गरीबी के
पाटों में पिसता देश
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ?
मुफ़लिस और किसान
शस्त्र हाथों में लेता जाएगा ।
ऊँचनीच और भेदभाव
बर्बाद हिन्द कर जाएगा ।
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ।
आग पेट की यदि न बुझे
तो तन-मन आग उगलता है ।
इस पापी पेट की ज्वाला में
आधा भारत जलता है ।
इन असहायों के आँसू में
एक दिन भारत बह जाएगा ।
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ?
देखो सरकारी गोदामों में
हक़ इनका सड़ता है ।
नेताओं के खातों पर
धन इनका चढ़ता है ।
राजनीति यदि यही रही
ये देश-धर्म बिक जाएगा ।
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ?
जब-जब मांगें ये हक़ अपना
इन्हें लाठियाँ मिलती हैं ।
खानों और मिलों में जाने
कितनी लाशें गिरती हैं ।
कामगार हिन्द-ए-माटी का
क्या इसी तरह मिट जाएगा ?
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ?
खाद्य सुरक्षा देने भर से
क्या जठर अग्नि बुझ जाएगी ?
कानून बना देने भर से
क्या भूख खत्म हो जाएगी ?
सरकार विरोधी नक्सलबाड़ी
क्या गाँव-गाँव बन जाएगा ?
कब तक देश गरीबी के
पाटों में पिसता जाएगा ?