(प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रही है
नेपथ्य के भीतर से इतिहास है गाता।)
इतिहास के गीत
१
कल्पने! जीवन के उस पार।
चमक उठा आँखों के आगे एक नया संसार।
प्राणों की जब सुनी प्राण ने करुणा-सिक्त पुकार,
चू करके गिर गयी मुष्टि से स्वयं स्त्रस्त तलवार।
कल्पने! जीवन के उस पार।
२
दया की हुई जयश्री चेरी।
सकल विश्व में नृप अशोक की बजी धर्म की भेरी।
मैत्री ने मन पर मनुष्य के नयी तूलिका फेरी।
जीवन के पावन स्वरूप की करूणा हुई चितेरी।
दया की हुई जयश्री चेरी।
३
कल्पने! यह संदेश हमारा।
बसता कहीं परिधि से आगे जीवन का ध्रुवतारा।
पा न सके हम उसे सतह के ऊपर कोलाहल में,
मिला हमें वह जब हम डूबे अपने हृदय-अतल में।
चन्द्रगुप्त-चाणक्य समर्थक-रक्षक रहे स्वजन के,
हीन बन्ध को तोड़ हो गये पर, अशोक त्रिभुवन के।
दो कूलों के बीच सिमटकर सरिताएँ बहती हैं,
सागर कहते उसे, दीखता जिसका नहीं किनारा।
कल्पने! यह संदेश हमारा।
(पटाक्षेप)