*ब्रह्मा जी की बनाई हुई इस सृष्टि में अनेकों लोक बताए जाते हैं | इन्हीं लोकों में एक पृथ्वीलोक कहा गया है | यह पृथ्वीलोक जहां हम निवास करते हैं इसे मृत्युलोक भी कहा जाता है | मृत्युलोक अर्थात मृत्यु का घर | इसे आवागमन का क्षेत्र भी कहा गया है | यहां जो भी आता है उसे एक दिन , एक निश्चित समय पर यह धरत
*इस संपूर्ण सृष्टि में जहां अनेकों जीव भ्रमण कर रहे हैं वही मनुष्य इन जीवों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है | मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हुआ है अपने ज्ञान एवं कर्मों से | मनुष्य के कर्म तभी दिव्य हो पाते हैं जब वह अपने जीवन में अध्यात्म का सहारा लेता है | मानव जीवन में अध्यात्म का बहुत महत्व है | आध्यात्मिक हो
*मानव जीवन में विश्वास सा बहुत बड़ा महत्व है या यह कहा जाय कि विश्वास के बल पर ही यह संसार चल रहा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | एक दूसरे पर विश्वास करके संसार का कार्य सम्पादित हो रहा है | जब मनुष्य का विश्वास टूटता है तो क्षति दोनों पक्ष की होती है परंतु टूटने वाले की क्षणिक तथा तोड़ने वाले के ल
*इस मानव जीवन को प्राप्त करके प्रत्येक मनुष्य की कामना होती है पुत्र प्राप्त करने की क्योंकि हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि बिना पुत्र के सद्गति नहीं मिलती | यदि माता-पिता का अपने पुत्र के प्रति कर्तव्य बताया गया है तो पुत्र का भी अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों का उल्लेख हमारे सनातन साहित
*इस धरा धाम पर चौरासी लाख योनियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है | मानव जीवन बहुत ही दिव्य है इस जीवन को प्राप्त करके आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं | मनुष्य के जीवन में संगठन का बहुत बड़ा महत्व है | मनुष्य अकेले जो कार्य नहीं कर सकता है उसे दस लोगों का समूह अर्थात
*इस सम्पूर्ण सृष्टि में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है मनुष्य | सर्वश्रेष्ठ रचना होने के बाद भी मनुष्य सुखी नहीं है , दुखों का पहाड़ उठाये मनुष्य जीवन जीता रहता है | मनुष्य के दुख का कारण उसकी सुखी रहने की असीमित कामना ही मुख्य है | मानवीय सत्ता की सदा सुखी रहने की कामना नैसर्गिक होती है और यही कामनाय
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *मनुष्य का जीवन कैसा होगा ? उसके क्रियाकलाप कैसे होंगे ? यह उसकी विचारधारा पर आधारित होता है | साहित्य जगत में दो प्रकार की विचारधारा कहीं गई है | प्रथम उत्कृष्ट विचारधारा एवं द
*मानव जीवन में स्वाध्याय का बहुत बड़ा महत्व है | स्वाध्याय अर्थात स्वयं का अध्ययन करना | हम कौन हैं ?;कहां से आये ?? हमको क्या करना चाहिए ? और हम क्या कर रहे हैं ?? इसका ज्ञान हो जाना ही स्वाध्याय है | सनातन धर्म में स्वाध्याय एक वृहद संकल्पना है | जहां स्वाध्याय का अर्थ स्वयं का अध्ययन करना बताया
*संपूर्ण मानव जीवन में मनुष्य अनेकों प्रकार के क्रियाकलाप करता हुआ जीवन यापन करता है | प्रत्येक कार्य को सकुशल संपन्न करने के लिए ईश्वर ने मनुष्य को विवेक प्रदान किया है इसी विवेक का प्रयोग करके ही मनुष्य को अपने क्रियाकलाप संपादित करने चाहिए | किसी भी विषय पर बिना सोचे समझे संदेह करना मनुष्य की विव
*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक देश रहा है | आध्यात्म के ही कारण हमारे देश की पहचान सम्पूर्ण विश्व में हुई थी और भारत विश्वगुरु बना था | इसी आध्यात्मिक ज्ञान की धारा को अपनी आत्मा में धारण कर हमारे ऋषि - मुनियों ने समस्त विश्व के कल्याण की कामना से अपना जीवन समर्पित करते हुए मानवता के कल्याण के
