ने तत्परता से कहा, 'कभी नहीं रहमान, मुंह देखे को नहीं; ईमान की बात है। पांच पंचों में कहने को तैयार हूं।'

'और रही चोरी की बात ! किसीके घर डाका मारने कौन जावे है यू सेत में से घास-पात तुम भी लावो ही हो काका ।'

गोपी बोला, 'हां लावूं हूं । इसमें लुकाव की क्या वात है । और लावें क्यों न ? हम क्या इतने से भी गए ? बाबू लोग रोज जेव भरकर घर लौटे । सच कहूं, रहमान ! तनखा बांटते वक्त अंगूठा पहले लगवा लेवे और पैसों के वक्त किसी गरीब को ऐसी दुत्कार देवें कि बिचारा मुह ताकता रह जावे। इस सत्यानासी राज में कम अंधेर नहीं है । पर बेमाता ने हमारी सरकार की किस्मत में न जाने क्या लिख दिया है, दिन-रात चौगुनी तरक्की होवे है। गांधी बाबा की कुछ भी पेश नहीं आवे ।'

रहमान ने सारी बातें बिना सुने उसी तेज़ी से कहा, 'बाबू क्यो ? वे जो अफसर होते हैं; साव बहादर, वे क्या कम है ? किसी चीज पर पैसा नही डाले हैं । और काका ! यह कल का छोकरा सलीम हमे गुण्डा बतावे है । गुण्डे साले तो वे है | सच काका ! कलब मे सिवाय बदमाशी के वे करें क्या है। शराब वे पिएं, जुम्रा वे खेलें और

'और क्या ? हमारे साब के पास आए दिन कलब का चपरासी आवे है । कभी सो, कभी डेढ़ सौ सदा हारे ही है पर रहमान, उसकी मेम बड़ी तकदीर की सिकन्दर है । जब जावे तब सौ सवा सौ खींच लावे है ।'

'मेम साब !... काका तुम क्या जानो ? उनकी बात और है। जितने ये साब बहादर है; और साब क्यों, बड़े-बड़े वकील, बलिस्टर, लाला सभी ग्राजकल कलब जावे हैं । मुस्लमान को शराब पीना हराम है; पर वहां बैठकर विस्की, जिन, पोरट, सेरी सब चढ़ा जावे हैं । औरतें ऐसी गिर गई हैं कि पराए मरद के कमर में हाथ डालकर लिए फिरे है और वे हंस-हंसकर खिलर-खिलर बातें करे हैं । काका ! जितनी देर वे वहां रहते है; ये यही कहते रहे हैं, 'उसकी बीबी खूबसूरत है । इसकी जोरदार है । सरमा खुश किस्मत है, रफीक की लौंडिया उसके घर जावे है । गुप्ता की बीबी उसके पास रहे है ।' सारा वक्त यही घुसर- पुसर होती रहे। और मौका देख कोई किसीके साथ उड़ चले है । उस दिन जीत की खुशी में ड्रामा हुआ था। पुलिस के कप्तान लाला जी बने थे । वे लाला जी बनकर लोगों को हंसाते रहे और मेजर साहब उनकी बीबी को लेकर डाक बंगले की सैर करने चले गए। ये है बड़े लोगन का चाल-चलन। ये हमारे

आका''''हमारे भाग की लकीर इन्हींकी कलम से खिंचे हैं।'

गोपी ने फिर जोर से बीड़ी का कश खीचा और गम्भीरता से कहा, 'रहमान ! देखने में जो जितना बड़ा है असल में वह उतना छोटा है।'

'और खोटा भी ।'

'और क्या ।'

और इन्हीं के लिए सलीम हमें बदतमीज़, बदसहूर, बेअकल न जाने क्या-क्या कहवे है । मैने भी नोच लिया है कि आज उससे फैसला करके रहूंगा। मैने हमेस उसे ना समझा है। नहीं तो''''नहीं तो'''''

गोपी ने अब अपना डण्डा उठा लिया। बोला, 'रहमान, कुछ भी हो, सलीम नेरा ही लड़का माना जावे है। जवान है; प्रबे तवे से न बोलना, समझा; आजकल हवा ही ऐसी चल पड़ी है। और चली कब नहीं थी ? फरक इतना है कि पहिले मार खाकर बोलते नहीं थे श्रव सीधे जवाब देवे हैं''।'

रहमान तेज ही था कहा, 'मैं उसके जवाबों की क्या परवा करूं काका । जावे जहन्नुम में मेरा लगे क्या है ? और काका । मैं उसे मारूंगा क्यों ? मेरे क्या हाथ कुले हैं। मैं तो उससे दो बात पूछूंगा, रास्ता इधर या उधर । और काका, मुझे उस साले की जरा भी फिकर नहीं है। फिकर उसकी मा की है। यू नो प्रौलाद और क्या कम है पर जरा —यही कुछ सहूरदार था ''''काका, सोचता था पढ़-लिखकर कहीं मुंशी बनेगा, जात-बिरादरी में नाम होगा। लेकिन लिखा क्या किसीसे मिटा है ?'

