*धरती पर मनुष्य ने जहाँ एक ओर विकास की गंगा बहाई है वहीं दूसरी ओर विनाश का तांडव भी किया है | आदिकाल से ही समय समय पर अपनी प्रभुता सिद्ध करने के लिए यहाँ युद्ध भी होते रहे हैं | हमारे देश भारत के इतिहास में वैसे तो अनेक युद्ध हुए हैं परंतु "महाभारत" (प्रथम विश्व युद्ध) जैसा दूसरा युद्ध न तो हुआ है और न ही भविष्य में होने का संभावना ही है | किसी भी युद्ध का परिणाम कभी भी सुखद नहीं होता है परंतु मनुष्य की महत्वाकांक्षा ही किसी युद्ध की आधारशिला होती है | महाभारत युद्ध के कई कारण थे अनेक विद्वानों ने महाभारत युद्ध के भिन्न - भिन्न कारण बताये हैं , परंतु यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाय तो इसका प्रमुख कारण हमारे शास्त्रों में बताये गये मनुष्य के षडरिपु (काम क्रोध लोभ मोह अहंकार एवं मात्सर्य) के अतिरिक्त कुछ नहीं था | महाराज शान्तनु के हृदय में पहले गंगा एवं फिर सत्यवती के प्रति प्रकट हुआ कामभाव यदि इसकी आधारशिला कहा जाता है तो अनाधिकारी धृतराष्ट्र का अपने पुत्र एवं राजगद्दी के प्रति अंधा मोह , दुर्योधन का मात्सर्य एवं अहंकार , शकुनि का क्रोध , आदि ही प्रमुख कारण कहे जा सकते हैं | जब मनुष्य को काम , क्रोध , वोभ मोहादि घेर लेते हैं तो वह एक महाभारत को ही जन्म देते हैं | इनसे बचने का एकमात्र उपाय प्रभु की शरण ही है | इन षडरिपुओं से घिरे मनुष्य को जब धर्म - अधर्म का भान नहीं रह जाता है तो वह मनमाने कृत्य करने लगता है और तब धर्म की स्थापना एवं अधर्म के विनाश के लिए भगवान को हस्तक्षेप करना ही पड़ता है | मनुष्य को सदैव अपने द्वारा किये कर्म से अर्जित भोग वस्तुओं पर ही संतोष करना चाहिए जब मनुष्य दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण करके उसे अपना बनाने की कुचेष्टा करने लगता है तभी ऐसी भयानक स्थिति उत्पन्न होती है | यदि दुर्योधन ने यह कुचेष्टा न की होती तो शायद महाभारत होता ही नहीं , परंतु ऐसी मानसिकता के लोगों को साथी भी ऐसे मिल जाते हैं कि वे उसकी कुचेष्टा रूपी अग्नि में घी डालते रहते हैं और यही प्रचण्ड अग्नि उसका समूल नाश कर देती है | मदान्ध हो गये मनुष्य को अपना हित - अनहित भी नहीं सूझता और वह एक महाभारत को जन्म देता है |*
*आज चाहे एक छोटा सा घर हो या समाज एवं राष्ट्र चारों ही ओर एक महाभारत मची हुई है | युग बदल गये परंतु महाभारत होने के कारण नहीं बदले | आज भाई - भाई में यदि युद्ध हो रहा है तो कारण वही पुराना ही है "अनाधिकार कुचेष्टा" | आज मनुष्य अधिक सम्पत्ति अर्जित कर लेने की धुन में अपने ही सगे - सम्बन्धियों की सम्पत्ति हड़प रहा है जिससे एक लघु महाभारत का दर्शन हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन विचार करता हूँ कि एक दुर्योधन ने पाण्डव का अधिकार हड़प लेने के चक्कर में महाभारत जैसे विनाशकारी विशाल युद्ध आयोजित कर देता है परंतु आज तो घर घर में दुर्योधन के दर्शन हो रहे हैं जो अपने आगे अपने किसी भी श्रेष्ठ / ज्येष्ठ की उचित सलाह को न मानकर स्वयं को ही श्रेष्ठ एवं बुद्धिमान मानकर दुर्योधन की ही भाँति कृत्य कर रहे हैं और आज भी ऐसे लोगों के सलाहकार शकुनि , कर्ण एवं दुश्शासन की ही तरह उसको चारों ओर से घेरे हुए उसे बलवान एवं सक्षम कहते हुए उकसाते देखे जा सकते हैं | मनुष्य को अपना हित - अहित सोंचने के लिए ईश्वर ने विवेक प्रदान किया है प्रत्येक मनुष्य को किसे के उकसाने पर नहीं बल्कि स्वविवेक का प्रयोग करके निर्णय लेना चाहिए | ऐसा करके मनुष्य किसी भी महाभारत से बच सकता है | आज स्थिति यह है कि भाई तो भाई की सम्पत्ति हड़प ही रहा है साथ ही बहनों (जिसे पूज्यनीय माना जाता है ) की सम्पत्ति भी नहीं छोड़ रहा है | हमारे देश को दिशा दिखाने वाले बड़े - बड़े एवं प्रतिष्ठित ऋषि आश्रम भी इससे अछूते नहीं रह गये हैं | द्वापर में कलियुग के अंशावतार एक दुर्योधन ने महाभारत रची थी और आज तो कलियुग का ही साम्राज्य है ऐसे में मनुष्य की बुद्धिभ्रष्ट हो जाना साधारण बात है | इससे वही बच सकता है जो समय समय पर आत्मावलोकन करता रहे कि हम कहाँ तक सही हैं , क्योंकि संसार के लोग तो मुंह पर बड़ाई ही करते रहते हैं परंतु जब मनुष्य आत्मावसोकन करना प्रारम्भ कर दे तो स्वयं की आत्मा कुचेष्टाओं से बचने की सलाह प्रत्येक मनुष्य को एक बार अवश्य देती है | इसलिए सबसे सुगम मार्ग है आत्मावलोकन |*
*महाभारत का परिणाम कभी भी सुखद नहीं रहा है प्रत्येक मनुष्य को महाभारत की विनाशलीला से सबक लेते हुए उससे बचने का प्रयास करते रहना चाहिए |*