भगवंत अनमोल की प्रारंभिक शिक्षा उनके पैतृक स्थान फतेहपुर के खागा में सम्मन्न हुई।कानपुर के महाराणा प्रताप इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया।बीटेक करने के उपरांत भगवंत ने एक्सेंचर में तीन साल सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर जॉब की। अब नौकरी छोड़कर कानपुर में रहते हैं और स्पीच थेरेपिस्ट हैं तथा लेखन करते हैं।
भगवंत अनमोल 'साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार' से सम्मानित बेस्टसेलिंग लेखक हैं।
शौक-शौक में कई किताबें लिख डालीं और सभी ही फेमस हुईं।एक पुस्तक तो जागरण नीलसन बेस्ट सेलर की लिस्ट में भी शुमार हुई और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित भी हुई।इतना ही नहीं साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार से भी सम्मानित हुए।अब नया उपन्यास बाजार में आ चुका है। बात हो रही है युवा लेखक भगवंत अनमोल की।
30 अगस्त, 1990 में जन्मे भगवंत अनमोल पेश से इंजीनियर और वाकचिकित्सक हैं। ‘बाली उमर’, ‘जिंदगी 50-50’, ‘कामयाबी के अनमोल रत्न’ और ‘प्रमेय’ उनकी कृतियां हैं। ‘प्रमेय’ उपन्यास के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2022’ से सम्मानित किया जा चुका है। ‘प्रमेय’ उपन्यास विज्ञान और धर्म के बीच सत्ता संघर्ष दर्शाता है।
भगवंत अनमोल का नया उपन्यास ‘गेरबाज़’ पेंगुइन स्वदेश (पेंगुइन रैंडम हाउस) से प्रकाशित हुआ है। साहित्य जगत में ‘गेरबाज़’ अपने प्रकाशन के समय से ही चर्चा का विषय बना हुआ है. इसमें एक जगह पर भगवंत कहते हैं- “मर्द की खूबसूरती उसकी खाली जेब में होती है।” भगवंत अनमोल “मर्द” की अलग परिभाषा गढ़ रहे हैं. कोई कहता है मर्द को दर्द नहीं होता, कोई कहता है मर्द रोते नहीं हैं. किसी का मानना है कि आदमी (मर्द) की ताकत उसकी जेब से मापी जाती है, लेकिन यहां भगवंत उल्टी ही गंगा बहा रहे हैं।खैर इस युवा लेखक ने यह बात किस आधार पर कही, यह तो ‘गेरबाज़’ पढ़कर ही पता चलेगा. लेकिन भगवंत अनमोल की नई किताब, उनके पेशे, उनके लेखन को लेकर उनसे लंबी बातचीत हुई. प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश
पेशे से आप वाक चिकित्सक हैं. वाक चिकित्सक क्या होता है? चिकित्सक होते हुए आप लेखक कैसे बने?
यहां पर वाक् चिकित्सक का अर्थ स्पीच थेरापिस्ट से है। असल में मैं सॉफ्टवेर इंजिनियर रहा हूं. बीटेक की डिग्री हासिल की है। तीन साल एक मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी की है. फिर नौकरी छोड़कर कानपुर वापस चला आया। मुझे अमेरिका भेजा जा रहा था, शायद कई लाखों का पैकेज होता, जो आम आदमी का सपना होता है। लेकिन मैं खुद हकलाता रहा हूं, मैंने वह पीड़ा देखी है. मेरे मन को गंवारा न हुआ. मुझे लगा कि जिस समस्या से मैं पीड़ित रहा, ऐसे देशभर में एक करोड़ से अधिक लोग हैं। अगर उनकी मदद की जा सके, उनका जीवन संवारा जा सके तो इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता. इसीलिए मैंने कानपुर में लेखन के साथ स्पीच थेरेपी की नींव रखी. कुछ लोग कह सकते हैं कि आधुनिक समय में यह गलत फैसला है. मैं बस इतना कहना चाहता हूं, “जाके फटी न बेवाई का जाने पीर पराई।”