पटना: दोनों हाथ नहीं हैं। फिर भी न सिर्फ आक्रामक बल्लेबाजी करते हैं, बल्कि पैरों से गेंदबाजी कर बैट्समैन के छक्के छुड़ा देते हैं। यह कहानी है जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग के रहने वाले 26 साल के आमिर हुसैन की। आमिर की इन्हीं खूबियों की बदौलत उनका भारतीय पैरा क्रिकेट टीम में चयन किया गया है। वह अप्रैल से होने वाली पैरा टी-20 सीरीज में बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए खेल ेंगे। बांग्लादेश सीरीज से पहले रांची के जेके इंटरनेशनल स्कूल में पैरा क्रिकेट टीम के कैंप में जब लोगों ने आमिर की गर्दन में बैट फंसाकर बल्लेबाजी और पैरों की उंगलियों से गेंदबाजी देखी तो सभी दंग रह गए।
ऐसी है क्रिकेटर बनने की कहानी
आमिर के क्रिकेटर बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। आमिर ने कहा, मैं छह-सात साल का था। मेरा जैकेट आरा मशीन में फंस गया। मेरे दोनों हाथ काटने पड़े। जिंदगी असहाय लगने लगी। इसी बीच मुझे क्रिकेट खेलने का शौक चढ़ा। बेलचा को बैट बनाकर दादी से बॉल फिंकवाता। मेरे खेल को देखकर गांव के ही जहूर भाई ने मुझे दिव्यांग टीम में शामिल कर लिया। यहीं से मेरे क्रिकेट का सफर शुरू हुआ। कुछ साल बाद मैं जम्मू-कश्मीर दिव्यांग टीम का कप्तान बन गया। इसी दौरान भारतीय पैरा फेडरेशन ने संपर्क साधा। मैं दिल्ली आ गया।
दिल्ली के साथ ही पंजाब, हरियाणा और लखनऊ में भी खेला। मेरे परफॉर्मेंस को देखकर भारतीय पैरा टीम में मेरा सेलेक्शन हुआ। अब मैं बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए खेलूंगा। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा दिन है कि मैं देश के लिए खेल रहा हूं।
आमिर ने कहा- नेताओं के कारण जम्मू-कश्मीर के हालात बिगड़े हैं। जब नौजवानों को रोजगार नहीं मिलेगा तो वे गलत रास्ते पर जाएंगे ही। अगर कश्मीर में रोजगार मिलने लगे तो अमन-चैन जरूर आ जाएगा। वहां के लोग बहुत सीधे हैं, यह जगह जन्नत है। हमारे नेताओं को चाहिए कि यहां के नौजवानों को रोजगार से जोड़े।
टीचर ने कहा था-तुम क्या पढ़ोगे, घर बैठ जाओ
आमिर ने कहा-मुझे पढ़ने का शौक था। दादी ने स्कूल में एडमिशन करा दिया। लेकिन टीचर ने कहा कि तुम क्या पढ़ोगे-लिखोगे। घर बैठ जाओ। यह कहकर मुझे स्कूल से निकाल दिया। मैं रोते हुए घर पहुंचा और दादी को पूरी बात बताई। दादी ने कहा-तुम स्कूल जाना और कहना कि मैं यहां सिर्फ बैठने आया हूं। मैं फिर स्कूल जाने लगा। वहां कोई मुझसे बात नहीं करता था। सब मुझे हथकटवा कहकर बुलाते थे। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। नौवीं तक पढ़ाई पूरी हो गई है।