मां नर्मदा के पावन दर्शन सदा ही सुखमय होता है लेकिन जैसे आज उसे कुछ ज्यादा ही सुखद अनुभव हो रहा था, उसे मैं लगातार देख रही थी, वह अपनी धुन में नमामि देवी नर्मदा की बांसुरी बजा रही थी, लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि अगले ही पल उसने.....
"पंख होते तो आती रे"बजाना शुरू किया, यह उसके नित्यक्रम से कुछ हटकर था।
वह निरंतर संध्या में नर्मदा आरती ऐसे ही सुनाती थी, बहुत से लोग तो जैसे उसे सुनने ही आते हो, सुंदर,सुकोमल और भक्ति से भरपुर उसकी निर्मल साधना मन मोह सी लेती थी, लेकिन समय के अभाव में मैंने उसे बीच में रोककर जल्दी घर चलने को कहा।
आते समय वह अपनी मस्ती में चली जा रही थी, लेकिन मैं उसकी हर हरकत को ध्यान से देख रही थी, उसका हाल ठीक उस शराबी की तरह था जो अपने आप में सामान्य समझता है, लेकिन सही हाल तो दूसरे ही जानते हैं, हर मंदिर,मजार पर माथा टेकना आज कुछ अस्वाभाविक सा था क्योंकि अक्सर लोग तभी ऐसा करते हैं जब उसे कुछ पाने की मनसा हो या मिल गया हो।
आखिरकार हम रूम आए और अपने काम में व्यस्त हो गए। लेकिन ना जाने क्यों वह बार-बार आंटी के घर फोन की घंटी पर उठकर बहाने से बाहर जाती, और फिर वापस आकर बैठ जाती,आखिरकार जैसे ही आंटी ने आवाज दी।
वह दौड़कर हां आंटी मेरा फोन आया,यह बोलकर सीढ़ी उतरने लगी, आंटी ने मुस्कुराकर हां कहा, आंटी हर बात का ध्यान रखती थी और हमारी हर बात को दूसरे फोन पर सुनती थी, शायद इसलिए वह सब जानती भी थी (उनकी तरफ से एक सुरक्षात्मक उपाय भी था)
काफी देर बात करने के बाद जब वह रूम आई तो मैंने उससे पूछा, क्या कुछ खास बात है , उसने बस ऐसे ही का जवाब दिया और फिर अपनी मस्ती में खो गई। खाना बनाने में मदद भी नहीं कि, ऐसे ही खाना खाकर गुड नाइट बोली और डायरी लिखने बैठ गई। मैं भी गुस्से में गुड नाइट बोलकर सोने चली गई।
लेकिन मेरी उत्सुकता ने मुझे सोने नहीं दिया, सुबह जब वह ट्यूशन जा चुकी थी, तो मैंने उठकर देखा उसकी डायरी खुली हुई थी, मेरे मन का चोर जागा और मैं अपनी उत्सुकता को रोक ना पाई मैंने डायरी पढ़ना शुरू किया...
दिनांक- 01.09.2000
मैं अपनी प्यारी सहेली के साथ आज उसके घर उसकी बड़ी बहन की शादी में जा रही हूं, सफर काफी अच्छा और सुहाना सा लगता है।
दिनांक- 02.09.2000
उसके बड़े भाई को देखकर जैसे मैं अजीब सा रोमांच सा लगता है ,मैं ना जाने क्यों उनकी ओर खींची सी चली जा रही थी, कैसे भी उनसे मिलने और बात करने का बहाना ढूंढ रही थी, लेकिन कोई उपाय ना देख मैं उनके काम में हाथ बंटाने लगी, और इसी दौरान जैसे ही मिठाई के पैकेट को हाथ में लेकर उनका हाथ मेरे हाथ को स्पर्श करता हुआ मेरा शरीर रोमांचित हो उठा, जिससे मेरा रोम-रोम पुलकित सा हो उठा, हम कुछ सोचे इससे पहले ही मामी ने आकर दूसरे काम में उलझा दिया।
दिनांक- 03.09.2000
पूरी रात एक अजीब से सुखद अनुभव के साथ बिताने के बाद सुबह उठकर जल्दी से किचन में जा पहुंची, जिसका कारण कुछ और था, जैसे ही किचन में पहुंची तो ठीक मेरी सोच के अनुसार वह पहले से किचन में उपस्थित थे, जैसे ही मुझे देखा बोले......
