(प्रथम दृश्य की आवृत्ति सामने कल्पना खड़ी सुन रही
है नेपथ्य के भीतर से इतिहास गाता है।)
इतिहास के गीत
१
कल्पने! तब आया वह काल।
उठा जगत में धर्म-तिलक-दीपित भारत का भाल
फिलस्तीन, ईरान, मिस्त्र, तिब्बत, सिंहल, जापान,
चीन, श्याम, सबने भारत के पद पर से गुरु मान।
भींग गई करुणा के जल से धरणी हुई निहाल।
कल्पने! तब आया वह काल।
२
करुणा की नई झन्कार।
साधना की बीन से निकली अधीर पुकार।
स्नेह मानव का विभूषण, स्नेह जीवन-सार,
सत्य को नर ने निहारा, स्यात् पहली बार।
फट गया अन्तर जयी का देख नर-संहार,
जीतकर भी झुक गयी संकोच से तलवार।
करुणा की नई झन्कार।
३
एक बार कलिंग की करतूत से हो क्रुद्ध,
है कथा कि अशोक कर बैठे भयानक युद्ध।
जय मिली, पर, देख मृतकों से भरा रणप्रान्त,
हो उठा सम्राट् का भावुक हृदय उद्भ्रान्त।
देखकर रणभूमि को नर के रुधिर से लाल,
रात भर रोते रहे निज कृत्य पर भूपाल।
(पट-परिवर्तन)