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अनेकता में एकता 🇮🇳

15 अगस्त 2024

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  सोनम.....  सोनम.......
सुनकर तुम्हारा नाम सोनम ही है ना? सुनकर अचानक वह चौंक पड़ी, पलट कर देखा लेकिन उसके पहले वह  कुछ समझ पाती एक जोरदार झटके ने उसे अपनी ओर खींच लिया। 
          
तभी धड़ाम....म... म....म......म......म.......
की जोरदार आवाज से जैसे वहां सब कुछ बिखेर सा दिया हो। उसने जैसे उठकर खड़े होने की कोशिश की, तभी एक जोरदार तमाचा जैसा उसके गाल पर पड़ा, जैसे ही उसने अपने कानों पर हाथ रखा, कान से निकलता हुआ खून देखकर वह बेहोश हो गई। 
               
उसे सिर्फ इतना ही सुनाई पड़ा, शुक्र है गोली सिर्फ कान को छूते हुए निकली, बेहोशी की हालत में उसे सिर्फ इतना पता था, कि उसे किसी ने हाथों से ही घसीटते हुए किसी अनजान जगह पर कुछ जाने पहचाने चेहरों के बीच लाकर छोड़ दिया हो और खुद गिर पड़ा हो। 
            
कौन.............??. मैं............. कहां हूं.............????             
स......न........ न..........न................की आवाज।
                
जब आंखें खुली तो सोनम ने अपने आपको अपने पिता की गोद में पाया। उसने चौंककर उठना चाहा, लेकिन उठ ना पाई ।बेहोश होकर गिर पड़ी। बस शांत के इशारे ने उसे चुप कर दिया। शांत होकर लोगों की बातें सुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वह लोग बातें कर रहे थे कि ना जाने कैसे और कब खबर लग गई कि यहां पर शहर के सभी वी.आई.पी. धनंजय सेठ की बेटी की शादी में आए हैं।              
                          
एक ऐसी शख्सियत जिसमें अखबार बेचने से अपने काम की शुरुआत कर, बिना मां बाप के अपनी जिंदगी के सफर की शुरुआत की थी, और यहां प्रदेश में वह अपने देश के (भारत) हर नागरिक को अपना परिवार मानकर चलता है। 
            
वह हर पल ना जाने कितनी बार जलील हुआ, कितनी मुश्किलों से गुजरा, लेकिन उसने हिम्मत ना हारी। वह लगातार आगे बढ़ता रहा और अपने साथ भारतीय मूल के हर नागरिक को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा। वह हम सबके लिए प्रतिदिन चर्चा का एक विषय हुआ करता है।
                             
छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग तक सभी को उनके सामंजस्य, सहयोग और उनकी मदद का पूरा भरोसा था। बच्चे उन्हें ताऊ जी, बड़े काका और बड़े भाई साहब कहकर पुकारते थे। 
               
आज उन्हीं के कारण विदेश में भी भारतीय मूल के सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार प्राप्त थे। अब उन्हें कभी भी कहीं भी स्कूल कॉलेज, दफ्तर या नौकरी के लिए अलग भाव से नहीं देखा जाता था। ऐसा लगता है जैसे वह खुद एक चलता फिरता हिंदुस्तान था, जो सरहद के पार भी अपनी मौजूदगी का एहसास एक अपनापन के साथ दिलाता है। उनकी सरलता, सहजता, अपनेपन के भाव को देखकर कई विदेशी भी उन्हें अपना करीबी समझने लगे थे।
                        
एक अजीब सा जादू  है कहते हैं कि, अगर उन्होंने किसी दुखी को देख भी लिया तो उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। क्या गजब का वरदान मिला उन्हें ईश्वर का, जब बुजुर्ग उनसे अपने दिल की बात ना कर पाए। तब भी वह अपने मर्म को समझ पाते और अत्यंत भाव के साथ लाखों दुआएं देकर अपने साथ रहने के लिए वृद्धा आश्रम में ले आते हैं। 
             
