*भारतीय दर्शन में जिस प्रकार अनेक कर्मकाण्डों का महत्व बताया गया है उसी प्रकार उपदेश का भी अपना एक विशेष महत्व है | उपदेश मनुष्य के जीवन की दिशा परिवर्तित कर देते हैं | विराट भगवान के सार्थक उपदेश सुनकर ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना प्रारम्भ की | सनातन धर्म के धर्मग्रन्थ महापुरुषों के उपदेशों से भरे हैं | गंगा के किनारे श्रीराम को भूमि शयन करते देखकर मोहग्रस्त होकर व्याकुल हुए निषादराज को लक्ष्मणजी ने कर्मयोग का उपदेश दिया जिसे सुनकर उसका मोह समाप्त हो गया | यदि सर्वश्रेष्ठ उपदेशों की बात की जा तो कुरुक्षेत्र के मैदान में मोहग्रस्त हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया गीता का उपदेश सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | भगवान श्री कृष्ण के उपदेश को सुनकर अर्जुन का का मोह समाप्त हो गया और मोह को त्याग कर अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की | गीता का उपदेश अर्जुन के लिए नहीं बल्कि मानव मात्र के लिए कल्याणकारी आवश्यकता है गीता में दिए गए आदेशों के पालन करने की इसके अतिरिक्त समय समय पर हमारे सन्त , विद्वानों के द्वारा मानव मात्र के कल्याण के लिए अनेकों प्रकार के उपदेश दिये गए हैं जिन के मर्म को समझ कर यदि मनुष्य उसका पालन कर ले जाए तो उसका जीवन तो सुधर ही जाता है साथ ही भविष्य भी उज्ज्वल हो जाता है | हमारे महापुरुषों के उपदेश मानव जीवन की जटिलताओं को सुलझाने के साथ-साथ जीवन के बाद के रहस्यों को भी बताने में सक्षम सिद्ध हुए हैं | कोई भी उपदेश मनुष्य पर तभी प्रभावी हो सकता है जब मनुष्य उनका पालन करने प्रयास करे , जिस प्रकार भूख शान्त करने के लिए सामने रखे भोजन को खाना पड़ता है तब भूख शान्त होती है उसी प्रकार उपदेश को सुनकर या पढ़कर तभी उसका प्रभाव पड़ेगा जब मनुष्य उसका पालन करने का प्रयास करे ! अन्यथा कोई लाभ नहीं मिल सकता |*
*आज हम वैज्ञानिक युग में जीवनयापन कर रहे हैं | सोशल मीडिया के इस युग में प्रत्येक व्यक्ति आज संचार माध्यमों से जुड़ चुका है | आज सोशल मीडिया के सशक्त माध्यम फेसबुक एवं व्हाट्सऐप पर भी मानव जीवन के लिए कल्याणकारी अनेक नये व पुराने उपदेश विद्वानों के द्वारा नित्य परोसे जा रहे हैं जिनको पढ़कर मनुष्य का कल्याण हो सकता है परंतु आज के व्यस्त जीवन में किसी के पास उन उपदेशों को पढ़ने का समय ही नहीं है | और यदि समय मिला भी मात्र दो शब्द लिखकर अपने दायित्वों की इतिश्री समझ रहे हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि किसी भी सकारात्मक उपदेश पर "बहुत सुंदर" या "वाह" लिख देने मात्र की अपेक्षा उन उन उपदेशों पर अमल किया जाय तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं | आज मनुष्य की सबसे परेशानी यह है कि वह स्वयं तो उपदेश देता रहता है परंतु किसी और के उपदेश को न तो देखना चाहता है और न ही उसका पालन करने का प्रयास करता है | कोई भी उपदेश तब तक प्रभावी नहीं हो सकता है जब तक उसका पालन न किया जाय | गोस्वामी तुलसीदास जी की कालजयी रचना "श्रीरामचरितमानस" मानव कल्याणक उपदेशों का भण्डार है और यह लगभग सभी सनातनधर्मी के यहाँ पढ़ी भी जाती है परंतु पालन न करने के कारण मनुष्य दुख एवं अवसाद से घिरा रहता है | किसी भी उपदेश को सुनने या पढ़ने का लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका पालन करने का प्रयास किया जाय ! परंतु आज बुद्धिमान हो चुका मनुष्य किसी भी उपदेश को इसलिए नहीं ग्रहण करना चाह रहा है क्योंकि उसे यह आभास होता है कि वह स्वयं ही बुद्धिमान है | यही मनुष्य की परेशानियों का मुख्य कारण है |*
*सनातन के धर्मग्रन्थों में महापुरुषों के द्वारा दिये गये उपदेश किसी भी मनुष्य का जीवन तभी परिवर्तित कर पायेंगे जब मनुष्य उसको ग्रहण करके पालन करने का प्रयास करेगा |*