दुनिया कहती है अक्सर ये
कुछ नहीं आता उस महिला को,
झूठी रश्मों में बंधी है
धारी तलवार है वो महिला,
संसार का यही दस्तूर है
अबला नारी का कौन हुआ
हो जाता शून्य वजूद है उसका
जब जब जो भी मौन हुआ,
अगर वो शिक्षित और स्वतंत्र हो
अपवाद का विषय उसी पर बनता,
रण में वो अगर शस्त्र उठा ले
लक्ष्मी बाई बन जाएंगी वो,
अगर वो आँखो में शर्म रखती
सब सहकर भी अमृत बोल बोले,
तुम्हारे अन्याय सहे और मौन रहे
तब ये दुनिया उसकी जय जयकार करे,
देख लो सब ये मूर्खों की बस्ती है
यहाँ नागिन पूजी जाती है
पावन सुशील सीता जैसी नारी
उनकी अग्नि परीक्षा ली जाती है,
अधर्म के लिए झुकी जो महिला
वाह वाह कहलायी वो संस्कारी,
जिसने पाप की हांडी को फोड़ा
उस सी नहीं कोई कभी दुराचारी,
ये रामयुग नहीं आज का कलयुग है
औरत ही औरत की बनी दुश्मन है,
सभी यातना सभी प्रताड़ना
चुप होकर वो सहती है,
औरत एक ऐसी परिभाषा है
शब्दों में बयां नहीं होती है,
हाँ हूँ मैं एक विद्रोही सी नारी
महिलाओ को भी अधिकार दो
अपने अहम की गांठ खोल दो
राम से तुम भी पूजे जाओगे
जो ना सुधरे तो सुन लो वहशी
कालचक्र ये दोहराओगे,
उतारेंगे अगर उसे जिस भी क्षेत्र में
सबसे सर्वश्रेष्ठ कर वो दिखाएंगी,
वो नारी है कमजोर मत समझना
कुछ अलग कर के ही जाएंगी,
महिला को महिला ही रहने दो
वो भी तो एक इंसान हैै
सुख दुख के भावों से बनता
उस नारी का भी संसार है,
वह सम्मान उनको भी दो
जिनका उन पर अधिकार हैं।
Dr. Meenakshi Suryavanshi ✍️