वह वृद्ध आश्रम में ही रहते थे। वह ही नहीं उनका पूरा परिवार वृद्धाश्रम का ही सदस्य था। सुबह से लेकर शाम तक बुजुर्गों की सेवा करना, वयस्कों की मदद करना और बच्चों की देखभाल करना उनका नित्य नियम था।      
        
लेकिन जहां एक और संपूर्ण भारतीय मूल उनका आभार मानता था तो वहीं अनेक अनजाने में जैसे कि अक्सर होता है, अनेक दुश्मन बनते चले गए, इसलिए नहीं कि उन्होंने किसी का नुकसान किया। वरन इसलिए कि उनकी उपस्थिति के कारण किसी भारतीय मूल का नुकसान नहीं कर पाए।
                  
शायद इसलिए कुछ विदेशी तो उनके दुश्मन बने ही थे, लेकिन कुछ नवयुवक भी उनके साथ (धनंजय जी) से मनमुटाव सिर्फ इसलिए रखते थे, क्योंकि उनके माता-पिता को उनसे ज्यादा धनंजय जी पर विश्वास था, जिनका मुख्य कारण उनका खुद का युवाओं का बेरूखा व्यवहार था, जिसे धनंजय जी ने भाप लिया और बुजुर्ग दंपति को अपने साथ ले गए, जिसे युवाओं ने अपनी गलती ना समझ, अपना अपमान माना और जितनी मेहनत आज उन्हें अपने माता पिता की सेवा में लगाना था, उतनी धनंजय जी की बुराई करने में और उनका नुकसान कैसे हो, इस सोच में बितता है। 
                      
शायद इसी कारण इन मनचलों में उसी गंदी राजनीति को अपनाकर "फूट डालो और शासन करो" गंदी राजनीति के तहत कुछ आपसी लोगों को तो कुछ उपद्रवी, उग्रवादी और आतंकवादी अनजाने में अपने साथ मिला लिया और छोटी-छोटी योजना बनाकर उनको नुकसान पहुंचाने का अनचाहा प्रयास करते रहे। 
                 
लेकिन जब सफल ना हो पाए तब अपनी अत्यंत बलवती ईर्ष्या से वशीभूत होकर आतंकवादियों के हाथ का खिलौना बन गए, और आज अनजाने में ही आतंकवादियों ने अपने मतलब के लिए पूरे भारतीय मूल को अलग-अलग टुकड़ों में बांटने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ही ली थी। तब भी जब उनको आत्म संतुष्टि ना मिली, तब उन्होंने आज इस जोरदार धमाके या कई आत्मघाती हमले के साथ इस घटना को अंजाम दिया। 
            
वह तो सही समय पर जो जोसेफ भाई और रेड्डी जी को किसी तरह भनक लग गई और सभी यहां तलघर तक सुरक्षित पहुंच गए। इस बेचारी सोनम जो इस बात से अंजान थी, मोबाइल पर बातें करते हुए टहलते रह गई। आज यदि अमृत ना होता तो शायद यह उसकी जिंदगी का आखरी कॉल होता। 

उसने सोनम को पहली बार अपनी चचेरी बहन के साथ उसे कॉलेज छोड़ने गया था। तभी एक जनरल इंट्रोडक्शन में देखा था, जिसमें सोनम ने मजाकिया अंदाज में कहा था....
वाह शिवानी काश कोई हमारा भी इतना हैंडसम भाई होता और हमें कॉलेज छोड़ने आता। 
          
इसके बाद जब सभी तलघर की ओर जा रहे थे। तभी अचानक अमृत की नजर सोनम पर पड़ी और वह उसे लेने आ गया। लेकिन इसके पहले कि वह कुछ कहता या, समझ पाता, धना धन गोलियों की आवाज और भयानक विस्फोट में उसके सारे सर को दबा दिया और इसी दौरान तेजी से आती हुई गोली से बचाने के लिए जब उसने सोनम को खींचा तब गोली सोनम के कान से टकराती हुई ऊपरी परत को चीरते हुए वह गोली अमृत के बाजू में घुस गई। 
               
