*हमारा देश भारत आदिकाल से आध्यात्मिक देश रहा है | आध्यात्म के ही कारण हमारे देश की पहचान सम्पूर्ण विश्व में हुई थी और भारत विश्वगुरु बना था | इसी आध्यात्मिक ज्ञान की धारा को अपनी आत्मा में धारण कर हमारे ऋषि - मुनियों ने समस्त विश्व के कल्याण की कामना से अपना जीवन समर्पित करते हुए मानवता के कल्याण के लिए अनेकों ज्ञानयुक्त अभिव्यक्तियां प्रसारित कीं , जिन्हें आत्मसात करके मानव जीवन धन्य हुआ | मानव जीवन बड़ा अनमोल है अनेको जन्म की तपस्या तथा अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद यह दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त हुआ है | इसमें ईश्वर की महान कृपा भी है तो इसे यूं ही नहीं गंवाया जा सकता | मनुष्य के भीतर ज्ञान की शक्ति है , क्योंकि प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का निवास होता है , ईश्वर ज्ञान के रूप में प्रत्येक मनुष्य के अंतस्थल में विराजमान हैं | इसी ज्ञान का विकास करके मनुष्य आध्यात्मिक विकास कर सकता है जिसके द्वारा यह दुर्लभ मानव जीवन निखर कर एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है | यह तभी संभव है जब मनुष्य अपने सदगुरु की शरण में जाकर के सत्संग को जीवन में धारण करें क्योंकि बिना सत्संग के अध्यात्म का विकास नहीं हो सकता है | मन बड़ा चंचल होता है और मन की चंचलता के कारण समाज में अनेक विसंगतियां फैली हुई है इस मन पर नियंत्रण कर आध्यात्मिक विकास तभी संभव है जब मनुष्य सद्गुरु की सेवा करते हुएं सत्संग लाभ ले | बिना सत्संग के मानव जीवन में आध्यात्मिक विकास सम्भव नहीं है | जिस प्रकार शारीरिक विकास एवं बौद्धिक विकास मानव जीवन की परम आवश्यकता उसी प्रकार इस जीवन को दिव्य से दिव्यतम् बनाने के लिए आध्यात्मिक विकास बहुत ही आवश्यक है , और इस आध्यात्मिक विकास का एक ही मार्ग है सत्पुरुषों के आचरणों का अनुसरण करते हुए सत्संग का लाभ प्राप्त करना क्योंकि बिना सत्संग किये मन पर नियंत्रण कर पाना असंभव है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने महापुरुषों एवं श्रेष्ठजनों के साथ सत्संग अवश्य करना चाहिए | इस मानव जीवन का उद्देश्य शरीर की पुष्टि एवं इंद्रियों की तृप्ति नहीं हो सकती उसके लिए ब्रह्मा विद्या (आध्यात्म) की परम आवश्यकता है क्योंकि उसके द्वारा ही जीवन का संपूर्ण विकास होता है और आध्यात्मिक विकास सत्संग से ही होता है | इस संसार में आध्यात्मिक जीवन को ही सर्वश्रेष्ठ जीवन कहा गया है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सत्संग करते हुए आध्यात्मिक पथ का पथिक बनने का प्रयास करना चाहिए |*
*आज हम आधुनिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं जहां मनुष्य अपने जीवन को सफल से सफलतम बनाने के लिए अनेक प्रकार के उपाय करता दिख रहा है | भौतिक साधनों से जीवन को सफल बनाने का प्रयास करता हुआ मनुष्य आध्यात्मिक विकास से विमुख होता जा रहा है | आध्यात्मिक विकास का एक ही मार्ग है सद्गुरु की शरण में रहते हुए सत्संग करना | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देख रहा हूं जहां लोग शारीरिक विकास के लिए अनेकों प्रकार की व्यायाम एवं बौद्धिक विकास के लिए अनेकों प्रकार की प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी बनकर परिश्रम करते हैं परंतु जिस विकास के इस मानव जीवन को सफल होना है उस आध्यात्मिक विकास के सबसे सरल मार्ग सत्संग से आज विमुख होते जा रहे है | इसका एक प्रमुख कारण यह भी है आज का मनुष्य भौतिक ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को परम विद्वान मानने लगा है इसी भावना के कारण स्वयं को परम ज्ञानी मानता हुआ मनुष्य किसी भी सत्संग का हिस्सा नहीं बनना चाहता | आज के इन परम ज्ञानियों को यह विचार करना चाहिए की जगद्गुरु भगवान भोलेनाथ भी समय-समय पर सत्संग में जाकर अपने जीवन को धन्य बनाने का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं | बिना सत्संग के इस मानव जीवन की सार्थकता हो ही नहीं सकती है और ना ही मनुष्य का आध्यात्मिक विकास हो सकता है परंतु आज शारीरिक विकास एवं बौद्धिक विकास के आगे आध्यात्मिक विकास गौड़ होता चला जा रहा है | यही कारण है कि आज मनुष्य अनेक प्रकार की दुखों एवं झंझावातों से घिरा हुआ है | आध्यात्मिक विकास के बिना मानव जीवन सफल नहीं हो सकता और आध्यात्मिक विकास सत्संग से ही संभव है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सत्संग के महत्व को समझते हुए इसका भागीदार अवश्य बनना चाहिए अन्यथा यह दुर्लभ मानव जीवन भौतिकता में खोकर रह जाएगा |*
*अनेक योग साधना करके मनुष्य जीवन को सफल बनाना चाहता है परंतु जीवन को सफल बनाने के लिए सबसे सरल मार्ग सतसंग से विमुखता ही सफलता के मार्ग में बड़ी बाधा है | सतसंग के महत्व को नकारने के कारण ही मनुष्य इस जीवन के उद्देश्य से भटक रहा है |*