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बरसात

hindi articles, stories and books related to barsat


जिंदगी बरसात की रात की जैसी होती जा रही है उम्र की तमाम बूंदों  को निगलती ही जा रही है..... जलती है अंधेरों में रोशनी वक्ते स्याह रातों में तूफानों की तेज हवाओं से बदलती ही जा रही है....... बरसात

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आज सुबह-सुबह दरवाजे के घंटी बजी तो देखा कि हमारे पड़ोस की बिल्डिंग में रहने वाली एक महिला खड़ी थी। उसे देखकर मैंने उसे बैठने को कहा तो वे कहने लगी कि वह नहा-धोकर सीधे हमारे घर आयी है, फुर्सत में कभी

बात है सन 2016 की मैं और अवि वह अपनी सहेलियों के साथ घर जा रही थी और मैं उनके पीछे पीछे थोड़ी दूर चलने के बाद बारिश शुरू हो गई और हम सब ने उस पाक के बने दरवाजे की छत का सहारा लिया और इसके नीचे खड़े हो

कहते हैं लोग ख्वाब मे मै गीत लिखा करता हूँ अपने दुश्मन को भी मै तो मीत लिखा करता हूँ बदलकर जब दिनो के फेर आते हैं मकड़ी के जाल मे भी शेर आते हैं तक़दीर तेरे दिये हर पल को मैं रीत लिखा करता हूँ दोस्तों

 दुल्हनिया एक तरफ रख दो एक तरफ रख दो माल मुंह भर भर के क्यो  दूल्हा मांगे कैसे हो वो कंगालएक हाथ में हाथ दुल्हन का दूजे हाथ दहेज 10 तोले सोना देकर अपने साथ हमारी भेजकदमों में जो रख

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पिछले तीन दिन से हमारे भोपाल में तेज बारिश होने से शहर का मिजाज पानी-पानी हो गया है। लगातार हो रही बारिश से सीहोर से निकलकर बड़े तालाब तक पहुँचने वाली कोलांस नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ने पर भदभदा से

अब तक आपने पढ़ा कि आलोक अपने घर से अंकल अमर से बचने के लिए भागता है लेकिन रास्ते में वह गिर जाता है तभी रसिया नाम का पोस्टमैन उसे संभालता है और अस्पताल में एडमिट करवाता है...अब वर्तमान दृश्य में आलोक

पिछले भाग में अपने जाना कि विवेक के पिता रामदास को कुछ गुंडों ने घायल करके जंगल में फेंक दिया था उसके बाद पोस्टमैन रसिया नाम का व्यक्ति उसे अपनी साइकिल छोड़कर किसी टैक्सी पर अस्पताल पहुंचाता है ।वह मन

आलोक को किसी कारणवश चोट लग गई थी । वह अब अस्पताल में बेड पर दीवार से सटकर बैठा हुआ है और उसके साथ डॉक्टर कमलकांत बातचीत करते हुए बोले , '' बेटे अब तुम ठीक हो गए हो लेकिन पूरी तरह से नहीं तुम्हें

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आज छुट्टी का दिन था।  सुबह जरा देर से जागना हुआ।  सावन का महीना चल रहा है।  रिमझिम बारिश हो रही थी। भोलेनाथ के दर्शन हेतु मंदिर भी जाना था, इसलिए सबसे पहले नहाना-धोना किया और उसके बाद मंदिर पहुँची

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आज रीट का इम्तेहान है हम दोस्त खुश है पर मेरी खुशी अलग ही है क्योंकि आज हम 7 महीने बाद मिलने वाले है क्योंकि हमारा परीक्षा केंद्र एक ही जगह आया है हनुमानगढ़। बाकी हम जाके देखेंगे केसा होगा मिलन!

रिमझिम रिमझिम बरसो रे,आयो सावन का महीना।सावन की फुहारें झिर-मिर,मनभावन सावन तिर- मिर।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,धरती भीगे तरुवर भीगे।बारिश की बूंदों से भीगे,त्रप्त धरा की माटी भीगे।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,

न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क

ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,

रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल

मुँह पर बखूबी मुस्कुराना जानते हैं लोग लगाना पीठ पर निशाना जानते हैं लोग जो चलना नहीं जानता दुनियाँ की चाल को सिखा के उसको गिराना जानते हैं लोग साँसे बहुत भारी होती हैं जिंदगी की शायद मुर्दा होते ही

आज शाम को जैसे ही ऑफिस से घर निकल रही थी तो अचानक तेज बारिश शुरू हो गयी।  जब काफी देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो अँधेरा होता देख मैंने बरसाती पहनी और घर को को निकल पड़ी। तेज बारिश के कारण जगह-जगह सड़क पर

21/7/22प्रिय डायरी,                 आज मैंने शब्द.इन में कागज़ की कश्ती शीर्षक पर कविता लिखी।               हम सब ब

न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क

बहती पानी की धारा, जब सिर को भिगोती है । दूर कहीं पहाड़ों पर, जब एकांत में आंखे बंद होती है । पक्षियों की चहचहाट के बीच पानी की गिरती कल कल की आवाज़, जब मन को शांत कर देती है । दुनिया की फिक्र से

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