वह बड़ी मुश्किल से अमृत को खींचकर बरामदे से अंदर हाल में लेकर आई। जिस कारण वह बच पाई, न तो न जाने आज क्या होता है। यह बच्चे भी ना बिना मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं रहते। 

सुनते कहां है हमारी यह,,,,बोलते हुए सोनम की मां अत्यंत चिंता करते हुए क्रोध में उनकी सहेली को बता रही थी।
वास्तव में होता भी ऐसा ही है, बच्चों को यह लगता है कि मां-बाप उन पर कुछ ज्यादा ही गुस्सा करते हैं, रोकते टोकते हैं लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह उनकी और प्रत्यक्ष रूप से चिंता ही है जिसे व क्रोध की जननी प्रकट करते हैं ताकि बच्चा सुधर जाए। उनकी अनुपस्थिति में कोई नुकसान न उठाना पड़े। 

सोनम के पिता (निर्मल) शांत ही थे, वह सोच नहीं पा रहे थे कि, किसे क्या कहे????
फिर क्यों उनकी चिंता का विषय कुछ और ही था। वे धनंजय के अति प्रिय मित्र हैं और उन्हें रह रह कर उनकी चिंता सता रही थी। एक तरफ घायल बेटी को लिए बैठे थे, तो दूसरी ओर उनकी आंखें किसी और को तलाश रही थी।और वह बार-बार लोगों से पूछे जा रहे थे शीतल के बारे में (धनंजय की पोती जिसे,धनंजय जी लेने गए थे) वह भी सोनम के साथ ही थी लेकिन अभी तक लौटकर नहीं आई।

अंतः बहुत सोच-विचार के बाद उनका मन नहीं माना और वह सोनम को उसकी मां अनुराधा के पास छोड़कर समझा-बुझाकर तलघर से ऊपर की ओर जाने लगे। अनुराधा जानती थी कि रोकने का कोई फायदा नहीं है , इसलिए उसने भी बरबस कोशिश ना की निर्मल जी कुछ समय में ही तेज गति से तलघर से ऊपर की ओर निकल पड़े। इससे पहले कि अनुराधा उसे कुछ कह पाती, वह उनकी पहुंच से बहुत दूर जा चुके थे। 
         
गोलियों की धना धन, गूंजती, आवाज और ना जाने कहां कहां छुपा रखे बम के गोले जब फटते थे, तो ऐसा लगता था मानो इस संपूर्ण हिंद भवन को गिरा कर ही रहा दम लेगा।  
                      
बड़े चाव से बनाया था हिंद भवन, जिसकी स्थापना के समय धनंजय जी ने साफ शब्दों में कहा था, यह मेरा नहीं, हमारा नहीं, संपूर्ण हिंदुस्तान का भवन होगा। हर हिंदुस्तानी जो यहां नया आए, जब तक अपने आप को सुरक्षित, संरक्षित और व्यवस्थित ना कर ले तब तक यहां रह कर सकता है। 
           
उससे किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क नहीं लिया जाएगा। यह भवन किसी की भी कोई पैतृक संपत्ति नहीं होगी। मेरे रहते या मेरे बाद में भी कोई जाने-अनजाने या चाहे अनचाहे में अगर किसी भी प्रकार का कोई शुल्क लेना भी लेना चाहे या इस संपत्ति पर अपना दावा करे तो यह संपूर्ण संपत्ति भारत सरकार के खाते में चली जाएगी।

कितना निश्चल भाव था उनका, कितना लगाव शायद ही कहीं देखने को मिलता है और ऐसे हिंद भवन की बर्बादी को देखना अत्यंत असहनीय था। बड़ा दर्द लिए आगे बढ़े ही थे। वह अपने मन में कि अचानक एक धमाके ने उन्हें परे धकेल दिया। 
एक सन..... न......न........न........न........न.......
आवाज के साथ......
                
वह जमीन पर पड़े हुए थे। तभी किसी ने उन्हें मजबूती से पकड़ कर अपनी और खींचा और तलघर की और ले चला और वह धनंजय जी थे। यह जान वह भी मन ही मन बहुत खुश हुए, शरीर का सारा दर्द जाता रहा।
तभी धनंजय जी उनके कान में बुदबुदाकर, क्या मरने आया था मेरे पीछे...
           
