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दृश्य ३

18 फरवरी 2022

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 (प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रही
है इतिहास
नेपथ्य के भीतर से गाता है।) 

  

इतिहास के गीत 

 

सुधा-सर का करते सन्धान। 

उरुवेला में यहीं कहीं विचरे गौतम गुणवान! 

बैठे तरुतल यहीं लगा मुनि सहस्त्रार में ध्यान, 

यहीं मिला बुद्धत्व, तथागत हुए यहीं भगवान। 

सुधा-सर का करते सन्धान। 

  

 

कल्पने! पूछ न कोई बात! 

यह मिट्टी वह, खिला धर्म का कमल जहाँ अवदात, 

फूटा जहाँ मृदुल करुणा का पहला दिव्य प्रपात। 

कल्पने! पूछ न कोई बात! 

  

कल्पना का गीत 

कौन है इस गह्वर के पार? 

रजकण में यह लोट रहा किस गरिमा का श्रृंगार? 

कौन है इस गह्वर के पार? 

  

धूल फूल-सी मह-मह करती, 

चारों ओर सुरभि है भरती, 

उपवन था वह कौन यहाँ जो हुआ सुलग कर क्षार? 

कौन है इस गह्वर के पार? 

  

जन-रव का मुकुलित कल-कल है, 

तिमिर-कक्ष में कोलाहल है, 

झनक रही है अन्धकार में यह किसकी तलवार? 

कौन है इस गह्वर के पार? 

  

दीपित देश-विदेश अभी भी, 

विभा विमल है शेष अभी भी, 

जला गया यह अमर धर्म का दीपक कौन उदार? 

कौन है इस गह्वर के पार? 

(नेपथ्य के भीतर से इतिहास गाता है।) 

  

इतिहास के गीत 

  

 

कल्पने! धीरे-धीरे बोल! 

पग-पग पर सैनिक सोता है, पग-पग सोते वीर, 

कदम-कदम पर यहाँ बिछा है ज्ञानपीठ गंभीर। 

यह गह्वर प्राचीन अस्तमित गौरव का खँडहर है! 

सूखी हुई सरिता का तट यह उजड़ा हुआ नगर है। 

एक-एक कण इस मिट्टी का मानिक है अनमोल। 

कल्पने! धीरे-धीरे बोल! 

  

 

यह खँडहर उनका जिनका जग 

कभी शिष्य और दास बना था, 

यह खँडहर उनका, जिनसे 

भारत भू-का इतिहास बना था। 

  

कहते हैं पा चन्द्रगुप्त को 

मगध सिन्धुपति-सा लहराया, 

राह रोकने को पश्चिम से 

सेल्यूकस सीमा पर आया। 

  

मगधराज की विजय-कथा सुन 

सारा भारतवर्ष अभय हो, 

विजय किया सीमा के अरि को, 

राजा चन्द्रगुप्त की जय हो। 

(पट-परिवर्तन) 

  

   

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रचनाएँ
इतिहास के आँसू
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रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये।
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मंगल-आह्वान

18 फरवरी 2022
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भावों के आवेग प्रबल  मचा रहे उर में हलचल।     कहते, उर के बाँध तोड़  स्वर-स्त्रोत्तों में बह-बह अनजान,  तृण, तरु, लता, अनिल, जल-थल को  छा लेंगे हम बनकर गान।     पर, हूँ विवश, गान से कैसे  जग

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मगध-महिमा (पद्य-नाटिका)

18 फरवरी 2022
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 दृश्य १  (नालन्दा का खँडहर गैरिक वसन पहने हुए कल्पना खँडहर के  भग्न प्रचीरों की ओर जिज्ञासा से देखती हुई गा रही है।)     कल्पना का गीत     यह खँडहर किस स्वर्ण-अजिर का?  धूलों में सो रहा टूटकर

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इतिहास के गीत

18 फरवरी 2022
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 १  कल्पने! धीरे-धीरे गा!  यह टूटा प्रासाद सिद्धि का, महिमा का खँडहर है,  ज्ञानपीठ यह मानवता की तपोभूमि उर्वर है।  इस पावन गौरव-समाधि को सादर शीश झुका।  कल्पने! धीरे-धीरे गा!     २  मैं बूढ़ा

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दृश्य २

18 फरवरी 2022
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 (उरुवेला की भूमि बरगद के पेड़ के नीचे कृशकायगौतम विराजमान हैं,  सामने सोने की थाल में खीर परोसी हुई है आरतीजल रही है धूप का धुआँ  उठ रहा है सामने सुजाता प्रार्थना कर रही है।)    सुजाता का गीत   

