*ईश्वर ने मनुष्य को सुन्दर शरीर दिया साथ प्रत्येक अंग - उपांगों को इतना सुंदर एवं उपयोगी बना दिया कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हो गया | यद्यपि आँख , नाक , कान , मुख एवं वाणी ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को प्रदान किया है परंतु मनुष्य को विवेक - बुद्धि के साथ अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति करने की स्वतंत्रता भी प्रदान कर दी है | मनुष्य अपनी वाणी के माध्यम से सारे संसार को अपना बना सकता है और इसी वाणी के माध्यम से संसार उसका विरोधी एवं शत्रु भी हो जाता है | मनुष्य का अचूक अस्त्र है उसकी वाणी , जहाँ सौम्य , सकारात्मक एवं मधुर वाणी मनुष्य को सर्वप्रिय बनाती है वहीं कर्कश , नकारात्मक एवं अनर्गल वाणी मनुष्य को अनेकों विरोध का सामना तो करवाती ही है साथ मनुष्य अपने अनेकों शत्रु भी पैदा कर लेता है | मुंह से निकले हुए शब्द कभी भी वापस नहीं आ सकते हैं इसलिए प्रत्येक मनुष्य को कुछ भी बोलने के पहले उस पर विचार अवश्य करना चाहिए | मनुष्य के परिवेश एवं संस्कारों के अनुसार ही उसकी मानसिकता हो जाती है और मनुष्य की मानसिकता के अनुसार ही उसके विचार भी हो जाते हैं और मनुष्य के मस्तिष्क में चल रहे विचार ही उसकी वाणी के माध्यम से हमको सुनने को मिलते हैं | मनुष्य की मानसिकता को जांचने - परखने का सबसे सशक्त माध्यम मनुष्य के मुख से निकले शब्द ही कहे जाते हैं | इसी मानसिकता एवं वाणी के ही कारण बड़े - बड़े परिवारों का विनाश होता देखा गया है | कप्कश एवं अनर्गल वाणी के कारण ही महाभारत जैसा विनाशकारी महायुद्ध हो गया और उसी महायुद्ध के बीचोंबीच योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की वाणी गीतारूप में आज तक मानवमात्र का कल्याण कर रही है | मनुष्य को कब कहाँ कैसी वाणी बोलनी चाहिए इसका विचार अवश्य करना चाहिए | एक ही शब्द के भिन्न - भिन्न स्थानों पर अर्थ बदल जाते हैं | प्रेममयी वाणी भी स्थान स्थान पर भाव परिवर्तित कर देती है | परिवार एवं समाज में साधारण एवं विशिष्ट व्यक्तियों के लिए सम्बोधन भी भिन्न हो जाता है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को विधिवत चिंतन मनन करके ही रोई भी शब्द अपने मुख से निकालना चाहिए क्योंकि मुख से निकले शब्द वापस नहीं होते और मनुष्य के पास पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचता है |*
*आज मनुष्य स्वतंत्र एवं स्वछन्द हो गया है | आज समाज में ऐसा लगता है जैसे किसी के भी पास वाणी का संयम रह ही नहीं गया है | मनुष्य बिना विचार किये कुछ भी बोल रहा है जिसका परिणाम समाज में कटुता एवं वैमनस्यता के रूप में स्पष्ट दिख रहा है | आज मनुष्य की मानसिकता यह हो गयी है कि मैं जो बोल रहा हूँ वही सही है | आज किसी समाज में कुछ कहने के बाद जब कुछ लोग उसका विरोध करके उसे गलत कहने लगते हैं तो वह व्यक्ति अपनी उस गलत बात को सही सिद्ध करने के लिए अनेक प्रकार के अनर्गल वक्तव्य देने लगता है जिससे वह स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करता रहता है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बता दूँ कि ऐसा व्यक्ति स्वयं के मन से तो श्रेष्ठ बन सकता है परन्तु उसके बोले गये शब्द ही उसका निर्धारण करते हुए समाज में उसकी स्थिति स्पष्ट कर देते हैं | आज परिवार से लेकर राष्ट्र तक यदि घमासान मचा हुआ है तो उसके अनेक कारणों में मुख्य कारण उच्छृंखल वाणी को कहा जा सकता है | मनुष्य स्वयं को मर्यादित तो कहता है परन्तु वह स्वयं की वाणी की मर्यादा का ध्यान नहीं रख पाता है | मनुष्य की विद्वता एवं मूर्खता उसकी वाणी एवं अभिव्यक्ति से बहुत सरलता से मापी जा सकती है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को देश काल परिस्थिति के अनुसार ही वाणी का प्रयोग करते हुए वक्तव्य देना चाहिए | मनुष्य को सदैव ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे उसकी निराभिमानिता तो झलके ही साथ वह सबको ही कर्णप्रिय लगे | परंतु आज लगभग सभी की वाणी में अभिमान के दर्शन हो ही जाते हैं जिसके कारण मनुष्य कहीं न कहीं स्वयं असहज हो जाता है | हम जो बोल रहे हैं वह हमारे लिए तो ठीक ही रहता है परंतु यह भी ध्यान देना चाहिए कि हम जो बोल रहे हैं उसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है | जब समाज आपकी वाणी की सराहना करे तभी यह समझना चाहिए कि हमने यथार्थ वक्तव्य दिया | वाणी का प्रयोग बहुत ही सोंच समझकर करना चाहिए इस तथ्य को समझ लेने वालों को ही सफलतायें भी प्राप्त होती रहती हैं |*
*संसार में अनेक घातक हथियार बने हैं जिनके माध्यम से एक क्षण में संसार का विनाश हो सकता है परंतु सबसे घातक हथियार है मनुष्य की वाणी , इसके माध्यम से समूल नाश हो जाना सम्भव है |*