मैं तो आ ही रहा था....निर्मल ने मुस्कुराकर कहा जो तेरे जैसे आदमी के लिए मरना पड़े तो कोई गम नहीं। और फिर तू कहीं मुझे मरने देगा। 
      
भला अब बता कहां गया था, शीतल कहां है???शीतल का नाम सुनते ही धनंजय जी चौंक पड़े, हां मैं उसे ही तो लेने गया था, लेकिन तुझे देखकर वापस आना पड़ा, सोच रहा था तुझे बताऊं या नहीं.......
और सोनम कहां है???

तभी सोनम..... अंकल मैं यहां हूं, और शीतल शायद तमिल हाउस में होगी,  क्योंकि वह उधर ही रेड्डी साहब के बेटे के साथ गई थी। जोसेफ अंकल की बेटी भी उन्हीं के साथ है। 
दरअसल इस हिंद भवन में धनंजय जी ने हिंदुस्तान की तरह सभी को सुविधा अनुसार सुख पूर्वक रहे, इसलिए अलग- अलग प्रांत के लिए आवश्यकतानुसार सभी सुविधा युक्त उस भवन को सजा रखा था, जहां किसी भी प्रांत का व्यक्ति अपने संबंधित भवन में जाकर अपने वातावरण के अनुसार रह सकें। जो उसे अच्छा लगे, जहां वह सुरक्षा पूर्वक रह सके।
          
तभी रहमान भाई अचानक गोलियों की जोरदार आवाज में धीरे-धीरे उस तलघर के तरफ बढ़ते जा रहे थे। सभी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही आकर्षित करते है। देखते ही देखते दरवाजे की खटखटाहट ने पूरे वातावरण को भय में डुबो दिया।
 धनंजय जी जैसे ही आगे बढ़ने लगे, उन्हें निर्मल जी ने रोकना चाहा, लेकिन वह कहां मानने वाले थे, वह कुछ समझ पाते उससे पहले धनंजय ने गेट खोल दिया, शायद वह भाप गए  हो दरवाजे पर कौन है?
          
 रहमान चाचा हड़बड़ाहट के साथ अंदर तलघर की ओर आए और बोले यकीन नहीं था, कि हमारी ही औलादे हमारे बनाए कुनबे को उजाड़ देगी, सब बर्बाद कर दिया। इनको माफ करना धनंजय भाई, लेकिन मैं भी एक ऐसे ही आतंकवादी बेटे का पिता हूं, और तो और यकीन नहीं होता रेड्डी, जोसेफ, और यहां तक कि निर्मल जी तक के बच्चे उनके साथ (आतंकवादी) शामिल है। एक तरफ हम सबको एक साथ लेकर चलने की कोशिश करते है....तो वहां हमारे बच्चे.....
             
रहमान अत्यंत वेग में आ गए। उनको देखकर ऐसा लगा जैसे अगर आज वह बच्चे सामने आ जाए तो वह खुद ही उन्हें गोलियों से भून देते।
धनंजय जी शांत थे...वही निर्मल जी के तो जैसे होश ही उड़ उड़ गए। 
क्या कह रहे हो रहमान, यकीन नहीं होता यह सच है, तुम्हें कैसे पता है??
              
मैं जानता हूं" रेड्डी ने पीछे से आवाज देकर कहा"... निर्मल जी के चेहरे से जैसे हवाई सी उठने लगी। मैं भी जानता हूं,आप सब परेशान ना हो, बस अंतर इतना है कि आप लोग बता सकते हो, और मैंने आपको नहीं बताया..
अभी वह सभी पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं, लेकिन चिंता ना करें, मैं उन्हें जल्दी ही छुड़वा लूंगा। वह आप लोगों के ही नहीं मेरे भी बच्चे हैं, भटक गए होंगे, जवानी के वेग मे!!
             
