लम्हों की ख़ता
ख़ता लम्हों की
होती है
सज़ा सदियाँ
भुगतती हैं ।
एक क़तरे में आग
लगने से
हजारों बस्तियाँ
झुलसती हैं ।
माँ सीता की
अग्नि परीक्षा
लिए हुए युग बीत
गए ।
लेकिन उसी आग
में अब तक
कलियाँ कई
झुलसती है ।
जयचन्द की
मक्कारी अब भी
भरत वंश को साल
रही ।
भारत माता अब तक
देखो
उस की सज़ा
भुगतती हैं ।
हिन्द कट गया और
बंट गया
टुकड़े-टुकड़े
हो गए ।
टुकड़ों की ओट
में मगर
सियासतें चमकती
हैं ।
माटी के बुत तो
बंट गए
मगर तड़पते हृदय
रहे ।
चैन-ओ-अमन के
रंग को
अब भी सियासतें
तरसती हैं ।।