शादी से ठीक तीन दिन पहले हल्दी की रस्म का आयोजन दोनों घरों में अलग-अलग किया गया। यह एक परंपरा थी कि शादी से पहले दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे से नहीं मिल सकते।
सुबह का समय था। "शर्मा निवास" पीले और सफेद गेंदे के फूलों से सजा हुआ था। आंगन में हरे पत्तों का मंडप बनाया गया था, जिसके नीचे प्रभात को बैठने के लिए एक चौकी रखी गई थी।
रिया घर की कमान संभाले हुए थी।
"भैया, याद रखना, हल्दी खत्म होते-होते तुम पहचान में नहीं आओगे।" उसने चिढ़ाते हुए कहा।
"रिया, दूल्हे को थोड़ा सम्मान मिलना चाहिए," प्रभात ने हँसते हुए कहा।
"सम्मान बाद में देंगे। अभी हल्दी का मज़ा लो।"
महिलाएँ मंगल गीत गा रही थीं:
"हल्दी लगाओ जीवा ने, सास-ससुर की पावन छाया में..."
रिया और उसकी सहेलियाँ हल्दी का थाल लेकर आईं।
"पहले कौन लगाएगा?" रिया ने सहेलियों से पूछा।
"मैं!" उसकी सबसे करीबी दोस्त ने तुरंत हाथ बढ़ाया।
"नहीं, पहले मैं लगाऊँगी," रिया ने थाल से हल्दी उठाकर प्रभात की नाक पर लगा दी।
"रिया!" प्रभात ने हँसते हुए उसकी शरारत को सहा।
धीरे-धीरे घर के सभी बड़े-बुजुर्गों ने हल्दी लगाई। हल्दी के बाद रस्म यह थी कि दूल्हे को हल्दी का पानी डालकर नहलाया जाए। रिया ने बाल्टी भरकर पानी लाया और कहा,
"भैया, तैयार हो जाओ। यह पानी तुम्हारी खुशियों का आशीर्वाद है।"
"रिया, धीरे डालना!" प्रभात ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
"धीरे? और मज़ा कहाँ रहेगा?" रिया ने बाल्टी का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया।
उधर अरुणिमा के घर का आँगन भी सजे-धजे रंगों से भरा हुआ था। हल्दी की रस्म के लिए सब तैयार थे। अरुणिमा को एक पीले रंग की साड़ी पहनाई गई, जो उसे और भी खूबसूरत बना रही थी। उसकी सहेलियाँ उसे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थीं।
"अरुणिमा, सुनो न, प्रभात का नाम कैसे बुलाती हो?" एक सहेली ने चुटकी ली।
"तुम्हें जानने की बहुत जल्दी है, लेकिन मुझे कुछ नहीं बताना।" अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"अच्छा, शादी के बाद तो सबको पता चल ही जाएगा," दूसरी सहेली ने हँसते हुए कहा।
हल्दी की थाली अरुणिमा की माँ ने उठाई और प्यार से कहा,
"बेटा, यह रस्म हमारे आशीर्वाद का प्रतीक है। हमेशा खुश रहो।"
उन्होंने हल्दी उसके माथे और गालों पर लगाई। इसके बाद बारी-बारी से बाकी लोगों ने हल्दी लगाई।
सहेलियाँ थोड़ी शरारत के मूड में थीं। उन्होंने अरुणिमा के बालों में हल्दी लगा दी।
"अरे! यह क्या कर दिया?" अरुणिमा ने अपनी साड़ी के पल्लू से बाल साफ करते हुए कहा।
"बस शादी से पहले की मस्ती है," सहेलियों ने हँसते हुए जवाब दिया।
रस्मों के दौरान प्रभात और अरुणिमा दोनों के मन में एक-दूसरे की यादें
उमड़-घुमड़ रही थीं। अरुणिमा को अपने दोस्तों के बीच प्रभात की शरारतें याद आ रही थीं, तो वहीं प्रभात को हल्दी लगाते समय अरुणिमा का हँसता हुआ चेहरा।
हल्दी की रस्म से उठकर अरुणिमा थोड़ी देर के लिए अपने कमरे में चली गई। बाहर सबकी हँसी-खुशी की आवाजें आ रही थीं, लेकिन उसके मन में एक पुरानी याद उभर आई। वह खिड़की के पास खड़ी होकर हल्के मुस्कान के साथ अपनी बहन सिया के साथ बिताए हुए पलों को याद करने लगी।
सिया अक्सर मजाक में कहा करती थी,
"दीदी, आपकी हल्दी की रस्म वाले दिन मैं आपको सिर से पैर तक हल्दी में रंग दूँगी। कोई मुझे रोकेगा भी नहीं।"
अरुणिमा हँसते हुए उसे कहती,
"सिया, तुमने मुझे कभी चैन से रहने नहीं दिया। शादी वाले दिन भी नहीं छोड़ोगी?"