सही निर्णय नहीं ले पाए और कुछ दोष तो हमारा भी है, हमने सब की ओर ध्यान दिया, लेकिन खुद अपने परिवार को समय ना दे पाए,शायद इसलिए बच्चों की नाराजगी का फायदा उन लोगों ने उठाया और उन्हें मोहरा बनाकर हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल किया। 
               
सभी हैरान थे कि इतना नुकसान उठाने के बाद भी कोई आदमी इतना सरल और सरस कैसे हो सकता है तभी उन्होंने कहा, अब और क्या बताऊं जबकि मेरी पोती शीतल भी उसमें शामिल है। 
निर्मल तुम्हारे बेटे के प्यार में उसे इतना अंधा बना दिया, कि खुद उसे अपने अच्छे और बुरे का अंतर नहीं समझ आ रहा, जब मेरी पोती का ही यह हाल है तो मैं किसी और से क्या शिकायत करूं। 
           
धनंजय जी बोलते जा रहे थे, लेकिन किसी में यह साहस नहीं था कि उन्हें रोक सके। अत्यंत भाव विभोर होकर कहे जा रहे थे। तभी अचानक संभलकर अमृत को आता देख सभी शांत हो गए। लेकिन शायद अमृत सब कुछ जानता था, उसने आकर जब यह बताया कि वह भी यह सब जान चुका था। तब सभी आश्चर्यचकित थे। 

पुलिस की गाड़ियों का सायरन,फायर फाइटिंग की गाड़ियों की ध्वनि और हेलीकॉप्टर के समूह की भीड़,जो रिकवरी और सर्चिंग के लिए आए थे। उनकी आवाज में सभी बातों (भावनाओं) को वही दबा दिया। 
              
थोड़े ही समय में वहां सब कुछ सामान्य था। बस अंतर इतना था कि हिंद भवन में जो अलग अलग कुनबो में जाने के रास्ते थे और बीच का बरामद से मिलने वाली सभी दीवारें विस्फ़ोटित कर दी गई थी। सभी ने देखा कि सभी कुनबो के लिए जो कमरे बनाए गए थे, वे एक ही कतार में नजर आते हैं, ऐसा लगता था जैसे आतंकवादियों ने भले ही नुकसान करना चाहा, लेकिन अनजाने में ही वह धनंजय को प्रसन्नता दे गए। 
           
वह मुस्कुरा रहे थे,और मुस्कुराते हुए बोले, चलो अच्छा है। बच्चों ने गलती में ही सभी बीच की दीवारों को मिटा दिया। वास्तव में यह एक पूर्ण हिंद भवन लगता है।
कोई दीवारें नहीं जो इसे हिंद हाल से उन सभी प्रांतों से मिलने से रोक सके। 

स्थिति सामान्य होते ही सभी कमरों से (जो अलग-अलग प्रांतों के लिए बनाए गए थे) से बाहर निकलना शुरु कर दिया। इतना विशाल जनसमूह मात्र एक आतंकी हमले से बिना किसी सोच विचार के आज एक साथ किसी ना किसी कमरों से निकल रहा था। जो लोग पहले कहीं ना कहीं दबी भावना से अपने लिए एक अलग कमरे का विचार रखते थे, शायद वह भी अब समाप्त हो चुका था।
               
विदेशी पुलिस और अधिकारीगण हैरान थे। हम हिंदुस्तानियों की सकारात्मक भावनाओं को देखकर जो इतने बड़े हमले को भी मात्र विचारों से यह परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन वह भी यह जानते थे कि शायद हमारी इसी भावना ने इतने हमले के बावजूद भी (जो हमें कमजोर बनाने के लिए किए गए थे) हमें ना तोड़ सके, और हर बार उनका हमला हमें करीब लाता गया । 
          
जिसके कारण वह और भी ज्यादा परेशान होते चले गए, सभी एक दूसरे से मिल रहे थे। एक दूसरे की खैर खबर पूछते ही गले मिल रहे थे।  
ऐसा लग रहा था जैसे बहुत सी नदी आकर किसी समुद्र में मिल रही है।
निर्मल, जोसेफ  रहमान, अमृत सबके दिमाग में कुछ और चल रहा था। लेकिन धनंजय जी गुनगुना रहे थे। 

"सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी, वो गुलसितां हमारा
गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा, सारे ...
पर्वत हो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा, सारे ...
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा...
      
