आज ख़ुशी चलकर आयी
जब मैंने सच्ची बात कही ।
बोल – बोल कर झूठ थका मैं,
ख़ुशी कभी भी नहीं मिली ।
आज ख़ुशी चलकर आयी
जब मैंने सच्ची बात कही ।
नेत्रहीन को जिस पल मैंने,
आज सड़क पार करवायी ।
ज्वर से पीड़ित भिक्षुक को,
अस्पताल जा दवा दिलायी ।
क्लान्त हृदय हो गया शान्त,
मन की भी हलचल सहम गयी ।
आज ख़ुशी चलकर आयी
जब मैंने सच्ची बात कही ।
उसने अपशब्द कहे हमको,
आत्मा को भी रौंद डाला ।
सह गया चुपचाप रहकर,
पी गया विष रूप हाला ।
सहनशक्ति विजय का पथ बनी,
सब लुटाकर भी रहा मैं ही धनी ।
आज ख़ुशी चलकर आयी
जब मैंने सच्ची बात कही ।
वास्तविकता का धरातल पा लिया,
गान सुख-दुख से भरा भी गा लिया ।
क्या पाप है क्या पुण्य ये सीखकर ?
सम - विषम के भेद सारे भूलकर ।
सबको ख़ुश देखकर मैं ख़ुश हो रहा ,
मैं भ्रमर दुनियाँ है प्यारी सी कली ।
आज ख़ुशी चलकर आयी
जब मेैंने सच्ची बात कही ।