इस्लामी पैरोकार इस्लाम धर्म की वृद्धि के लिए दिलचस्प दलीलें पेश करते हैं । इस्लामी विद्वान कहते हैं कि सत्य हमेशा स्पष्ट होता है । उसके लिए किसी भी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है । हो सकता है कि हम बात को न समझ पाएं अथवा हमें इससे दूर रखने का कुप्रयास किया जाए । यह अब किसी से छिपा नहीं है कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस सृष्टि के अंतिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आगमन की जो भविष्यवाणियां की गई हैं, वह अब सामने आने लगी हैं । मानवतावादी विद्वानों ने ऐसे अकाट्य प्रमाण पेश किए हैं, जिनसे सत्य सामने आ जाता है । वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊँट की सवारी करने वाले) महापुरुष के आने की भविष्यवाणी की गई है, वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं । वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा । ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है । ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित सभी बातें हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से आश्चर्यजनक साम्यता रखती हैं । पुराणों और उपनिषदों में कल्कि अवतार की चर्चा है, जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही सिद्ध होते हैं । कल्कि का व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएं अंतिम पैग़म्बर (सल्ल॰) के जीवन - चरित्र को पूरी तरह निरूपित करती हैं । यही नहीं उपनिषदों में साफ़ तौर से हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का नाम आया है और उन्हें अल्लाह का रसूल (संदेशवाहक) बताया गया है । पुराणों और उपनिषदों में यह भी वर्णित है कि ईश्वर एक है । उसका कोई भागीदार नहीं है । इनमें ‘अल्लाह’ शब्द का उल् लेख कई बार किया गया है । बौद्धों और जैनियों के धर्म - ग्रंथों में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के बारे में भविष्यवाणियाँ की गई हैं ।
इन सच्चाइयों के आलोक में यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि सनातन धर्म ही सृष्टि का आदि धर्म है । सब कुछ जानते हुए भी आखिर क्यों इस्लामी वहाबी विचार धारा में बहने को आतुर हैं ? जब वह वेदों, उपनिषदों और पुराणों को सही मानते हैं ; सनातन धर्म की भविष्यवाणियों में अपना स्थान खोज लेते हैं ; तब खुद को सनातनी अर्थात आज का हिन्दू क्यों नहीं मान लेते ।