उनका स्वर धीरे-धीरे गहराता चला गया, और सभी ने एक साथ उनका साथ दिया। बाकी भारतीयों की सहनशीलता विचार और उनके अनेकता में एकता की भावना अतुलनीय है, और यही भावना हमें संपूर्ण विश्व से अलग करती है।  
                
यही हमारे भारत की अनेकता में एकता की भावना राष्ट्र के लिए प्यार, अपनापन और बुराइयों में अच्छाई ढूंढ लेने की सोच है।

काल्पनिक 

मीनाक्षी ✍️ 


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रचनाएँ
डायरी और कलम
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अकेलापन भी दूर हो जाता है, अगर साथ में डायरी और कलम हो....
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🪔दीपोत्सव🪔

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दीप चाहे जो जले उजाला होना चाहिए घर तेरा हो या मेरा दीपावली होना चाहिए तू बाँट मेरी खुशी मैं तेरे गम बाँट लु त्यौहार तो है सबका पहले मैं और क्या पहले तू तू भी है हकदार हर खुशी का तेरी भी है दि

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बाल दिवस

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नए वर्ष की शुभकामनाएं

1 जनवरी 2023
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नए साल के स्वागत में नई खुशी नई उमंगे लाएंगे हो नया सवेरा जीवन में निराशा के अंधेरों को मिलकर दूर भगाएंगे नए ख्वाब नए अरमान ले नूतन स्वप्न सजाएंगे भूल पुरानी बातों को नव उत्सव उत्साह मनाएंगे जिंदगी

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हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा का महत्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में काफी अधिक है। हिंदी भाषा भारत देश का गौरव है। भारत की राजभाषा

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राष्ट्रीय बालिका दिवस

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दोस्तों आइये आज हम बेटियों के ऊपर चर्चा करते हैं । आज भी हमारे देश में ऐसे सोच वाले लोग है जो बेटे और बेटी में भेदभाव करते हैं , क्योकि ऐसे लोगों को लगता है कि बेटे पूरी जिंदगी हमारे साथ रहकर हमारी से

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बिना शर्त का प्रेम

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दुर्बलता, उदासीनता और निराशा जैसे उसके जीवन का अंग बन चुका था, ना जाने क्यों इतनी प्रसिद्धि पाने के बाद जिस कारण से कुछ दिनों से जिस भी प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लेता, उसे निराशा ही हाथ लगती है,

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जीवन में कुछ नया

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जीवन में कुछ नया नया हो तो कुछ बात अच्छी लगे पुराने ज़ख्मों पे मरहम नया लगे तो जीवन में कुछ अच्छा लगे,किसी को खाना हज़म नहीं तो किसी को रोटी न मिलेये भेद अगर मिट जाये तो जीवन में कुछ अच्छा लगे,द

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नवरात्र

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माँ एक बार फिर सेधरती पर उतरकर देखोआप देख नहीं पाओगी डरी सहमी बेटियों के चेहरेनहीं मिटा पाओगी आप भी मानस पटल पर अंकितउन बेटियों के जख्म गहरेमाँ आप उन्हें गोद में लेकरसहला लोगी थोड़ी देर बहला

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रामनवमी

30 मार्च 2023
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केवट की भक्ति भरी गगरीफल मीठे बेर लिए शबरी,है धन्य अयोध्या की नगरी,अवसादों में जब घिरना,न्याय नीति पर राम अड़े,संग सखा वीर हनुमान खड़े,पशु-पक्षी तक हैं युद्ध लड़े,धन्य हुआ उनका तरना,जो राम नाम रघुराई&

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मजदूर दिवस

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मजदूर हूं मैं मजबूर नहीं हां मैं तुमसा नशे में चूर नहीं,निर्माता तो हूं मैं इस जग का,है फक्र मुझे कुछ गुरुर नहीं ईश्वर का दिया वरदान हूं मैं, हर प्रलय परतः निर्माण हूं मैं,नल नील सा बन

