न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क
ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,
रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल
मुँह पर बखूबी मुस्कुराना जानते हैं लोग लगाना पीठ पर निशाना जानते हैं लोग जो चलना नहीं जानता दुनियाँ की चाल को सिखा के उसको गिराना जानते हैं लोग साँसे बहुत भारी होती हैं जिंदगी की शायद मुर्दा होते ही
आज शाम को जैसे ही ऑफिस से घर निकल रही थी तो अचानक तेज बारिश शुरू हो गयी। जब काफी देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो अँधेरा होता देख मैंने बरसाती पहनी और घर को को निकल पड़ी। तेज बारिश के कारण जगह-जगह सड़क पर
21/7/22प्रिय डायरी, आज मैंने शब्द.इन में कागज़ की कश्ती शीर्षक पर कविता लिखी। हम सब ब
न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क
बहती पानी की धारा, जब सिर को भिगोती है । दूर कहीं पहाड़ों पर, जब एकांत में आंखे बंद होती है । पक्षियों की चहचहाट के बीच पानी की गिरती कल कल की आवाज़, जब मन को शांत कर देती है । दुनिया की फिक्र से
आज सावन का पहला सोमवार था। सावन माह में सोमवार का विशेष महत्व माना जाता है। माना जाता है सावन माह के हर सोमवार के दिन भगवान भोलेनाथ अपने सूक्ष्म रुप में मंदिर में विराजमान रहते हैं। माना जाता है
इन दिनों हमारे पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में हरेला पर्व की धूम मची है। यह पर्व हमें प्रकृति से जोड़ता है। हरेला का मतलब हरियाली से है, यानि हरियाली का त्यौहार। ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु के आगमन से प्
सावन आते ही कभी धूप तो कभी मूसलाधार बारिश से मौसम बड़ा सुहावना हो गया है। झमाझम बरसते बदरा को देख हरे-भरे पेड़-पौधों के बीच छुपी कोयल की मधुर कूक, आसमान से जमीं तक पहुँचती इन्द्रधनुषी सप्तरंगी छटा,
ग्रीष्मकाल आया तो सूरज की तपन से समस्त प्राणी आकुल-व्याकुल हो उठे। खेत-खलियान मुरझाने और फसल कुम्हालाने लगी। घास सूखने और फूलों का सौन्दर्य-सुगंध तिरोहित होने लगा। दुपहरी की तपन से छोटे-बड़े पेड़-
इन दिनों देश के कई हिस्सों में बारिश कहर बनकर टूट रहा है। अभी दो दिन पहले शनिवार को देर रात हमारे भोपाल में भारी बारिश और बादलों की भयानक डरावनी गड़गड़ाहट के साथ कड़कती बिजली की तीखी आवाज ने नींद हराम कर
मेरी एक सहेली अभी दो दिन पूर्व अमरनाथ यात्रा पर निकली है। आज शाम करीब 5.30 बजे जब अमरनाथ में बादल फटने की जानकारी मिली तो तब से बहुत परेशान हूँ। ऑफिस से घर आकर कई बार मोबाइल लगा चुकी हूँ लेकिन लग नहीं
इस सावन में तुम बरस जाना बारिश की बौछार बनकर आ जाना गजलों के शब्द बन कर आ जाना शायरों के किस्से बनकर घुल जाना मेरे गीतों को निखारनें आ जाना शीत ऋतु में ग्रीष्म में बनकर आ जाना कोयल की तुम मधुर वाणी
सावन की झड़ी कुछ ऐसी लगी है सोई सी प्रीत अब दिल में जगी है उमड़ घुमड़ फिर घिर आये बदरा बिजुरिया से ये कर रहे दिल्लगी है हवा भी बही जाये अपनी ही धुन में ये भी क्या किसी के
कल बुधवार को नगर निगम चुनाव का मतदान दिवस था, जिसके लिए शासकीय अवकाश घोषित किया गया था। पिछले तीन-चार दिन तेज बारिश का दौर चल पड़ा था, जिस कारण बुधवार को मतदान के लिए कई जनप्रतिनिधि और उम्मीदवार बड़
सुनो, अकेली ना जाओ नदी के किनारे बड़े तेज होते हैं इसके धारे कहीं पैर फिसल गया तो फिर तुम क्या करोगे ये नदी का पानी तुमसे जलता है तुम्हारी पनीली आ
देखो यह बारिश जमकर कैसे बरस रही है झूम झूम कुछ गुनगुना रही हैं ये बारिश की बूंदे.. 🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦🌦 ये नमीं जैसे पल पल याद दिला रही है किसी की हौले हौले दिल धड़का रही हैं ये बारिश की बूंदे