दहेज के नाम पर,
जो बहुओं को जलाते हैं ।
किसी की लाड़ली को ब्याहकर,
क़हर पर क़हर ढाते हैं ।
किसने दिया है हक़ इन्हें,
किसी को भी जलाने का ।
ख़ुदा की क़ायनात के,
हँसते हुए फूल कुचल जाने का ।
कितने बड़े वहशी हैं,
ये आदमख़ोर हैं ।
ख़ुदा की इस रियाया में,
ये नर पिशाच हैं ।
दोज़क बना डाला जहाँ,
अब ये भी कर डालिए ।
बहुएं जलाने से पहले,
अपनी बेटियाँ भी जलाइए ।
बहुएं भी किसी की बेटी हैं,
किसी का अरमान हैं ।
ये समझना छोड़ दो,
नारी विलासिता का सामान है ।
शर्म करो डूब मरो,
माँ के दूध को लजाते हो ।
अनुपम निर्मल संस्कृति में,
ज़हर तुम मिलाते हो ।
किसी की लाड़ली तुम जलाओगे,
कोई तुम्हारी लाड़ली जलाएगा ।
वो दिन दूर नहीं है,
सिर्फ औरत नाम रह जाएगा ।
धन की मृगतृष्णा में,
क्या सब लुटा डालोगे ?
जिस कोख से जन्मे हो,
क्या वही मिटा डालोगे ?