आ गए मैडम जी मुझे मालूम था, यह चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में..... मैं स्तंभ सी रह गई यह सुनकर...
लो पी लो चाय कह कर चाय का कप आगे बढ़ाया, और जैसे ही चाय का कप लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और मुझे खींच लिया, मैं तो जैसे दूसरे दुनिया में ही चली गई, सिर चकराने लगा, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं.....क्या कहूं?
ऐसे लगा जैसे गिर ही जाऊंगी। लेकिन अगले ही पल उनके चुंबन ने जैसे संपूर्ण रोमांच के साथ जगा दिया, मैं प्रफुल्लित हो उठी।
पहले छोटी की शादी कर ले, फिर अपनी देखेंगे ,वादा रहा, अगर आपकी हा रही तो शादी आपसे ही करेंगे। लेकिन फाइनल ईयर है तो पर पढ़ लो, फिर यह सब भी हो जाएगा।
मैं मैं चुप सी रह गई, समझ नहीं आ रहा था कि वह मुझे समझा रहे हैं या प्यार का इजहार कर रहे हैं।
मैं कुछ कह पाती,इसके पहले ही आंटी (उनकी मम्मी) आ गई और बोली बेटा चाय मिली ,मीठी तो है ना, और हां थोड़ा सीमा आंटी को भी चाय दे दो, बोलती हुई इस घटना से अनजान बनते हुए चली गई, क्योंकि उनकी नजरों ने सब देख लिया था।
फिर पूरे दिन उन्होंने मुझे अपने घर से परिचित कराते हुए बहुत से काम बताए। मुझे तो जैसे सब अपना सा ही लग रहा था।
दिनांक- 04.09.2000
आज मुझे किसी बहाने से बुलाकर आंटी सबसे मिलवा रही थी या या कहो, सब को एक संकेत देना चाह रही हो,
लेकिन विदाई के बाद दादी तो दादी है, उन्होंने आते समय मेरे हाथ में तोड़ा मोड़ा 100 का नोट थमाते हुए बोली उम्र हो गई है, इसे सगुन समझकर रख लो और जल्दी आना, यह सुनकर सब ने उनको बड़ी गौर से देखा और मैंने भी शरमा कर उनके चरण छुए और हां, बोल कर आप भी आइएगा दादी बोल कर वापस आ गए।
दिनांक- 20.10.2000
मुझे बस इंतजार है कि पेपर समाप्त हो...
दिनांक- 21.10.2000
मुझे मेरे सहेली( रूम पाटनर )में ननंद सा एहसास होने लगा है। मैं उससे खुलकर सब बताना चाहती हूं, लेकिन डर सा लगता है।
दिनांक- 14.12.2000
मां का फोन आया, मैं झूम उठी जैसे मेरी सारी मुरादें पूरी हो गई, आज दादी ने आकर रिश्ता तय कर दिया, मैं बहुत खुश हूं और कल ही अपनी प्यारी सहेली होने वाली ननद को उनके घर वालों से पहले बताऊंगी सुबह मंदिर ले जाकर ,
मैंने डायरी वापस पढ़कर यथावत वैसे ही रख दिया और अपने काम में लग गई, उसके वादे के अनुसार वह सब छोड़कर जो मैं जान चुकी थी, यह बताया कि मेरे घर से उसके लिए रिश्ता आया है, वह बहुत खुश दिख रही थी।
मैंने भी उसे गले लगाकर बधाई दी, आखिर वह मेरी होने वाली भाभी जो थी।
मैंने आज तक यह किसी को नहीं बताया कि मैंने उसकी डायरी पढ़ ली थी। लेकिन हां मां ने उनके बहू बनकर घर आने के बाद यह जरूर बता दिया था कि वह किचन की सब बात जानती है।
समाप्त