गोपी बोला, 'हां रहमान लिखा किसीसे नहीं मिटा ! अब चाहे तो मालिक भी नही मेट सकता। ऐसी गहरी लकीर बेमाता ने खींची है। सो भइया, अपनी इज्जत अपने हाथ है। ज़्यादा कुछ मत कहना। पढ़ों-लिखों को गैरत जल्दी या जावे है । समझा..?'

'समझा काका ।'

और फिर गोपी डंडा उठा, घास की गठरी कंधे पर डाल साहब सलाम करके चला गया। रहमान कुछ देर वहीं शून्य में बैठा धुंधले होते वातावरण को देखता रहा । मन में उमड़-घुमड़कर विचार प्राते और आपस में टकराकर छितरा जाते । वे भील के गिरते पानी के समान थे, गहरे और तेज़। इतने तेज कि उफनकर रह जाते । उनका तात्कालिक मूल्य कुछ नहीं था, इसीलिए उसके मन की झुंझलाहट और गहरी होती गई । करुणा और विषाद कोई उसे कम नहीं कर सका । आखिर वह उठा और अन्दर चला गया ।

घर में सन्नाटा था । बच्चे अभी तक खेलकर नहीं लौटे थे। उसकी बीवी रोटियां सेंक रही थी। सालन की खुशबू उसकी नाक मे भर उठी। एक नज़र उठाकर अपनी बीवी को देखा - शांत चित्त वह काम में लगी है । उसके कानों के लम्बे बाले रोटी बढ़ाते समय वेग से हिलते है। उसके सिर का गन्दा कपड़ा खिसककर कधे पर श्रा पडा है । यद्यपि जवानी बीत गई है तो भी चेहरे का भराव अभी हल्का नही पड़ा है। गोरी न होकर भी वह काली नहीं है । उसकी श्रांखों में एक अजीब नशा है । वही नशा उसे बरबस खूबसूरत बना देता है। जिसकी ओर वह देख लेती है एक बार तो वह ठिठक ही जाता है। रहमान सहसा ठिठका - उन दिनों इन्हीं प्रांखों ने मुझे बेबस बना दिया था। नहीं तो।

सहसा उसे देखकर बीवी बोल उठी, 'इतने तेज़ क्यों हो रहे थे । गैरों के आगे क्या इस तरह घर की बात कहते हैं ?”

रहमान कुछ तलखी से बोला, 'गैरों के आगे क्या ? पानी अब सर से उतर गया है । कल को जब घर से निकल जावेगा तब क्या दुनिया कानों में रूई ठूम लेगी या श्रांखें फोड लेगी ?"

बीवी को दुःख पहुंचा । बोली, 'बाप-बेटे क्या दुनियां में कभी अलग नहीं होते ?"

'कौन कहे है वह मेरा बेटा है ?'

'और किसका है ?'

'मैं क्या जानू ?'

'ज़रा देखना मेरी तरफ ! मैं तो सुनू ।'

तिनककर उसने कहा, 'क्या सुनेगी ? मेरा होता तो क्या इस तरह कहता । जबान खींच लेता साले की ।'

'देखूंगी किस-किसकी जबान खींचोगे । श्रभी तक तो एक भी बात नहीं सहारता ।'

'बच्चे और जवान बराबर होवे है ?"

