दहेज
दानव
कब तक अपनी बहू बेटियाँ
चढ़ती रहेंगी बलिवेदी पर ।
इस दहेज दानव के मुख का
कब तक रहें निवाला बनकर ?
कब तक इनके पैरों में
जकड़ी रहेंगी बेड़ियाँ ?
कब तक हम सब हाथों में
पहने रहेंगे चूड़ियाँ ?
कब तक भ्रष्ट समाज के आगे
अपनी इज़्जत नतमस्तक होगी ?
कब तक धन लोलुपता के आगे
नर्क ज़िन्दगी त्रिया की होगी ?
इस दहेज ने आज सभी को
नेत्रहीन कर डाला है ।
खिली हुई नवकलिका को
पैरों तले कुचल डाला है ।
क्रय विक्रय इंसानो का
अपराध बड़ा कानून बताता ।
पर विवाह में यह दहेज
दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता ।
इस समाज के कर्ता धर्ता
सब दहेज के लोभी हैं ।
ऊपर नीचे इस समाज में
सब ही सुविधा भोगी हैं ।
इस दहेज ने अब
समाज में
गहरी जड़े बिठा
ली हैं ।
हर सफेद पर्दे
के पीछे
मन की मूर्ति
काली है ।
दूर भगाओ इस दहेज को
यदि तुम में मानवता है
।
ये व्याधि प्राण हरने वाली
ये प्रथा नहीं कुत्सितता है ।
क्यों दहेज के लिए किसी का
जीवन तबाह करते हो ?
क्यों दहेज दानव को
घर में शुमार करते हो ?
मार भगाओ इस दानव को
करो प्रयास सभी मिलकर ।
अब और न कोई जले मरे
इस दहेज की आग में जलकर ।।