लोगों को क्या लगता है? बलात्कार क्या होता है? कोई खेल होता है? आलू होता है कि किसी भी सब्जी में डाल दो और स्वाद आ जाए? कहीं भी, किसी भी जगह फिट कर दो? विरोध के नाम पर? मजाक के नाम पर? किसी भी संदर्भ, किसी भी प्रसंग में? या बलात्कार कोई क्रिएटविटी दिखाने की चीज है?
जस्टिस सिस्टम लाचार है, तो मतलब वो मर्द के नीचे पड़ी औरत है!
आज सुबह इस कार्टून पर नजर पड़ी. सामने एक औरत को लिटाया है. औरत पर पट्टी लगी है- जस्टिस सिस्टम. यानी वो औरत आपके देश की ‘लाचार और अबला’ न्याय व्यवस्था है. जो रो-चिल्ला रही है. लेकिन खुद को छुड़ा नहीं पा रही. चार लोग उसे दबोचकर बैठे हैं. चारों के ऊपर चेहरे लगे हैं. एक के ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का. दूसरे पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का. तीसरे पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का. चौथे पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का. इनके अलावा सामने की तरफ एक आदमी खड़ा है. बेल्ट खोल ली है. जिप भी खोल ली है. अब बस पैंट उतार रहा है. इस आदमी के ऊपर संघ के मुखिया मोहन भागवत का चेहरा पेस्ट है. कार्टून का भाव है कि देश की न्याय व्यवस्था सामने पड़ी एड़ियां घिसट रही है. और ये आदमी पैंट उतारकर जबरन उसकी योनि में अपना लिंग डालने जा रहा है. और बाकि के चारों इसकी मदद कर रहे हैं. ये सब मिलकर उस औरत का बलात्कार करने जा रहे हैं. इसमें दीपक मिश्रा वाले फिगर के ऊपर एक टेक्स्ट बॉक्स बना है. इसपर लिखा है-
गो फॉर इट, बॉस!
विरोध के नाम पर यही घटियापन हो सकता था?
मैंने इससे बीमार, इससे घिनहा कार्टून कभी नहीं देखा. इसे जिसने बनाया और सोशल मीडिया पर जो लोग इसे शेयर कर रहे हैं, उन्हें अंदाजा भी है कि वो कितनी घटिया हरकत कर रहे हैं? न्याय व्यवस्था लाचार है, तो उसकी लाचारगी दिखाने को तुमको एक औरत ही मिली? न्याय व्यवस्था मजबूर है, तो उसकी मजबूरी दिखाने के लिए तुमको एक औरत ही मिली? वो औरत, जिसे आदमियों ने दबोच रखा है! जो इस कार्टून के मुताबिक, बलात्कारी हैं. ये है तुम्हारी क्रिएटिविटी? ऐसी दो-कौड़ी की सोच को क्रिएटिविटी बताकर चला रहे हो और दावा ये कि जस्टिस सिस्टम के हिमायती हो? हां, ऐसे ही होता है बलात्कार. ऐसे ही दबोचा जाता है. ऐसे ही लड़की जमीन पर पड़ी रोती-चिल्लाती है. तो? तो इसका मतलब है कि तुम अपना विरोध दिखाने के लिए पेंसिल उठाओगे और इसे ड्रॉ कर दोगे? हो गया विरोध?ऐसा विरोध मेरी जूती पर
ऐसा विरोध मेरी जूती पर. मुझे कोई लेना-देना नहीं कि तुम्हारा विरोध किससे है. मुझे नहीं लेना-देना सिस्टम की मजबूरी से. लेना-देना नहीं है, मतलब फिलहाल नहीं है. फिलहाल मुद्दा ये है कि तुम्हें बलात्कार की ही उपमा मिली मजबूरी दिखाने को. और ऊपर से ये लिखना- गो फॉर इट बॉस! सामान है कोई? कि तुम परोस दो. झांको अपने अंदर. विरोध के नाम पर तुम्हारा खुद का दिमाग आधा बलात्कारियों जैसा हो गया. तुम्हें मजा आया जस्टिस सिस्टम को औरत बनाकर और उसे ऐसे नीचे पड़ा हुआ दिखाकर. मर्दों के नीचे कुचली, दबी और रौंदी हुई औरत. जिसके सामने एक आदमी पैंट उतार रहा है. ऐसे ही जैसे बी ग्रेड फिल्मों में विलेन उतारता था. ये कहकर कि आ जा, तेरी गर्मी उतारता हूं. तुम भी तो उनके ही जैसे हुए. तुम्हारी बुजदिल सो-कॉल्ड क्रिएटविटी भी बलात्कार करने पर ही जाकर ठहरी. तुम्हारा दिमाग भी बस इतना ही सोच पाया.कार्टून बनाने, शेयर करने वाले भी बलात्कारियों जैसे ही हुए फिर
तो जो लोग बलात्कार करते हैं, वो भी तुम्हारे ही जैसे होते हैं. हिंसक, क्रूर. वो बदला लेने के लिए बलात्कार करते हैं. किसी औरत को उसकी ‘औकात’ पर लाने के लिए बलात्कार करते हैं. अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए बलात्कार करते हैं. अपना पॉइंट साबित करने के लिए बलात्कार करते हैं. किसी को सबक सिखाने के लिए बलात्कार करते हैं. और जब ये सब भी न हो, तो बस मजे के लिए बलात्कार करते हैं. ये कार्टून बनाने वाले और इसे शेयर करने वाले भी मेरी नजर में उसी घिनही मानसिकता के लोग हैं. दो-कौड़ी के घटिया लोग.सुनो, वो औरत उठेगी और उस रेपिस्ट के लिंग पर जोर से लात मारेगी
मुझे इस कार्टून में कुछ जोड़ना हो, तो पता है मैं क्या ऐड करुंगी? मैं औरत को उस आदमी के लिंग पर पूरे जोर का लात मारते हुए दिखाऊंगी. इतनी जोर का कि वो आदमी लड़खड़ा कर गिर पड़ेगा. अधमरा हो जाएगा. और वो औरत खुद को झाड़ते हुए उठ खड़ी होगी. बाकी के चारों से निपटेगी. उन्हें इतना मारेगी कि अगली बार वो किसी औरत को मजबूर और अबला समझने की गलती नहीं करेंगे. वो रोयेगी नहीं. वो गिड़गिड़ाएगी भी नहीं. वो बस इतनी मजबूत होगी कि अपने लिए लड़ सकेगी. उस कार्टून की कल्पना करो. तुम्हें महसूस होगा कि कार्टून से बाहर निकलकर उस औरत ने तुम्हें जोर का थप्पड़ मारा है. उस थप्पड़ को हर उस औरत का जवाब समझना, जो कि इस कार्टून को देखकर मेरी तरह बौखला गई है.