🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *इस संसार में वैसे तो एक से बढ़कर एक बलधारी हैं परंतु सबसे बलवान यदि कोई है तो वह है समय ! समय इतना बलवान है कि जब वह अपने पर आता है तो अच्छे - अच्छे बलधारी धूल चाटने लगते हैं
*इस अद्भुत सृष्टि का आधार परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है | हमारे देश भारत के ऋषि महर्षिओ ने अपनी त्यागमयी पवित्र , कठिन साधना के बल पर उस परात्पर परमतत्त्व का साक्षात्कार किया था , जो एकमात्र नित्य सत्य है | उन्होंने अपने उसी दिव्य अनुभव के आधार पर यह निश्चित रूप से जाना था और जानकर इसके सिद्धा
*सनातन धर्म इतना दिव्य एवं महान है कि इसकी प्रत्येक मान्यताएं अपने आप में अलौकिक हैं | जिस प्रकार सनातन की प्रत्येक मान्यता समस्त मानव जाति के लिए कल्याणकारी है उसी प्रकार सनातन धर्म में व्यक्ति की पहचान कराने के लिए गोत्र की व्यवस्था बनाई गई थी | सनातन धर्म में गोत्र
*आदिकाल से ही मानव समाज में समाज को दिशा दिखाने के लिए मुखिया का चयन होता रहा है | किसी भी समाज या परिवार को मुखिया के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है | जिस प्रकार हमारे देश में पूर्वकाल में राजाओं का शासन हुआ करता था वही राजा पूरे देश का मुखिया कहा जाता था और अपने परिवार को , अपने राष्ट्र को निरंतर
*हमारा देश भारत आदिकाल से "वसुधैव कुटुम्बकम्" को आधार मानकर "विश्व बन्धुत्व" की भावना का पोषक रहा है | मानव जीवन में भाव एवं भावना का विशेष महत्त्व होता है | मनुष्य में भावों का जन्म उसके पालन - पोषण (परिवेश) एवं शिक्षा के आधार पर होता है | भारतीय शिक्षा पद्धति इतनी दिव्य रही है कि इसी शिक्षा एवं ज्
*किसी भी परिवार , समाज एवं राष्ट्र को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नियम एवं संविधान की आवश्यकता होती है , बिना नियम एवं बिना संविधान के समाज एवं परिवार तथा कोई भी राष्ट्र निरंकुश हो जाता है | इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों की दासता से १५ अगस्त सन १९४७ को जब हमारा देश भारत स्वतंत्
समय इतना बदल चुका है पर हममें से बहुतायत उसी पुराने ख्यालात के साथ जी रहे हैं | मेरा यह वक्तब्य थोड़ा अमर्यादित किस्म का लग सकता है लेकिन मै यह बात पूरी जिम्मेवारी के साथ कह रहा हूँ | इस वक्तब्य के म
पथिक ! जो बोया वो पाएगा------. अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर********************* बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठन
*सनातन धर्म के प्रत्येक पर्व त्योहार हर्षोल्लास से मनाये जाते है | हमारे प्रत्येक उत्सव एवं त्यौंहारों में भिन्नता होने के बाद भी प्रत्येक पर्व में एक समानता भी है कि कोई भी पर्व - त्यौहार या पूजन - अनुष्ठान हो उसका प्रारम्भ "दीप प्रज्ज्वलन" अर्थात दीपक जलाकर ही किया जाता हौ | जब तक उस दीपक में घी य
*संसार का अद्भुत एवं प्राचीन सभ्यताओं का उदय सनातन धर्म के अन्तर्गत ही हुआ | सनातन धर्म दिव्य एवं अद्भुत इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसकी प्रत्येक मान्यता को यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाता है तो उसके मूल में वैज्ञानिकता अवश्य समाहित होती है | सनातन धर्म में वैसे तो प्रत्येक वृद्धा स्त्री को माता कह
*आदिकाल से इस धरती पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य के हृदय में एक बार भगवान का सानिध्य प्राप्त करने का विचार अवश्य उत्पन्न होता है | मनुष्य के हृदय यह विचार जीवन के किसी भी पड़ाव पर उत्पन्न हो सकता है | जब यह विचार मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होता है तो वह ईश्वर प्
*समस्त मानव जीवन तीन कालों में विभाजित है :- १- भूतकाल २- वर्तमानकाल एवं ३- भविष्यकाल | जो व्यतीत हो गया वह भूतकाल , जो चल रहा है वह वर्तमानकाल एवं जो आने वाला है वह भविष्यकाल कहलाता है | मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है , यह या तो भूतकाल के स्वर्णिमकाल का स्मरण किया करता है या फिर भविष्य की योजनाय
*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद अपनी जीवन यात्रा में आगे बढ़ने के लिए प्रत्येक मनुष्य का एक लक्ष्य होता | हमारे महापुरुषों ने मानव जीवन का लक्ष्य एवं उद्देश्य आत्मोन्नति करते हुए सदाचरण का पालन करके ईश्वर की प्राप्ति करना बताया है | ईश्वर को प्राप्त करने के लिए वैसे तो मनुष्य अनेक साधन साधता है परंतु
*पूर्वकाल में यदि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बना तो उसमें मनुष्य के संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी | संस्कार ही मनुष्य को पूर्ण करते हुए पात्रता प्रदान करते हैं और संस्कृति समाज को पूर्ण करती है | संस्कारों से मनुष्य के आचरण कार्य करते हैं | किसी भी मनुष्य के चरित्र निर्माण में धर्म , संस्कार और संस्कृति
*सृष्टि के आदिकाल में परमपिता परमात्मा ने एक से अनेक होने की कामना करके भिन्न - भिन्न योनियों का सृजन करके उनमें जीव का आरोपण किया | जड़ - चेतन जितनी भी सृष्टि इस धराधाम पर दिखाई पड़ती है सब उसी कृपालु परमात्मा के अंश से उत्पन्न हुई | कहने का तात्पर्य यह है कि सभी जीवों के साथ ही जड़ पदार्थों में भी
*हमारे पूर्वजों ने अनेक साधनाएं करके हम सब के लिए दुर्लभ साधन उपलब्ध कराया है |साधना क्या है यह जान लेना बहुत आवश्यक है | जैसा कि हम जानते हैं की कुछ ऋषियों ने एकांत में बैठकर साधना की तो कुछ ने संसार में ही रहकर की स्वयं को साधक बना लिया | साधना का अर्थ केवल एकांतवास या ध्यान नहीं होता | वह स
आज विश्व तेजी से बदल रहा है और साथ ही जनसँख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है, भारत पर भी इसका असर पड़ रहा है | आज की नया पीढ़ी पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं को तेजी से खत्म कर एक नए समाज का निर्माण कर रही है | आज के उदारवादी माहौल मै कट्टरवादी विचारधारा को किसी भी हाल मै बर्द