*इस धरा धाम पर चौरासी लाख योनियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है | मानव जीवन बहुत ही दिव्य है इस जीवन को प्राप्त करके आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं | मनुष्य के जीवन में संगठन का बहुत बड़ा महत्व है | मनुष्य अकेले जो कार्य नहीं कर सकता है उसे दस लोगों का समूह अर्थात संगठन मिलकर पूरा कर लेता है | आधुनिक मानव पहले जंगलों में संगठित होकर रहते हुए जीवन का विकास करने में सक्षम हुआ , धीरे धीरे मनुष्य ने संगठन के महत्व को समझा और संगठित होकर किसी भी कार्य को कर पाने में सक्षम हुआ | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने कुछ बंदर भालुओं को संगठित करके लंका जैसे विशाल साम्राज्य पर चढ़ाई करके विजय प्राप्त की , वहीं बालकृष्ण ने कुछ ग्वाल बालों को संगठित करके मथुरा के राजा कंस के द्वारा समय-समय पर भेज गये निशाचरों का विनाश किया | इसलिए संगठन की शक्ति को नकारा नहीं जा सकता | परंतु यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि त्रेता के वानरदल एवं द्वापर के ग्वालमण्डल के हृदय में कोई स्वार्थ नहीं था | ऐसे अनेक उदाहरण हमारे इतिहास में देखने को मिलते हैं जहां संगठन की शक्ति का परिणाम देखने को मिलता है | आधुनिक परतंत्र भारत को स्वतंत्र कराने में भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठित होकर इस कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं इसलिए मानव जीवन संगठन बहुत ही महत्वपूर्ण है | संगठन वही सफल होता है जिसके सदस्यों की मनोवृत्ति परोपकारी एवं समाज कल्याण की हो | निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाला संगठन सफलता की ऊंचाइयां छूता चला जाता है परंतु जिस संगठन में निजी स्वार्थ पनपने लगता है वहां का प्रत्येक सदस्य अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए कार्य करने लगता है और वह संगठन ना तो समाज का भला कर पाता है और ना ही किसी व्यक्ति का | अंततोगत्वा वह समाप्त हो जाता है या फिर समाज की दृष्टि में उसका पतन हो जाता है | संगठन कोई भी हो जब तक उन लोगों के हित की कामना से कार्य करता है तब तक तो उसकी दिव्यता अक्षुण्ण रहती है परंतु जिस दिन वही संगठन लोकहित की कामना का त्याग कर देता है उसी दिन वह समाज के विपरीत कार्य करने लगता है | इस प्रकार यदि संगठन मनुष्य के लिए आवश्यक है तो कहीं ना कहीं से घातक भी है | संगठन बनाकर दुष्कर से दुष्कर कार्य बहुत ही सरलता से किया जा सकता है इसलिए संगठन के महत्व को नकारा नहीं जा सकता |*
*आज हम जिस आपाधापी के युग में जीवन यापन कर रहे हैं यहां मनुष्य की स्वार्थपरता स्पष्ट झलकती है | अपना हित साधने के लिए प्रत्येक मनुष्य कुछ भी करने को तैयार दिख रहा है | यद्यपि हमारी शास्त्रों में लिखा गया है "संघे शक्ति कलियुगे" अर्थात इस कलयुग में मनुष्य संगठित होकर कोई भी कार्य कर सकता है और करने वाले कर भी रहे हैं परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज अनेक संगठनों को देख रहा हूं जिनका निर्माण तो लोक कल्याण की भावना से हुआ परंतु आज वे भी सिर्फ अपना हित साध रहे है | आज हमारे समाज में अनेक प्रकार के सामाजिक संगठन एवं राष्ट्रीय संगठन कार्य कर रहे हैं परंतु ये संगठन राजनीति से प्रेरित होकर समाज के कितने हितेषी है यह भी किसी से छुपा नहीं है | समय-समय पर समाज की कुरीतियों के विरुद्ध अनेक संगठन बने परंतु मनुष्य की स्वार्थपरता एवं राजनीति में अपना स्थान बनाने की कामना ने मनुष्य को उस संगठन के मूल उद्देश्य को भुला करके स्वयं के हित के विषय में ही सोचने को विवश कर दिया | आज हम सामाजिक संगठन या राष्ट्रीय संगठन बनाने की बात तो करते हैं परंतु उसके उद्देश्य को भूल जाते हैं | कोई भी संगठन तभी सफल हो सकता है जब उसका प्रत्येक सदस्य निस्वार्थ भाव से उस संगठन एवं राष्ट्र के प्रति समर्पित हो अन्यथा कोई भी संगठन निजी उपलब्धि एवं स्वार्थ पूर्ति का साधन ही बनता दिख रहा है | आज हमारे देश में जितने सामाजिक एवं राष्ट्रीय संगठन हैं यदि वे अपने मूल उद्देश्य को न भूल कर समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व का विधिवत पालन करें तो हमारे देश में किसी प्रकार की कोई समस्या आ ही नहीं सकती , परंतु यह दुख का विषय है कि समाज के नाम पर बने अनेक संगठन आज समाज को बांटने का कार्य कर रहे हैं | हो सकता है कि हमारे इस विचार से सभी लोग सहमत ना हो परंतु यदि आत्मचिंतन करके इस विषय पर विचार किया जाय तो सत्यता स्पष्ट झलकने लगेगी | संगठन की सफलता एवं समाज कल्याण के उद्देश्य की पूर्ति तभी हो सकती है जब उसके सदस्यों की मानसिकता सकारात्मक एवं समाज के कल्याण की को नहीं तो कमाने खाने का एक अड्डा भर हो सकता है | मैं किसी संगठन की आलोचना नहीं कर रहा हूं बल्कि जो आज देखने को मिल रहा है वही लिखने को विवश हूं |*
*यद्यपि मानव जीवन में संगठन का बहुत ही महत्व है परंतु फिर भी आज मनुष्य की मानसिकता इन संगठनों पर कुठारघात कर रही है |*