30 सितम्बर 2015
धन्यवाद प्रियंका जी...
4 अक्टूबर 2015
राघवेन्द्र जी , बहुत सही बात लिखी है ।.
3 अक्टूबर 2015
धन्यवाद वर्तिका जी एवं ओम प्रकाश जी...
2 अक्टूबर 2015
निज भाषा, संस्कृति, साहित्य और सभ्यता ही हमारी पहचान है, इसे सशक्त बनाना, संवर्धन करना ही हमारा कर्तव्य है ! विभिन्न भाषाओँ-बोलियों का ज्ञान होना अच्छा है लेकिन उनके वशीभूत होना निज पहचान की उपेक्षा करने जैसा होगा ! सुन्दर-सटीक-सार्थक रचना !
30 सितम्बर 2015