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दृश्य ३

18 फरवरी 2022
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 (प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रहीहै इतिहास नेपथ्य के भीतर से गाता है।)     इतिहास के गीत  १  सुधा-सर का करते सन्धान।  उरुवेला में यहीं कहीं विचरे गौतम गुणवान!  बैठे तरुतल यहीं लगा मु

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दृश्य ४

18 फरवरी 2022
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 (प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रही है इतिहास  नेपथ्य के भीतर से गाता है।)     इतिहास के गीत  १  सुधा-सर का करते सन्धान।  उरुवेला में यहीं कहीं विचरे गौतम गुणवान!  बैठे तरुतल यहीं लगा

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दृश्य ५

18 फरवरी 2022
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(चन्द्रगुप्त का राजदरबार सेल्यूकस, सेल्यूकस की युवती कन्या  और मेगस्थनीज एक ओर बैठे हैं चन्द्रगुप्त, चाणक्य और सभासद्  यथास्थान। चौथे दृश्य वाले नागरिक भी आते हैं।)     एक नागरिक (आपस में कानोंकान

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दृश्य ६

18 फरवरी 2022
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(प्रथम दृश्य की आवृत्ति सामने कल्पना खड़ी सुन रही  है नेपथ्य के भीतर से इतिहास गाता है।)     इतिहास के गीत     १  कल्पने! तब आया वह काल।  उठा जगत में धर्म-तिलक-दीपित भारत का भाल  फिलस्तीन, ईरा

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दृश्य ७

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 (कलिंग की युद्धभूमि लाशों से पटी हुई धरती पर फीकी चाँदनीफैली हुई है घायल कराह रहे हैं, रह-रह कर पानी! पानी! की आवाजआती है। एक ओर जरा ऊॅंची जमीन पर मगध की राजपताका निष्कम्प  झुकी हुई है, मानों, वह शर

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दृश्य ८

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(प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रही है  नेपथ्य के भीतर से इतिहास है गाता।)    इतिहास के गीत    १  कल्पने! जीवन के उस पार।  चमक उठा आँखों के आगे एक नया संसार।  प्राणों की जब सुनी प्राण

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पाटलिपुत्र की गंगा से

18 फरवरी 2022
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संध्या की इस मलिन सेज पर  गंगे ! किस विषाद के संग,  सिसक-सिसक कर सुला रही तू  अपने मन की मृदुल उमंग?     उमड़ रही आकुल अन्तर में  कैसी यह वेदना अथाह ?  किस पीड़ा के गहन भार से  निश्चल-सा पड़ ग

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मिथिला

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मैं पतझड़ की कोयल उदास,  बिखरे वैभव की रानी हूँ  मैं हरी-भरी हिम-शैल-तटी  की विस्मृत स्वप्न-कहानी हूँ।     अपनी माँ की मैं वाम भृकुटि,  गरिमा की हूँ धूमिल छाया,  मैं विकल सांध्य रागिनी करुण, 

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वैशाली

18 फरवरी 2022
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ओ भारत की भूमि वन्दिनी! ओ जंजीरोंवाली!  तेरी ही क्या कुक्षि फाड़ कर जन्मी थी वैशाली?     वैशाली! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का,  वैशाली! अतीत गह्वर में गुंजन तलवारों का।     वैशाली! जन का प्रत

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बोधिसत्त्व

18 फरवरी 2022
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 सिमट विश्व-वेदना निखिल बज उठी करुण अन्तर में,  देव ! हुंकरित हुआ कठिन युगधर्म तुम्हारे स्वर में ।  काँटों पर कलियों, गैरिक पर किया मुकुट का त्याग  किस सुलग्न में जगा प्रभो ! यौवन का तीव्र विराग ? 

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कलिंग-विजय

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(1)  युद्ध की इति हो गई; रण-भू श्रमित, सुनसान;  गिरिशिखर पर थम गया है डूबता दिनमान--     देखते यम का भयावह कृत्य,  अन्ध मानव की नियति का नृत्य;     सोचते, इस बन्धु-वध का क्या हुआ परिणाम?  विश्

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वसन्त के नाम पर

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 १.  प्रात जगाता शिशु-वसन्त को नव गुलाब दे-दे ताली।  तितली बनी देव की कविता वन-वन उड़ती मतवाली।     सुन्दरता को जगी देखकर,  जी करता मैं भी कुछ गाऊॅं;  मैं भी आज प्रकृति-पूजन में,  निज कविता के

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वैभव की समाधि पर

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हँस उठी कनक-प्रान्तर में  जिस दिन फूलों की रानी,  तृण पर मैं तुहिन-कणों की  पढ़ता था करुण कहानी।     थी बाट पूछती कोयल  ऋतुपति के कुसुम-नगर की,  कोई सुधि दिला रहा था  तब कलियों को पतझर की।   

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