'नहीं होवें पर पूत के पांव पालने में नज़र आ जावे हैं । और फिर वही कौन-सा जवान है ? अल्हड उमर है। एक बात मुंह से निकल गई तो उसीको सिर पर उठा लिया। तुम्हारा नहीं तभी तो अपना होता तो क्या इस तरह ढोल पीटते । अपनों के हजार ऐब नजर नहीं आवे हैं। दूसरों का एक जरी सा पहाड़ बन जावे है''''''

रहमान कुछ भी हो इतना मूर्ख नहीं था। उसने समझ लिया उसने बीवी के दिल को दुखाया है पर वह क्या भरे ? सलीम से उसे क्या कम मोहब्बत है ? पेट काटकर उसे रहमान ने ही तो स्कूल भेजा है। उसके लिए अब भी कभी बड़े बाबू से, कभी डिप्टी, कभी बड़े साहब से गिडगिड़ाता रहता है। इतनी गहरी मोहब्बत है, तभी तो इतना दुःख है । कोई गैर होता तो ।

तभी उसके चारों बच्चे बाहर से शोर मचाते हुए आ पहुंचे। वे धूल-मिट्टी से लिथडे पड़े थे । परन्तु गन्दे और श्रद्धं नग्न होने पर भी प्रसन्न थे। सबसे बड़ी लड़की लगभग बारह वर्ष की थी । श्राते ही खुशी खुशी बोली, 'अम्मी ! आज हम भइया की जगह गए थे।'

रहमान को कुछ अचरज हुआ पर वह जला-भुना बैठा था। कड़ककर बोला, 'कहा गई थी चुड़ैल ?"

लड़की सहम गई । घबराकर बोली, 'भइया की जगह ।' 'कौन-सी जगह ?"

'जहां भइया जाते है | दूर'।'

छोटा लड़का जो दस बरस का था अब एकदम बोला, 'अब्बा, वहां बहुत सारे प्रादमी थे ।'

तीसरा भी आठ बरस का लड़का था। आगे बढ़ पाया, कहा, 'वहां लैक्चर हुए थे।'

रहमान अचकचाया, 'लैक्चर ?'

लड़की ने कहा, 'अब्बा ! लैक्चर हुए थे। भइया भी बोले थे। लोगों ने बड़ी तालियां पीटी !'

अम्मी का मुख सहसा खिल उठा। गर्व से दृष्टि उठाकर उसने रहमान को देखा। फिर बोली, 'क्या कहा उसने ?'

लड़की मुरझा चली थी, सहसा दुगने उत्साह से भर उठी, कहने लगी, 'अम्मी भइया ने बहुत-सी बहुत-सी बातें कही थीं। हम गन्दे रहते है, हम अनपढ़ हैं, हम चोरी करते हैं। हमें बोलना नहीं श्राता। हमें खाने को नहीं मिलता।'

रहमान चिहुंचकर बोला, 'देखा तुमने ।'

बीवी ने तिनककर कहा, 'सुनो तो। हां, और क्या लाली ?'

लडका बोला, 'मैं बताऊं अम्मी ! भइया ने कहा था कि इसमें हमारा ही कसूर है ।'

'हां', लड़की बोली, 'उन्होंने कहा, बड़े लोग हमें जान-बूझकर नीचे गिराते जावे है और हम बोले ही नही ।'

और फिर अब्बा की तरफ मुड़कर बोली, 'क्यों प्रव्या, वे लोग कौन है ?' अब्बा तो बुत बने बैठे थे; क्या कहते ।

लडका कहने लगा, 'अब्बा ! और जो उनमे बड़े आदमी थे सबने यही कहा- हम भी आदमी है। हम भी जिएंगे। हम अब जाग गए हैं।'

अम्मी ने एक लम्बी सांस खीची। चेहरा प्रकाश से भर उठा, 'सुनते हो सलीम की बातें ।'

रहमान अब भी नहीं बोला। लड़की वोली, 'और अम्मी ! भइया ने मुझसे कहा था, मैं अब घर नहीं आऊंगा ।'

'नहीं आएगा ?'

'हा अम्मी ।'

रहमान की निद्रा टूटी, 'क्यों नही आएगा ? क्योंकि हम गन्दे है... ?'

'नही अब्बा !' लड़की एकाएक अतिशय गम्भीर हो आई, बोली, 'भइया ने मुझसे कहा था, अब इस घर में नहीं रहूंगा। नया घर लूगा, बहुत साफ, अब्बा से कह दीजो वहां रहने से गड़बड़ हो सकती है। हम लोगों के पीछे पुलिस लगी रहती है। वहां प्राएगी तो शायद अब्बा की नौकरी छूट जावे ।'

..

और फिर व्यग्रता से बोली, 'क्यों अब्बा ! पुलिस क्यों श्रावेगी -- ?' लेकिन अब्बा हों तो बोलें। उनके तो सिर में भूचाल आ गया है। वह घूम रहा है, घूम रहा है, रुकता ही नही."

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