दृश्य १
(नालन्दा का खँडहर गैरिक वसन पहने हुए कल्पना खँडहर के
भग्न प्रचीरों की ओर जिज्ञासा से देखती हुई गा रही है।)
कल्पना का गीत
यह खँडहर किस स्वर्ण-अजिर का?
धूलों में सो रहा टूटकर रत्नशिखर किसके मन्दिर का?
यह खँडहर किस स्वर्ण-अजिर का?
यह किस तापस की समाधि है?
किसका यह उजड़ा उपवन है?
ईंट-ईंट हो बिखर गया यह
किस रानी का राजभवन है?
यहाँ कौन है, रुक-रुक जिसको
रवि-शशि नमन किये जाते हैं?
जलद तोड़ते हाथ और
आँसू का अर्ध्य दिये जाते हैं?
प्रकृति यहाँ गम्भीर खड़ी
किसकी सुषमा का ध्यान रही कर?
हवा यहाँ किसके वन्दन में
चलती रुक-रुक, ठहर-ठहर कर?
है कोई इस शून्य प्रान्त में
जो यह भेद मुझे समझा दे,
रजकण में जो किरण सो रही
उसका मुझको दरस दिखा दे?
(नेपथ्य से इतिहास उत्तर देता है।)