*ब्रह्मा जी की बनाई हुई इस सृष्टि में अनेकों लोक बताए जाते हैं | इन्हीं लोकों में एक पृथ्वीलोक कहा गया है | यह पृथ्वीलोक जहां हम निवास करते हैं इसे मृत्युलोक भी कहा जाता है | मृत्युलोक अर्थात मृत्यु का घर | इसे आवागमन का क्षेत्र भी कहा गया है | यहां जो भी आता है उसे एक दिन , एक निश्चित समय पर यह धरती , समाज , परिवार एवं सगे संबंधियों को छोड़कर जाना ही पड़ता है | यहां आने वाला जीव अनेक प्रकार के शरीर धारण करते हुए अंततोगत्वा इस संसार का त्याग कर देता है | कर्मानुसार जीव एक निश्चित समय के लिए पृथ्वी लोक की यात्रा पर आता है | साधारण जीव हो चाहे दिव्य आत्मायें या भगवान के अवतार रहे हो यह सभी काल के विधान के अंतर्गत ही इस पृथ्वी पर निवास कर पाए हैं | समय-समय पर भगवान ने अवतार धारण किया और पापियों का संहार करके इस पृथ्वी पर पुनः धर्म की स्थापना की तथा निश्चित अवधि के उपरांत काल के विधान को मानते हुए अपने परमधाम को चले जाते हैं | कहने का तात्पर्य है कि इस संसार में मनुष्य जब आता है तो कुछ भी लेकर नहीं आता जीवन भर सब कुछ कमा लेने के चक्कर में अपने जीवन के उद्देश्य को भूलकर मनुष्य दिन रात कर्म कुकर्म किया करता है और इन कर्मों से अनेक प्रकार की संपत्तियां भी अर्जित करता है परंतु जब इस संसार को छोड़कर जाना होता है तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं होता | इसीलिए हमारे महापुरुषों ने मनुष्य को सत्कर्म करने की आज्ञा दी क्योंकि सत्कर्म ही मनुष्य के जाने के बाद भी उसको अमर बना देते हैं |*
*आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य एक दूसरे के प्रति इतना अधिक आक्रामक हो रहा है जैसे वह चिरकाल तक के लिए पृथ्वी पर आया हो | एक देश दूसरे देश के प्रति , एक समाज दूसरे समाज के प्रति इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है जैसे उसे यहाँ से जाना ही नहीं है | आज का मनुष्य यह मानना ही नहीं चाहता है कि उसे भी कभी इस धरती को छोड़कर जाना पड़ेगा | अनेकों प्रकार के कर्म / कुकर्म करने वाला मनुष्य इस प्रकार संपत्ति का संचय करता है जैसे वह इसका उपयोग करता ही रहेगा | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने के लिए धन-संपत्ति की आवश्यकता तो है परंतु धन अर्जन के चक्कर में अपने इस दुर्लभ मानव जीवन को तथा इसके उद्देश्य को नष्ट कर लेना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती है क्योंकि इस संसार से आज तक कोई कुछ भी लेकर जा नहीं सका है | इस धरा का जो भी उपार्जन है इसी धरा पर धरा रह जाता है | यह लगभग प्रत्येक मनुष्य जानता है परंतु जानने के बाद भी वह ऐसे कृत्य करने लगता है जिससे कि मानवता भी लज्जित हो जाती है | इस संसार में जब महान आत्माएं भगवान के अवतार आदि कालावधि को नहीं पार कर पाए तो साधारण मनुष्यों की क्या बिसात है | जब तक जीवन है तब तक प्रेम पूर्वक सब से मिलकर इस जीवन को अमर बनाने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए |*
*यह जीवन क्षणभंगुर है अगले क्षण क्या हो जाएगा किसी को भी नहीं पता है | इसलिए प्रत्येक क्षण का सकारात्मक सदुपयोग करते हुए अपने जीवन को जीने का प्रयास करना चाहिए |*