कुपोषण के सन्दर्भ में जो आँकड़े अभी हाल में आये हैं उससे हमारे देश में कुपोषण की भयावहता उजागर होती है । बच्चे देश का भविष्य हैं , वे भारत के भावी कर्णधार हैं । यही हमारे देश को उन्नति के शिखर पर ले जाने वाले हैं । परन्तु जब बच्चे ही कुपोषित होंगे तब देश का भविष्य स्वर्णिम होने की जगह कुपोषित और अवनति का गर्त ही होगा । मैं जब भी समाचारों में हो
रहे
भारत
निर्माण
या मेरा देश बदल रहा है के बारे में पढ़ता हूँ तो इसका अभिप्राय समझने में अपने को असमर्थ पाता हूँ । सम्पूर्ण देश
में 43% बच्चे
कुपोषण
के
शिकार हैं । वहीं देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर
प्रदेश
में 53% बच्चे
कुपोषण
के
शिकार हैं । यह आँकड़े इस बात को समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि हम किस प्रकार के भारत का निर्माण कर रहे हैं । क्या हमारी मंशा कुपोषित भारत के निर्माण की है ? जिन विभागों को कुपोषण दूर करने की जिम्मेदारी दी गयी है वह स्वयं कुपोषण के शिकार हैं । इसका कारण इनसे सम्बंधित विभागों पर सरकार का ध्यान न देना है । इस बात का उदाहरण बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग है , जहाँ कार्यरत कार्यकत्रियों ( आंगनबाड़ी ) एवं सहायिकायों को सरकार द्वारा क्रमशः 3200 रूपये
और 1600 रूपये दिया जाना है । उपरोक्त भुगतान मनरेगा में दिए जाने वाले दैनिक
भुगतान ( मजदूरी ) से भी कम है । स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन काम करने वाली आशा
बहुओं का हाल भी कमोबेश ऐसा ही है । वित्तीय विषमता के चलते यह कार्यकत्रियाँ कुपोषण के खिलाफ जंग में अपने कर्तव्य का निर्वहन किस प्रकार करेंगी , यह विचारणीय प्रश्न है ! कुपोषण से मुक्ति के बिना भारत निर्माण संभव नहीं ।