*इस सृष्टि को चलायमान करने के लिए ब्रह्मा जी ने कई बार नर सृष्टि की परंतु वह तब तक नहीं गतिनान हुई जब तक नारी का सृजन नहीं किया ! नर नारी के जोड़े के सृजन के बाद ही यह सृष्टि विस्तारित हो पाई | मनुष्य के जीवन में पत्नी (नारी) का क्या महत्त्व है यह इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि जब ब्रह्मा जी बिना प
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *मनुष्य विवेकवान प्राणी है कोई भी क्रिया कलाप सम्पादित करने के पहले मनुष्य को विवेक का प्रयोग अवश्य करना चाहिए | आज की आधुनिकता की अंधी दौड़ में प्रतिक्षण सावधान रहने की आवश्यकत
*ईश्वर ने मनुष्य को सुन्दर शरीर दिया साथ प्रत्येक अंग - उपांगों को इतना सुंदर एवं उपयोगी बना दिया कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हो गया | यद्यपि आँख , नाक , कान , मुख एवं वाणी ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को प्रदान किया है परंतु मनुष्य को विवेक - बुद्धि के साथ अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति करने की स्वतंत्रता भी प्
*धरती पर मनुष्य ने जहाँ एक ओर विकास की गंगा बहाई है वहीं दूसरी ओर विनाश का तांडव भी किया है | आदिकाल से ही समय समय पर अपनी प्रभुता सिद्ध करने के लिए यहाँ युद्ध भी होते रहे हैं | हमारे देश भारत के इतिहास में वैसे तो अनेक युद्ध हुए हैं परंतु "महाभारत" (प्रथम विश्व युद्ध) जैसा दूसरा युद्ध न तो हुआ है औ
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *ज्ञान मानव जीवन की आवश्यक आवश्यकता है , बिना ज्ञान के मानव जीवन पशु के ही समान है | ज्ञान का अर्थ उच्च शिक्षा का होना ही पर्याप्त नहीं है | मनुष्य को ज्ञानी तभी कहा जा सकता है
*सनातन धर्म में मनुष्य के लिए धर्म अर्थ काम मोक्ष आदि चार पुरुषार्थ बताये गये हैं | जीवन भर धर्म करते हुए अर्ध एवं काम का उपभोग करते हुए जीवन का अन्तिम लक्ष्य होता है मोक्ष अर्थात ईश्वर की प्राप्ति करना | मोक्ष एवं ईश्वर प्राप्ति करने के लिए मनुष्य के द्वारा अनेकानेक उपाय किए जाते रहे हैं | ईश्वरप्र
*भारतीय दर्शन में जिस प्रकार अनेक कर्मकाण्डों का महत्व बताया गया है उसी प्रकार उपदेश का भी अपना एक विशेष महत्व है | उपदेश मनुष्य के जीवन की दिशा परिवर्तित कर देते हैं | विराट भगवान के सार्थक उपदेश सुनकर ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना प्रारम्भ की | सनातन धर्म के धर्मग्रन्थ महापुरुषों के उपदेशों से भरे
*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सुख -;समृद्धि एवं ऐश्वर्य की कामना करता है | जीवन को सुखी करने के लिए मनुष्य अनेकों प्रकार के उपाय करता है जिससे कि वह और उसका परिवार सुखी रहें परंतु सुख कहां है यह उस पर ध्यान नहीं देना चाहता है | हमारे महापुरुषों ने बताया है कि प्रत्येक मनुष्य को शाश्
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *इस संसार में सबसे कठिन धर्म सेवक एवं शिष्य का कहा गया है | सेवक का धर्म क्या होना चाहिए ? इसका वर्णन हमारे शास्त्रों में विस्तृत रूप से देखने को मिलता है , परंतु आज समाज में स
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ एवं जटिलताओं से भरा हुआ है , इस जीवन को पाकर जो भी मनुष्य अपने जीवन में सूझबूझ के साथ अपने कार्य संपन्न करता है वह तो सफल होता चला जाता है और जो बिना व