*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य सुख -;समृद्धि एवं ऐश्वर्य की कामना करता है | जीवन को सुखी करने के लिए मनुष्य अनेकों प्रकार के उपाय करता है जिससे कि वह और उसका परिवार सुखी रहें परंतु सुख कहां है यह उस पर ध्यान नहीं देना चाहता है | हमारे महापुरुषों ने बताया है कि प्रत्येक मनुष्य को शाश्वत सुख की कामना करनी चाहिए और उसी की प्राप्ति के लिए साधना करते रहना चाहिए क्योंकि शाश्वत सुख साधन में नहीं साधना में , वासना में नहीं उपासना में है , भोग में नहीं योग में है , विषय भोगों और भौतिक साधनों से यदि शाश्वत सुख की प्राप्ति हो सकी होती तो भौतिक सुख साधनों से संपन्न लोग कभी दुखी होते ही नहीं , उनके हताश / निराश होने की संभावना ही नहीं रहती | ऐसे व्यक्ति कभी अशांत नहीं होते जबकि इनके पास जीवन को सुखी रखने के अनेक भौतिक साधन उपलब्ध होते हैं | इनकी अपेक्षा भौतिक साधनों के अभाव में भी संत , फकीर , साधक आदि सदा मस्त , अलमस्त और आनंदित रहते हैं | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भौतिक साधनों से भौतिक सुख तो प्राप्त किए जा सकते पर शाश्वत सुख और आत्मिक आनंद कदापि नहीं | आत्मिक आनंद तो आत्मा से ही निस्सृत हो सकता है | ब्रह्मानंद की प्राप्ति ब्रह्म से जुड़कर ही हो सकती है उससे अलग और दूर रहकर कभी नहीं | जैसे हिमालय से निकली या जुड़ी हुई नदियां सदा शीतल जल से भरी पूरी रहती हैं वैसे ही साधक की आत्मा जब योग , जप , तप आदि विभिन्न आध्यात्मिक साधना के द्वारा ब्रह्म से जुड़कर मिलकर एकाकार हो जाती है तब सच्चिदानंद स्वरूप ब्रह्मानंद साधक के अंतस् में , आत्मा में स्वयं ही उतर आता है , और साधक शाश्वत सुख की अनुभूति करता है | हमारे महापुरूषों ने आध्यात्मिकता को अपना करके आत्मज्ञान की ज्योति जगमगा कर शाश्वत सुख प्राप्त करते हुए परमात्मा को भी प्राप्त किया था परंतु आज समय परिवर्तित हो चुका है |*
*आज के भौतिक युग में मनुष्य साधना की अपेक्षा साधन को , उपासना की अपेक्षा वासना को , योग की अपेक्षा भोग को अधिक महत्व दे रहा है और इसी में वह सुख की खोज कर रहा है | भौतिक साधनों से क्षणिक सुख तो प्राप्त हो सकता है परंतु चिरस्थाई सुख एवं शाश्वत सुख इन भौतिक साधनों से कदापि नहीं प्राप्त हो सकता | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जब तक मनुष्य सुख एवं आनंद के मर्म को नहीं समझेगा तब तक वह सुखी नहीं हो सकता | हमारे महापुरुषों एवं पूर्वजों ने बताया है कि मनुष्य का वांछनीय आनन्द वस्तुत: आध्यात्मिक आनंद ही है , जबकि लोग उसे भूलकर सांसारिक सुख को खोजने और पानी में लगे रहते हैं | सांसारिक आनन्द मृगतृष्णा के समान मिथ्या होता है परंतु आध्यात्मिक आनंद या आत्मिक आनन्द सत्य और वास्तविक होता है | इसे पाने पर आनन्द की इच्छा पूर्ण रूप से तृप्त होकर तिरोधान हो जाती है अत: मनुष्य को सच्चे सुख और संपूर्ण तृप्ति के लिए आध्यात्मिक आनंद ही प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए | जब मनुष्य को आध्यात्मिक आनंद प्राप्त हो जाता है तो वह स्वयं ही शाश्वत सुख की अनुभूति करने लगता है | इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को भौतिक साधनों की अपेक्षा आध्यात्मिक साधनों में सुख की खोज करनी चाहिए |*
*मनुष्य को आत्मज्ञान की ज्योति जला कर आज से ही परम आनंद की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक पथ का पथिक बन जाना चाहिए क्योंकि कल किसी ने नहीं देखा है |*