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ओडिशा ट्रेन दुर्घटना

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किसी की आशा उम्मीदें और वह प्यार रहा होगा, रही होगी किसी की छुट्टी, जुदाईया इतवार रहा होगा, किसी को मिलन की आस होगी तो किसी को अपनों से मिलने का इंतजार रहा होगा,घर से कोई अपने

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मातृ दिवस 🙏🏻

14 मई 2023
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माँ, जननी, अम्मा, अम्मी, आईइन शब्दों मे पूरी दुनिया समाई अपने पराए सारे रिश्ते धोखा दे देएक मां ही है जो अपने आंचल की छांव दे।जिस दिन मैं धीमी स्वर में बात करूंपता नही मां कैसे पहचान लेते है&nbsp

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विश्व पर्यावरण दिवस

5 जून 2023
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वृक्षारोपण कर करे ,उत्सव की शुरुआत , पर्यावरण की सुरक्षा ,सबसे पहली बात । 🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳नदियाँ मुझसे कह रही,चुभता एक सवाल , कहाँ गया पर्यावरण, जीना हुआ मुहाल । 🌲🌲🌲🌲🌲

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उत्सव

8 जून 2023
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जिंदगी को कुछ इस तरह से सजाए,हर दिन नए नए उत्सव मनाए ,चलो सबको मिलकर गले से लगाए ,मधुर स्वर सरगम का साज फैलाए,हर दिन दिवाली के दीप जलाए,होली के रंगों से सबको हम रंगाए,सारे ग़म भुला कर खुशी को अपनाए ,ग

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Father's day 💐

18 जून 2023
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मैं अपने पापा की प्यारी सी परी हूंपापा अपने जज्बातो को आँसूओ मे बहा नहीं पाते पापा हैं न प्यार जता नहीं पाते...मेरी खुशी में खुश बहुत होते हैं लेकिन खुशी जता नहीं पाते पापा है

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Friendship day

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रक्षाबंधन

29 अगस्त 2023
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यह भाई बहन का रिश्ता बडा प्यारा हैयह ना बधां होता किसी डोर से हैयह दिल से दिल का रिश्ता हैमन को उमंग से भरने का किस्सा हैना इसमें कोई छोटा बड़ा हैयह दोस्ती का एक रिश्ता हैहां इसमें नोकझोंक भी हो

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी

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मिलता है सच्चा सुख केवल कृष्ण तुम्हारे चरणों में, यह विनती है पलपल छिन छिनरहे ध्यान तुम्हारे चरणों में, मिलता है सच्चा सुख केवल कृष्ण तुम्हारे चरणों में,चाहे संकट ने आ घेरा हो&nbsp

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अपनों में अपनों से तिरस्कृत, इसी व्यथा में जीती हिंदी भाषा पुरातनों से मिली तू स्वर्ण धरोहर,छोड़ तुझे अपनाएं पीतल और कासा पाठ्यक्रमों में भी खूब पढ़ाए, अंग्रेजी जिंगल बेल पहेली&nbs

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कभी अपने आप में शून्य नजर आती है बेटियां !कभी अपने आप को भीड़ में पाती है बेटियां!कभी किसी गिरे को संभालती है बेटियां!कभी किसी टूटी पतंग सी खुद गिर जाती है बेटियां!कभी अपने आप को बोझ सा पाती है बेटिया

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श्री राम नाम का महत्व है क्या, हर संघर्ष में राम-रामत्व है क्या,कभी अगर तुम संकट में फंस जाओ,एक बार रामचरितमानस पढ़ जाओ।श्री राम नाम रघुराई है। हमारे जीवन की यही दवाई है। सारे महामंत्र

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26 जनवरी 2024
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26 जनवरी 2013,,, हां बिल्कुल ठीक 11 वर्ष पूर्व नौकरी के शुरुआती कुछ साल काटने के बाद, संडे और पब्लिक हॉलिडे के चक्कर से ऊब चुका मेरा विद्यार्थी जीवन फिर से एक बार उन दिनों में लौट जाना चाहता था, जहां

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एक दोस्ती ऐसी भी..

