बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ
का नारा अब बंद करो,
क्या कुछ पल के लिए सोना
उसकी इतनी बड़ी भुल है,
क्या सच में बेटियां स्वतंत्र है,
इसका क्या कोई जवाब है?
यह कैसी चीत्कार है
कैसी दर्द भरी पुकार है
इसमें वेदना अपार हैं
करुण भरी आवाज है
जिस्म पर झलकते
खून के लाल दाग है
कांप उठे दिल के भाव है
बेटियां अब मौन है
अब गुलशन उजाड़ है
भंवरे गुंजायमान है
रूह में लगी आग है
हवा में उसकी चीखें गुल है
जनता में रोष फूल है
यह बलात्कार का किस्सा
नियमित रूप से जारी है
शोर तो मुंह से बहुत है
पर जमीर की न
उठती आवाज है
इन हैवानों का लगता
यही लक्ष्य बना जीवन है
यह बलात्कार की वारदात
अब हो गई आम है
सुरक्षित जगहों में भी डर है,
लगता है अब इंसानों में
मर गया राम है
नारी की इज्जत का दाम
हुआ बहुत सस्ता है
सब भूल बैठे लगता
नारी के सम्मान का धर्म है,
सिधार गई मर्यादा है
अब हर कदम पर
ये बलात्कार है,
हैवानों के लिए बेटियां
एक खिलौना है,
नोंच -नोंच कर खाने वाले
यह नरभक्षी हैवान है,
न्याय आंखें बंद
कर सो रहा है
दरिंदा बेदाग़ घूम रहा है
नहीं दया के काबिल है
यह दरिंदे कसाई है
ये क्या किसी का दर्द जाने हैं
न हैवानियत की कोई हद है
और अगर कोई थी भी
तो यह सब अब रद्द है,
मासूम बेटियों को कुचल दो
पर इनकी खुद की हवस पर
आँच ना आए हैं,
यह बलात्कार किसी
बेटी का नहीं बल्कि
इस देश का हो रहा है,
क्योंकि इस देश का कानून
अब अंधा होते जा रहा है।
🙏🙏
अब बारी हैं अपनी खुद की रक्षा की,
खुद को तू मजबूत कर ले
यह लोग कभी ना सुधर पाएंगे
बलात्कार के ऐसे किस्से
दुनिया में यूँ ही दोहराते जाएंगे
हर एक चौराहे पर नजर टिकाए
बहुत से दुर्योधन मिल जाएंगे
औरत को वह कमजोर समझकर
उसकी इज्जत से खेल जाएंगे...
शकुनि जैसे पात्र यहाँ के
हर गलियारे में मिल जाएंगे
दुःशासन जैसा चीर हरण
करने ना जाने कितने आएंगे
भीष्म पितामह जैसे कितने
आंख , कान , मुँह बंद कर
सिर झुका कर बैठ जाएंगे,
इस समाज से तू ना
कहीं आस लगाकर बैठ जाना
यह औरत का सम्मान
कभी नहीं कर पाएंगे,
अब खुद पर इतना हौंसला रख
किसी से कोई उम्मीद ना लगा,
अब भी आने वाली नई पीढ़ी को
क्या तू अबला औरत ही कहलाएगी,
तू खुद को मजबूत कर ले
नई पीढ़ी खुद सबला बन जाएगी।