महान चित्रकार लियोनार्दो द विंची एक हाथ से चित्र बनाते हुए दूसरे हाथ से लिख भी दिया करते. राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद दोनों हाथों से अलग अलग भाषा लिखने की कला में पारंगत थे. यही करिश्मा अब कुछ बच्चे दोहरा रहे हैं.
मध्य प्रदेश में रीवा की तरफ चलने पर सिंगरौली जिले के बुधेला गांव में एक कमरे में चल रहा वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल शायद देश का इकलौता स्कूल है जहां बच्चे एक साथ दोनों हाथों से दो भाषाएं लिखने के अभ्यस्त हैं . इस स्कूल के अंदर से आ रही आवाज से तो लगता है कि मानों अंदर कोई कुटीर उद्योग चल रहा है लेकिन अंदर जाने पर कुछ और ही दिखाई देता है.
बच्चों को दोनों हाथों में चॉक लेकर स्लेट पर लिखते देखना अपने आप में अनूठा तजुर्बा है. एक हाथ से हिंदी तो दूसरे हाथ से अंग्रेजी या उर्दू या फिर कभी कभी संस्कृत. इस स्कूल के बच्चे बिना हिचक एक साथ दो हाथों से दोनों भाषाएं लिखते हैं.
वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल दूसरे स्कूलों की तरह ही है. यहां सभी विषयों की पढ़ाई होती है. मध्य प्रदेश सरकार का पाठ्यक्रम लागू है. लेकिन इसकी विशेषता है कि यहां दोनों हाथों से लिखना सिखाया जाता है. 1999 से शुरू हुए इस स्कूल को किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं मिलती है. सुदूर ग्रामीण इलाके में इसके आस पास दूर दूर तक कोई दूसरा स्कूल नहीं है.
इन दिनों यहां करीब 200 बच्चे पढ़ रहे हैं. कक्षा आठ तक चलने वाले इस स्कूल को दो भाई अंगद और विरंगत शर्मा चला रहे हैं. 10-15 बच्चों के साथ खपरैल में इस स्कूल की शुरूआत की गई.
विरंगत का कहना है कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी पढ़ते हुए उन्हें पता चला कि दोनों हाथों से एकसाथ लिखा जा सकता है तो उन्होंने कोशिश शुरू की. विरंगत के मुताबिक वह खुद तो कामयाब नहीं हो सके लेकिन कई बच्चे दोनों हाथों से लिखने लगे. तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने इसे अपने स्कूल में अनिवार्य किया और सभी बच्चों ने इस विद्या को सीखना स्वीकार भी कर लिया.
कहते हैं कि ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान', तो इसी को आधार बनाकर इस विलुप्त हो रही विद्या को जीवनदान दे दिया गया. लेकिन उन्हें अफसोस है कि यहां से निकलने के बाद ज्यादातर बच्चे यह भूल जाते हैं. क्योंकि हाईस्कूल या इंटरमीडिएट या फिर डिग्री स्तर पर इसके जारी रहने का देश भर में कहीं कोई कोर्स नहीं है.
via - dw