*इस सम्पूर्ण सृष्टि में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है मनुष्य | सर्वश्रेष्ठ रचना होने के बाद भी मनुष्य सुखी नहीं है , दुखों का पहाड़ उठाये मनुष्य जीवन जीता रहता है | मनुष्य के दुख का कारण उसकी सुखी रहने की असीमित कामना ही मुख्य है | मानवीय सत्ता की सदा सुखी रहने की कामना नैसर्गिक होती है और यही कामनायें जब नहीं पूर्ण होती हैं तो मनुष्य दुखी हो जाता है | कामना का अर्थ :- इच्छा , तृष्णा एवं अभिलाषा आदि कहा गया है | कामना भी दो प्रकार की होती है :- स्वहित की कामना एवं लोकहित की कामना | स्वहित कामना अपने लिए होती है और लोकहित कामना संसार के लिए | ह्रदय में जब तक त्याग की भावभूमि नहीं तैयार होगी तब तक लोकहित की कामना का प्रादुर्भाव नहीं होता | इस क्षणभंगुर संसार में प्रत्येक पदार्थ क्षण - क्षण क्षीण हो रहे हैं इसीलिए स्वहित की कामना करने वाले मनुष्यों का सुख भी क्षणिक ही होता है | जबकि लोकहित की कामना स्वयं को छोड़कर सर्वकल्याण एवं सद्भावना से जुड़ी होने के कारण इससे प्राप्त होने वाला सुख स्थाई होता है | जब मनुष्य के हृदय में स्वाभाविक स्वहित (अपना हित) की कामना प्रकट होती है तो मनुष्य की इच्छायें अनन्त हो जाती हैं इन्हीं इच्छाओं - कामनीओं के न पूर्ण होने पर मनुष्य चिंताग्रस्त , तनावयुक्त और असंतुलित एवं दुखी हो जाता है | मनुष्य के दुखों का कारण उसकी असीम स्वहित की कामनायें ही हैं जिसमें फंसकर मनुष्य लोकहित के विषय में विचार भी नहीं कर पाता | कामनायुक्त दुखों से बचने का उपाय हमारे महापुरुषों ने बताते हुए कहा है कि :------ इससे बचने का एकमात्र उपाय है ‼️ भगवत्कृपा ‼️ और मनुष्य को यह अकल्पनीय ‼️ भगवत्कृपा ‼️ तभी प्राप्त हो पाती है जब मनुष्य ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है | सांसारिक कामनाओं से मुक्ति एवं ‼️ भगवत्कृपा ‼️ प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सकारात्मकता एवं पूर्ण समर्पण के साथ ईश्वर की उपासना करना ही एकमात्र मार्ग है | ईश्वर की उपासना तभी हो सकती है जब मनुष्य कामनाओं का त्याग कर दे | जब तक कामनाओं का त्याग नहीं होता है तब तक मनुष्य उपासना के साथ अनेकानेक करने के बाद भी उपासना का फल नहीं प्राप्त कर पाता क्योंकि मनुष्य की कामनायें बाधक बनकर सामने खड़ी हो जाती हैं |*
*आज संसार में लोकहित की कामना करने वाले मनुष्य बहुत ही कम दिखाई पड़ते हैं , प्रत्येक व्यक्ति अपना ही हित साधता हुआ दिखाई पड़ रहा है | आज मनुष्य की कामनाएं पहले की अपेक्षा और ज्यादा विस्तृत हो गई है | मनुष्य ‼️भगवत्कृपा‼️तो प्राप्त करना चाहता है परंतु ‼️भगवत्कृपा‼️ प्राप्त करने के लिए बताए गए उपायों को बिल्कुल ही नहीं करना चाहता | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज मनुष्य एक के बाद एक कामनाओं से ग्रसित होकर के दुख के अथाह सागर में डूबता रहता है | आज ज्ञान , भक्ति एवं बैराग्य की बात करने वाले लोगों का लक्ष्य किसी कामना की पूर्ति करना ही होता है | हमारे पूर्वजों ने लोकहित की कामना से जो कार्य किए थे उसी के कारण आज भी उनका नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है , परंतु आज का मनुष्य अपना हित साधने के लिए दूसरों का अहित भी करने से नहीं चूक रहा है | मनुष्य के दुख का सबसे बड़ा कारण यही है | अपना हित साधना यद्यपि आवश्यक भी है परंतु इसके साथ ही लोकहित की कामना भी हृदय में होनी चाहिए क्योंकि जब तक लोकहित की कामना नहीं होगी तब तक मनुष्य सुखी नहीं हो सकता है और ना ही ‼️भगवत्कृपा‼️प्राप्त कर सकता है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने हित के साथ-साथ संसार के हित के विषय में भी विचार करते रहना चाहिए | मनुष्य की कामनाएं अनंत होती हैं अनंत कामनाओं को पूर्ण करने में मनुष्य का सारा जीवन व्यतीत हो जाता है और हाथ कुछ भी नहीं आता है | वही लोकहित के लिए किए गए एक भी कार्य से मनुष्य युग युगांतर तक अमर हो जाता है |*
*अपनी कामनाओं को पूर्ण करने का अधिकार सबको है परंतु अपना हित साधने से संसार का हित न प्रभावित हो यह भी ध्यान रखना चाहिए |*