(प्रथम दृश्य की आवृत्ति कल्पना खड़ी सुन रही है इतिहास
नेपथ्य के भीतर से गाता है।)
इतिहास के गीत
१
सुधा-सर का करते सन्धान।
उरुवेला में यहीं कहीं विचरे गौतम गुणवान!
बैठे तरुतल यहीं लगा मुनि सहस्त्रार में ध्यान,
यहीं मिला बुद्धत्व, तथागत हुए यहीं भगवान।
सुधा-सर का करते सन्धान।
२
कल्पने! पूछ न कोई बात!
यह मिट्टी वह, खिला धर्म का कमल जहाँ अवदात,
फूटा जहाँ मृदुल करुणा का पहला दिव्य प्रपात।
कल्पने! पूछ न कोई बात!
कल्पना का गीत
कौन है इस गह्वर के पार?
रजकण में यह लोट रहा किस गरिमा का श्रृंगार?
कौन है इस गह्वर के पार?
धूल फूल-सी मह-मह करती,
चारों ओर सुरभि है भरती,
उपवन था वह कौन यहाँ जो हुआ सुलग कर क्षार?
कौन है इस गह्वर के पार?
जन-रव का मुकुलित कल-कल है,
तिमिर-कक्ष में कोलाहल है,
झनक रही है अन्धकार में यह किसकी तलवार?
कौन है इस गह्वर के पार?
दीपित देश-विदेश अभी भी,
विभा विमल है शेष अभी भी,
जला गया यह अमर धर्म का दीपक कौन उदार?
कौन है इस गह्वर के पार?
(नेपथ्य के भीतर से इतिहास गाता है।)
इतिहास के गीत
१
कल्पने! धीरे-धीरे बोल!
पग-पग पर सैनिक सोता है, पग-पग सोते वीर,
कदम-कदम पर यहाँ बिछा है ज्ञानपीठ गंभीर।
यह गह्वर प्राचीन अस्तमित गौरव का खँडहर है!
सूखी हुई सरिता का तट यह उजड़ा हुआ नगर है।
एक-एक कण इस मिट्टी का मानिक है अनमोल।
कल्पने! धीरे-धीरे बोल!
२
यह खँडहर उनका जिनका जग
कभी शिष्य और दास बना था,
यह खँडहर उनका, जिनसे
भारत भू-का इतिहास बना था।
कहते हैं पा चन्द्रगुप्त को
मगध सिन्धुपति-सा लहराया,
राह रोकने को पश्चिम से
सेल्यूकस सीमा पर आया।
मगधराज की विजय-कथा सुन
सारा भारतवर्ष अभय हो,
विजय किया सीमा के अरि को,
राजा चन्द्रगुप्त की जय हो।
(पट-परिवर्तन)