दुर्बलता, उदासीनता और निराशा जैसे उसके जीवन का अंग बन चुका था, ना जाने क्यों इतनी प्रसिद्धि पाने के बाद जिस कारण से कुछ दिनों से जिस भी प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लेता, उसे निराशा ही हाथ लगती है, एक समय था जब अपना किसी भी प्रोजेक्ट को पास कराने के लिए उसके पास लोग कतार लगाए खड़े रहते थे, समय न रहता था उसके पास एक भी पल का।
वह हमेशा अपनी दुनिया में मशगूल रहने वाला एक सीधा-साधा व्यक्तित्व का आदमी था, कभी उसे ना तो किसी बात का अहंकार का था और ना ही कभी उसने किसी का दिल दुखाया हो, फिर भी ना जाने नियति ने कैसा पलटवार किया जो उसका हंसता खेलता परिवार अचानक तबाह हो गया।
उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद जैसे वह टूट सा गया था, बड़े आश्चर्य की बात थी कि इतनी सरल सौम्य और सुशील महिला पूजा के दौरान ध्यान मग्न होकर जो बैठी तो फिर उठ ही नहीं , सभी आश्चर्यचकित थे, कुछ का कहना था कि चिर निद्रा में चली गई।तो कुछ लोग उसे साध्वी की उपाधि देने लगे, सभी की अपनी-अपनी धारणाएं, लेकिन राकेश के लिए, जैसा उसका जीवन ही छिन गया था।
उसके बाद से उसके सभी प्रोजेक्ट फेल होने लगे,क्योंकि वह उस मन से काम नहीं कर पा रहा था, जो उससे पहले उसे सलाहकार मानते थे, वह भी उसकी बुराई करने लगे, जिन्हें सलाहकार इसके बिजनेस के गुण सिखाए, आज वही उसी के बिजनेस को तबाह करने ,छीन लेने पर तुले हुए थे, लेकिन वह अभी भी वही मौन रहता था।
बिल्कुल अकेला बेजान सा शांत एक जगह बैठा रहता था, जैसे वह अपनी निराशा और उदासीनता को चुनौती देने पर लगा और फिर अपनी संपूर्ण सामग्री को समेटकर एक बार उठ खड़ा होना चाहता हो, लेकिन जाने किस व्यवस्था के कारण उठ नहीं पाता। बस एकाग्रचित्त होकर कभी भावगंभीर हो जाता है तो कभी मुस्कुराने लगता था।
अंततः उसके मित्र से देखा ना गया और उसने उसे कह दिया यार तुम इतने साध्वी इंसान हो, और कहते हैं कि हिमालय की वादियों में स्वयं ईश्वर वास करते हैं,मेरी सलाह मानो कि कुछ दिनों के लिए वहां से हो आओ, अब वैसे भी अब यह समाज ना तो तुम्हारा रहा और ना ही तुम किसी से मिलना चाहते हो,कुछ दिन वहां बिता कर जब अच्छा लगे तो आ जाना, यह सुनते ही जैसे वह इसी बात को सुनने का इंतजार कर रहा था।
उठकर तुरंत चल पड़ा, बड़ा चौंकाने वाला व्यवहार था। उसका जैसे उसे कोई आदेश मिला था । वह उठकर चला जैसे अनजान दिशा की ओर, लेकिन ऐसी कोई अदृश्य शक्ति मार्गदर्शन कर रही थी। वह चला जा रहा था अपनी मस्ती में बिना भूख प्यास मौसम परिवर्तन हर किसी से अनजान होकर बस चला जा रहा था,जैसे ही वह हिमालय की तलहटी पर पहुंचा, कमजोरी के कारण गिर पड़ा, काफी दिनों से बिना कुछ खाए पिए चलते रहने के कारण शरीर टूट सा गया था।
मूर्छित होकर ना जाने कितने समय वह पढ़ा रहा ना कोई राहगीर और ना कोई सुध लेने वाला,लेकिन जैसे अपने मूर्छा में भी आनंद आ रहा था,वह लेटा रहा और इतना अपने आराध्य को पुकारता रहा, रुक रुक कर उसे अपनी पत्नी की ध्यान मग्न स्थिति प्रेरित करती रहती की संपूर्ण सत्य उस ईश्वर के पास से एक अजीब सा दृढ़ संकल्प लेकर वह उठ खड़ा हुआ और और उन पहाड़ियों की ओर बढ़ चला, बर्फीले तूफान और शीतल हवाएं भी जैसे उस पर कोई असर नहीं कर पा रही थी, वह बड़े चला जा रहा था, अपनी वास्तविक स्थिति से अनजान जैसे किसी अदृश्य शक्ति के आदेश पर I
अंततः कुछ दिनों के सफर के बाद वह निढाल होकर गिर पड़ा, तभी जैसे किन्हीं दो लोगों ने उसे अपना हाथ पकड़कर जैसे उसमें जान फूंक दी और बड़ी तीव्र गति से उसे ले उड़े। वह आश्चर्यचकित था कि कुछ समय पहले वह एक निढ़ाल शरीर के साथ निढाल था और अब ऊंचे पहाड़ों शिखरों पर उनके साथ दौड़ कैसे रहा था, दोनों अनजान लोगों ने शरीर पर मात्र कुछ वस्त्र ही ग्रहण किए हुए थे जो इतनी ठंड में अजीबोगरीब था।
