*सनातन धर्म में मनुष्य के लिए धर्म अर्थ काम मोक्ष आदि चार पुरुषार्थ बताये गये हैं | जीवन भर धर्म करते हुए अर्ध एवं काम का उपभोग करते हुए जीवन का अन्तिम लक्ष्य होता है मोक्ष अर्थात ईश्वर की प्राप्ति करना | मोक्ष एवं ईश्वर प्राप्ति करने के लिए मनुष्य के द्वारा अनेकानेक उपाय किए जाते रहे हैं | ईश्वरप्राप्ति करने के लिए साधना को विशेष महत्त्व दिया है | साधना का अर्थ यह नहीं हुआ कि परिवार व समाज को छोड़कर जंगल में जाकर बैठ जाय | साधना का अर्थ होता है अपनी इन्द्रियों एवं मन को साधना | हमारे सनातन धर्म अनेक प्रकार की साधनाओं का वर्णन मिलता है उसमें सबसे सरल एवं लघु रूप है व्रत करना | व्रत का अर्थ होता है किसी विषय विशेष के प्रति संकल्पित होना | संसार की विषय वासनाओं से चित्त को हटाकर ईश्वर के प्रति लगाना ही व्रत का लघु स्वरूप है | जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है उसी प्रकार पौष्टिक आहार की अधिकता से शरीर को बचाए रखने के लिए अधिक नहीं तो कम से कम दिन के लिए सभी प्रकार के आहारों का त्याग करना ही व्रत है | एक बात और ध्यान देने योग्य है कि व्रत का अर्थ मात्र आहारों का त्याग करना ही नहीं है बल्कि जिस दिन व्रत रहा जाए उस दिन अपनी समस्त इन्द्रियों को वश में करना | व्रत करके ही पार्वती जी ने भगवान शिव को तथा बालक ध्रुव ने श्रीहरि विष्णु को प्राप्त किया था | जिस दिन व्रत रहा जाय उस दिन आहार का त्याग करने के साथ ही अपने मन में उठ रहे बुरे एवं नकारात्मक विचारों का भी त्याग करना चाहिए | कोई भी व्रत निर्जन रहकर ही किया जाना चाहिए यदि निर्जन न रह पाये तो जल पीकर व्रत रहे फिर भी यदि मन को साध पाये तो फलाहार ले ले यदि फलाहार करने के बाद भी मन असंतुष्ट हो तो कोई व्पत ही नहीं करना चाहिए | क्योंकि जब अपने मन को ही नियंत्रित न किया जा सके तो व्रत रहने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है |*
*आज युग बदला , परिवेश बदला और बदल गई मनुष्य की मान्यता एवं मानसिकता | जहां मनुष्य ने सारे विधान अपने अनुसार परिवर्तित कर लिए हैं वही व्रत के स्वरूप को भी अपने अनुसार बना लिया है | आज व्रत रहने का अर्थ आहार का त्याग नहीं बल्कि आज व्रत तरह-तरह के व्यंजनों को चखने का साधन बनते जा रहे हैं | लोग व्रत रहने के पहले पारण के विषय में जानना चाहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देखता हूँ कि व्रत के एक दिन पहले मनुष्य बाजारों से फलाहार में प्रयुक्त होने वाले अनेक खाद्य पदार्थों का संग्रह करना प्रारंभ कर देता है और व्रत वाले दिन बदल बदल कर स्वादिष्ट फलाहार करके व्रत का पालन कर रहा है | एक तरफ जहां हमारे शास्त्रों में व्रत का अर्थ अपनी इंद्रियों की साधना बताई गई है वहीं दूसरी ओर आज व्रत रहने वाले व्रत के ही दिन ऐसे कृत्य करते हैं जिसे देख कर हृदय द्रवित हो जाता है | अपने मन एवं इन्द्रियों की साधना करके मनुष्य अपने बस में ना कर पाए तो व्रत रखने का कोई औचित्य नहीं है | तरह तरह के स्वादिष्ट फलाहार ही करना है तो व्रत करना ही नहीं चाहिए क्योंकि व्रत का अर्थ ही होता है त्याग करना | आज मनुष्य व्रत शास्त्रों में बताए विधान की अपेक्षा अपने मन से बनाए विधान के अनुसार कर रहा है | ऐसे व्रतधारियों को व्रत करने का कितना फल प्राप्त होगा इसको ईश्वर ही जाने | यदि व्रत का फल प्राप्त करना है तो मनुष्य को आहार के साथ-साथ सभी प्रकार की नकारात्मकता का त्याग भी करना होगा अन्यथा व्रत करने का कोई लाभ नहीं मिलने वाला है |*
*व्रत करके दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त किया.जा सकता है परंतु व्रत का दिखावा करके कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता | अत: यदि व्रत किया जाय तो व्रत के विधानों का पालन किया जाना चाहिए |*