सिया चहककर कहती,
"दीदी, आपकी हल्दी की रस्म का असली मज़ा मैं ही लूँगी। और वैसे भी, मैं आपकी सबसे खास बहन हूँ।"
यह याद करते हुए अरुणिमा की आँखें भर आईं। वह सोचने लगी कि काश आज सिया यहाँ होती। उसकी शरारतें और हँसी इस हल्दी की रस्म को और भी खास बना देतीं।
अरुणिमा की माँ ने जब देखा कि वह काफी देर से कमरे में है, तो वह धीरे-धीरे अंदर आईं।
"बेटा, यहाँ क्या कर रही हो? सब बाहर तुम्हें बुला रहे हैं।"
अरुणिमा ने हल्का सा सिर झुकाकर कहा,
"माँ, मुझे सिया की याद आ रही है। उसने कहा था कि मेरी हल्दी के दिन मुझे हल्दी से नहलाएगी। पर आज वो यहाँ नहीं है।"
यह सुनकर माँ की आँखें भी भर आईं। उन्होंने अरुणिमा को गले लगाते हुए कहा,
"बेटा, मैं जानती हूँ कि सिया को लेकर तुम्हारे दिल में बहुत खालीपन है। लेकिन विश्वास करो, वह जहाँ भी है, वह तुम्हें देखकर बहुत खुश हो रही होगी।"
अरुणिमा ने हल्के आँसू पोंछते हुए कहा,
"माँ, मुझे सिया की शरारतों की बहुत याद आ रही है। उसके बिना सब अधूरा सा लगता है।"
माँ ने उसके गाल पर हल्दी का स्पर्श करते हुए कहा,
"सिया तुम्हारे हर खुशी के पल में शामिल है, बेटा। वह हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी—तुम्हारी मुस्कान में, तुम्हारे हर कदम में।"
माँ ने प्यार से कहा,
"सिया ने कहा था कि वह तुम्हें हल्दी से नहलाएगी, है न? चलो, मैं उसकी जगह तुम्हें हल्दी लगाऊँगी। और तुम देखना, उसकी हर शरारत, हर खुशी तुम्हारे जीवन में नई रोशनी लेकर आएगी।"
माँ ने अरुणिमा के माथे पर हल्दी लगाई और कहा,
"देखो, यह सिया का आशीर्वाद है। अब तुम मुस्कुराओ। अगर तुम उदास रहोगी, तो सिया भी उदास हो जाएगी।"
अरुणिमा ने माँ की बात सुनी और धीरे-धीरे उसकी मुस्कान लौट आई। उसने अपने आँसू पोंछते हुए कहा,
"माँ, आप सही कह रही हैं। सिया चाहती थी कि मैं हमेशा खुश रहूँ। अब मैं कोशिश करूँगी कि उसकी हर याद को अपनी ताकत बनाऊँ।"
अरुणिमा कमरे से बाहर आकर अपनी सहेलियों के पास बैठ गई उसके बाद अरुणिमा को भी हल्दी के पानी से नहलाया गया। उसकी एक सहेली ने चिढ़ाते हुए कहा,
"अरुणिमा, अब तुम्हारा मेकअप करने का कोई फायदा नहीं। हल्दी ने सब हटा दिया।"
"बस तुम मुझे परेशान करना बंद करो," अरुणिमा ने हँसते हुए कहा।
हल्दी की सारी विधि के बाद, रिया ने आकर प्रभात से कहा,
"भैया, भाभी को हल्दी का एक कपड़ा भेजना है। यह रस्म है, ताकि उनका आशीर्वाद पूरा हो।"
"तो भेज दो। और सुनो, यह भी कहना कि मुझे बहुत मिस कर रही होंगी," प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ऐसा तो मैं बिल्कुल नहीं कहने वाली। तुम्हारा संदेश सिर्फ हल्दी ही भेजेगी!"
दूसरी ओर, अरुणिमा की सहेली ने हल्दी का कपड़ा लेकर कहा,
"भाभी, यह तुम्हारे होने वाले पति का आशीर्वाद है। अब तुम भी जवाब भेजो।"
अरुणिमा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"जवाब भेजने की जरूरत नहीं। वो जानते हैं कि मैं भी उन्हें बहुत याद कर रही हूँ।" इस तरह से दोनों परिवारों में हल्दी की रस्म पूरी हुई।
शाम को प्रभात की माँ, पूजा के थाल के पास बैठी थीं।
"सब अच्छे से हुआ, पर चिंता मन से जाती ही नहीं।"
"माँ, आप क्यों चिंता करती हैं?" प्रभात ने उनके पास आकर पूछा।
"पंडित जी की बात याद आती है, तो मन बेचैन हो उठता है।"
"माँ, आपकी दुआ और अरुणिमा का प्यार मेरे साथ है। भगवान ने जो लिखा है, उसे कोई बदल नहीं सकता। बस आप खुश रहिए।"
प्रभात की माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
"तुम्हारी बातें दिल को तसल्ली तो देती हैं। पर माँ का दिल है, थोड़ा कमजोर होता है।"
"माँ, अब आप सिर्फ मुस्कुराइए। यह हमारी जिंदगी का सबसे खूबसूरत समय है।" फिलहाल के लिए तो प्रभात ने अपनी माँ को समझा लिया था।
कुछ इस प्रकार हल्दी की रस्मों ने दोनों घरों को खुशियों और मस्ती से भर दिया। प्यार, परंपरा, और रिश्तों की गर्मजोशी ने इस आयोजन को और भी खास बना दिया। अब शादी के दिन की तैयारियाँ पूरे जोरों पर थीं।
आगे की कहानी अगले भाग में.....