हल्के फुल्के संगीत को पसंद करने वाले भी सोच में पड़ जाएंगे कि कोई गायक बिना लटक-झटक दिखाए, रागों की माला इतनी ख़ूबसूरती से सुरों में कैसे पिरो सकता है।
ये लता मंगेशकर ही थीं, जिन्हें अपने अपनी क़ाबिलियत की नुमाइश करने की ज़रूरत नहीं होती थी।
वो तो शास्त्रीय रागों पर आधारित, पेचीदा से पेचीदा संगीत की धुनों को बड़ी सहजता से अपने सुरों में ढाल लेती थीं।
लता जी भले ही इस दुनिया से विदा ले चुकी हैं। लेकिन, हम उस महान गायिका को यूं ही अपनी यादों से ओझल नहीं होने दे सकते।
वैसे तो उनके सुर, तान, आलाप और संगीत के बारे में लगभग सब कुछ लिखा जा चुका है। मगर, शास्त्रीय गायन के उनके हुनर, उनकी दक्षता पर उतना ज़ोर नहीं दिया गया है।
जबकि लता मंगेशकर ने 13 साल की उम्र में एक्टिंग के ज़रिए फिल्मी दुनिया में क़दम रखने से पहले, शास्त्रीय संगीत की गायिका बनने की ही कोशिश की थी।
उम्र के साथ जब शास्त्रीय संगीत के सुर, लय, ताल और तान को लेकर आपकी समझ बढ़ती है। अगर आप तब लता मंगेशकर के गाने दोबारा सुनें, तो उनकी आवाज़ के जादू पर और भी मंत्रमुग्ध होते जाते हैं।
इसकी वजह से संगीत के शौक़ीनों को लता की आवाज़ के जादू के दूसरे पहलुओं को तलाशने, उनको समझने और उनके सुरों की गहराइयों को नए सिरे से महसूस करने की प्रेरणा देते हैं।