3 अगस्त 2024
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अरे यह क्या, भला यह कैसे संभव है, ऐसा तो नहीं हो सकता। लेकिन मंडल साहब माता बंगलामुखी के अनन्य भक्त होने के साथ-साथ अदृश्य शक्तियों को बहुत मानते थे। लेकिन आज तो जैसे उन्होंने अपने खुली आंखों से चमत्क

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अनेकता में एकता 🇮🇳

15 अगस्त 2024
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सोनम..... सोनम.......सुनकर तुम्हारा नाम सोनम ही है ना? सुनकर अचानक वह चौंक पड़ी, पलट कर देखा लेकिन उसके पहले वह कुछ समझ पाती एक जोरदार झटके ने उसे अपनी ओर खींच लिया। &nb

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दर्द भरी पुकार

16 अगस्त 2024
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बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा अब बंद करो, क्या कुछ पल के लिए सोना उसकी इतनी बड़ी भुल है, क्या सच में बेटियां स्वतंत्र है, इसका क्या कोई जवाब है? यह कैसी चीत्कार है कैसी दर्द भरी पुकार है इसमें वेदना

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नारी का सम्मान

24 अगस्त 2024
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दुनिया कहती है अक्सर ये कुछ नहीं आता उस महिला को, झूठी रश्मों में बंधी है धारी तलवार है वो महिला, संसार का यही दस्तूर है अबला नारी का कौन हुआ हो जाता शून्य वजूद है उसका जब जब जो भी मौन हुआ, अगर वो श

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी

26 अगस्त 2024
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कब तक भटके श्याम मेरे इस कालचक्र के पथ पर काले बादल घुमड़ रहे हैं भावों के अध्यात्मिक रथ पर।छाया चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा हमें अर्जुन सा पथ दरसा दो खाली पड़ी मन की भूमि,निर्म

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हमारा सतरंगी प्यार

30 अगस्त 2024
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मैं हृदय की पीड़ा सी तुम इश्क सुहाने से मैं प्रेम में खोयी सी तुम मस्त मौला से मैं भावना में बही सी तुम भाव के स्वप्न से।मैं पौधो में कांटो सी तुम प्रेमरस कलिका सेम

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सपनों की किताब

2 सितम्बर 2024
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मैं तुम्हारे सपनों की किताब जैसे हुं,तुम कभी मुझे एहसासों में पढ़ो,तुम कभी मुझे जज्बातों में पढ़ो ,तुम हर शब्द में मुझे पढ़ो,मैं तुम्हारे सपनों की किताब जैसे हुं।तुम कभी मेरी खुशी को पढ़ो,तुम कभी मेरे

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शिक्षक दिवस

5 सितम्बर 2024
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गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेरों शुभकामनाएं🙏💐भारत में सबसे पहले शिक्षक दिवस 5 सितंबर, 1962 को मनाया गया था।

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हिंदी दिवस

13 सितम्बर 2024
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हिंदी तु भाग्यशालीजन-जन की परिभाषामुख वाचाल क्यानेताओं को भी तुमसे आशासंस्कृत वृहद रूपजिसे जनमानस ने अपनायासमस्त भाषाओं को समेट अपने मेंएक नया रूप दिखलायाक्या शास्त्र क्या उपन्यासतेरी सेवा में किये कव

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पुरानी यादें

14 सितम्बर 2024
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कभी हमें भी याद किया तो होता,हमारे भी जज़्बात को पढ़ा तो होता।तुमसे है यह शिकायत शिकवा हमें,हमसे कभी बात करके देखा तो होता।वो गुजरी पुरानी यादें मोहब्बत की,कभी प्यार का इज़हार किया तो होता।आके द

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समय और जीवन

16 सितम्बर 2024
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अमनोल है ये जीवन और समय आज जीने का मौका है इस जिन्दगी को खुलकर जी लो,तुमको किसने रोका है, यही जीवन की एक यात्रा है, जिंदगी एक सांस का झौंका है,न जानें किस समय ये सांस रुख जाये,ना इ

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