अंग्रेज़ी
संतान
जब तक किसी बड़े
की
बेइज़्ज़ती न कर डाले,
कोई आज इस समाज
में
होशियार नहीं
बनता ?
जब तक बड़ों पर
हाथ न उठा लें,
आजकल तब तक कोई
इज़्ज़तदार नहीं
बनता ।
कहाँ जा रहा है
आज अपना समाज ?
इसके नैतिक
मूल्य
क्या वास्तव में
खो गए हैं ?
अन्यथा आज यह
युवा शक्ति के
आगे
नतमस्तक, बेबस,
दमित होकर
तुच्छ और
संकीर्ण हो गए हैं ।
एक ज़ाहिल युवा
बुज़ुर्ग से
उलझता है ।
बात करने की
तहज़ीब
उनसे सीखने को
कहता है ।
अध्यापकों का
मज़ाक उड़ाना
विद्यालयों में
पिकनिक मनाना ।
वर्तमान के युवा
की
सशक्त पहचान है
।
ये सब स्वघोषित
बुद्धिमान हैं
ख़ुद को स्मार्ट
भी समझते हैं ।
जब भी कोई
इन्हें समझाता है
ये बेवज़ह
भड़कते हैं ।
माँ और बाप इन
सयानों को
मूर्ख नज़र आते
हैं ।
जिनके टुकड़ों
पर पलते हैं
उन्हीं पर रौब
जमाते हैं ।
अपनी कमियाँ
छिपाने को
किसी पर भी आरोप
लगाते हैं ।
बड़े भाई बहन
कुछ कह दें
तो ये शेर हाथ
उठाते हैं ।
बेहूदा हरक़ते
और
निर्लज्ज पहनावा
इन कमसिनों की
पहचान है ।
मर्यादाओं को
तार-तार करतीं,
ये आधुनिक भारत
की
अंग्रेज़ी संतान
हैं ।।