दोनों ने उसे ले जाकर एक गुफा के सामने छोड़ दिया और इशारे से अंदर जाने को कहा, वहां बहुत सारे गुफाओं के बीच किसी एक दरवाजे पर उसे छोड़ा गया था,वह उठकर कुछ समझे अंदर चला गया ,जाकर देखा भीतर बिल्कुल शांत वातावरण के बीच बहुत से लोग ध्यान मग्न हुए बैठे थे, मध्य से एक ऋषि से दिखने वाले साधु महाराज ने उन्हें अपने साथ चलने का इशारा किया और गुफा से आने वाली रोशनी की और चल पड़ा।
थोड़ा सा सफर करने के बाद वह आश्चर्यचकित रह गया कि अंदर एक विशाल जलाशय में पुष्पकुंज के ऊपर अनेक ऋषि अपने अलग-अलग ध्यान मग्न में बैठे थे, फिर इशारा पाकर वह एक रास्ते की ओर चल पड़ा,जैसे ही इस ज्योति कुंज के प्रवेश द्वार पर पहुंचा, वहां ऋषि अदृश्य हो गया। अभी तक तो मानो उसके दिमाग काम करना ही बंद कर दिया था, वह किस काल्पनिक दुनिया में है तभी ज्योति कुंड में से अचानक किसी रोशनी का आभास पाकर वह आगे बढ़ा ,वह बिना कुछ जाने नतमस्तक होकर खड़ा हो गया। तभी एक चिर परिचित शांत ध्वनि जो शब्दों में कहे गए थे ,क्योंकि वहां सब कुछ जैसे बिना ध्वनि के कहा जा रहा था। सभी इसी भाषा में बात कर रहे हो। उसे इतनी दूर के सफर में पहली बार राकेश सुनने को मिला,वह खुद अपना नाम भूल सा गया था। तभी अपना नाम सुन दरवाजे से एक निद्रा सा जागा हो ,और देखा तो एक सुंदर नव युवक ने उससे कहा आ गए ,हम सभी आपका ही इंतजार कर रहे थे,
मेरा इंतजार......राकेश ने पूछा ।
हां, बिल्कुल आपका ही इंतजार कर रहे थे, उन्होंने राकेश को एक पात्र में कुछ पीने को दिया, जिसे पीते ही राकेश मे अजीब सी स्पूर्ति आ गई। उसे सब कुछ प्रकाशमय दिखने लगा। और वहां से चकित होकर देखने लगा कि वहां आसपास अनेकों साधु-संत सूक्ष्म रूप में विद्यमान थे और उन्हीं के बीच की राकेश की पत्नी शिवांगी मुस्कुरा कर उसकी ओर निहार रही थी।
तभी ऋषि प्रमुख ने राकेश से कहा, आश्चर्यचकित ना हो, यह तुम्हारी पत्नी का ही सूक्ष्म रूप है। वास्तविक शरीर तो मात्र एक माध्यम है जिसके साथ यहां जाने की अनुमति मात्र उन्हीं को मिलती है जो अत्यंत भाग्यशाली होते हैं और वह तुम हो यह शिवांगी के अंतर्मन की एक ख्वाहिश, जिसने तुम्हें यह सौभाग्य दिलाया।
तभी शिवांगी ने कहना प्रारंभ किया कि वह सुबह उठकर जब ध्यान करने बैठी ,उसके मन में यह विचार था कि पूर्व की तरह ही वह अपने पति के साथ ध्यान में बैठे। लेकिन किसी कारणवश वे अकेले ही ध्यान मग्न बैठ गई और ईश्वर की कृपा से वह पूर्ण रुप से ईश्वर में विलीन हो गई और यहां परलोक आ गई।
राकेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे कैसे हो गया कि वह वाकई दो दुनिया के बीच का सफर करते यहां पहुंचा है। क्या यह संभव है क्या यहां वास्तविक शिवांगी है। या कोई छल तो नहीं? अनेक सवाल उसके दिमाग में चल रहे थे, तभी उसे एक इशारा मिला और वह शांतचित्त होकर बैठ गया।
ना जाने कब कितने समय तक यूं ही बैठा रहा, बस इतना था क्या वह पूर्णरूपेण शांत चित्त हो चुका था।
वह इन सबसे परे बस सिर्फ किसी अदृश्य आभा और शिवांगी की उपस्थिति का आभास कर रहा था, लंबे समय के पश्चात उसने महसूस किया कि वह पूर्ण रूप से परिवर्तित हो चुका है। ना कोई उदासीनता और है और ना ही कोई निराशा, वह अपने आप में संपूर्ण महसूस कर रहा था। तभी शिवांगी ने उन्हें मुस्कुरा कर लौट जाने का आग्रह किया और समस्त ऋषियों ने उन्हें आशीष देकर जल्द वापसी का आश्वासन देकर विदा किया।
ऐसा लगा जैसे अब उसे किसी से मिलने बिछड़ने का कोई प्रभाव न हो। वह शांतचित्त होकर सभी को नमन कर और शिवांगी को एक मुस्कान देकर लौट जाने आदेश की पूर्ति करना चाहता है। यही सोचकर उसने जैसे ही पलट कर कुछ कदम आगे बढ़ाया। तभी आश्चर्यजनक रूप से उसने स्वयं को उसी स्थान पर पाया जहां से उसने सफर की शुरुआत की थी, क्या यह सपना था या कुछ और यह सोचकर उसने जैसे ही उठकर देखा तो ,अपने यौवन रूप को प्राप्त कर चुका था।
वह समझ चुका था, हिमालय की महिमा और ऋषि आदेश को मानकर वह अपने स्थान पर चला गया,इसी आशा के साथ की फिर से उसे वे दर्शन प्राप्त हो।
लौटकर अपने काम में पूर्ववत व्यस्त हो गया, उस दिन के इंतजार में जब उसे पुनः बुलाया जाए अपनी शिवांगी के पास, सभी आश्चर्यचकित थे, उसे इस रूप में देखकर......
"धन्यवाद"