हिंदी तु भाग्यशाली
जन-जन की परिभाषा
मुख वाचाल क्या
नेताओं को भी तुमसे आशा
संस्कृत वृहद रूप
जिसे जनमानस ने अपनाया
समस्त भाषाओं को समेट अपने में
एक नया रूप दिखलाया
क्या शास्त्र क्या उपन्यास
तेरी सेवा में किये कवियों ने प्रस्तुत
जाने कितने गूढ़ छिपे
जिन की परिभाषा है अद्भुत
चिकित्सा ढूंढे तुझमें ज्ञान
तो विज्ञान को मिले समाधान
आयुर्वेद मिले चरक से
तो विमानिका में मिलते यान
कौन कहे तु सिर्फ भारत में
संपूर्ण विश्व तुझे अपनाता है
तभी तो शास्त्र अध्ययन हेतु
परदेसी भी भारत आता है
फले फुले तू मिलता रहे
यूं ही सम्मान
विदेशियों ने तो सीख लिया
काश भारतीय भी ले पाए कुछ ज्ञान
होता दुख मुझे यह जान
विदेशी बनाएं अपनी जिसे पहचान
और खुद अपने जानबूझकर
माने उसे अनजान
अगर विकास को पाना
तो हमें फिर से
हिंदी को अपनाना होगा
संपूर्ण विश्व की तरह ही
दिल में सम्मान जगाना होगा
क्यों ढूंढते फिर है हम
विकिपीडिया और विदेशी लेख
जबकि हिंदी में महानशास्त्रियों ने
जाने कितनी लिखे आलेख
आओ मिलकर पुनः सुंदर राष्ट्र बनाए
हिंदी को यूं ही दिल
खोलकर अपनाए
तभी होगा संपूर्ण विकास
बेझिझक न संकोच कर
हिंदी को भी है तुझसे आस....
Dr Meenakshi