हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा का महत्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में काफी अधिक है। हिंदी भाषा भारत देश का गौरव है। भारत की राजभाषा हिंदी, विश्व की एक प्रमुख भाषा है।
विश्व में सबसे बड़ा गणतांत्रिक देश भारत जैसे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा । राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा तो है पर देश के राष्ट्रपति जी , राष्ट्रगीत या फिर राष्ट्रध्वज के प्रति हम जितना सम्मान प्रदर्शन करते हैं वैसे ही राष्ट्रभाषा के प्रति सही मायने में सम्मान प्रदर्शन नहीं करते ।
हिन्दी की प्रचार प्रसार के लिए , हिन्दी को अगले पीढ़ी तक आगे ले जाने के लिए , सरकारी कामकाज में इसकी व्यापक बढ़ोतरी के लिए क्या हम अपने सीने में हाथ रखकर कह सकते हैं कि जिससे हमारा रोजी रोटी चलती है , घर परिवार चलाते हैं , मान सम्मान , पद मर्यादा मिलता है क्या उसके प्रति हम सचमुच निष्ठावान है । निष्ठा दिखाना तो छोड़िए क्या हम जरा सा भी संवेदनशील एवं उत्तरदायी है ?
हम तो हिन्दी के प्रति अपना कर्तव्य और दायित्व का जैसे तैसे निर्वहन कर रहे हैं । श्रुतिकटु है पर यह सच्चाई है । मन में सवाल तो अनेक उभरते हैं परंतु हर एक सवाल का जवाब भी है ।
हमारा यह रवैया ? रवैया अपना है और इसे बट भी आलोचना , बैठक , संगोष्ठी का आयोजन करते हैं , हिन्दी तिरस्कृत होती जा रही है । वाकई , क्या विचित्र ही है हम हिन्दी की प्रगति एवं प्रगामी प्रयोग के बारे में दिवस , राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर पर हिन्दी सम्मेलन मनाते हैं, पर हममें से कितने अपने बच्चों को वाकई हिन्दी मीडियम विद्यालयों में दाखिला दे रहे हैं ? ज़्यादातर माता पिता चाहते हैं की उनका बच्चा हिन्दी के बजाय अंग्रेजी में बात करे , पढ़े लिखे और नौकरशाह बने ।
हम यह सोचते हैं कि हिन्दी तो आम आदमी की भाषा है । इसमें पांडित्यता किस काम का ? दूसरी और विदेशानुरागिता के चलते हमारा मानना है कि अंग्रेजी विदेशी भाषा तो हैं पर सर्वोपरि संपर्क की भाषा है । सारे विश्व में इसकी बोलबाला रहा है । हम भूल जाते हैं कि आजादी के सत्तर साल बाद भी हम अंग्रेज़ियत के शिकार है । यहाँ बना हर एक कानून को अंग्रेजी में लागू भी करते हैं और जमीन से जुड़े उन हर इंसान को हेय दृष्टि से देखते हैं जो अपनी भाषा और मिट्टी से जुड़ा है । अंग्रेज़ तो देश छोड़ कर चले गये पर अंग्रेजी के साथ हम अभी भी जकड़े हुए हैं ।
आनेवाले दिनों में भी रहेंगे , इस में कोई दो राय नहीं है । जैसे - जैसे अपने देश की उम्र बढ़ रही है , वैसे - वैसे अंग्रेजी की जड़ें भारतीय समाज में गहरे उतरती जा रही हैं , और हिंदी अपने ही लोगों के बीच हमारे वश में है क्योंकि
"परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है।"