"क्या कर रही हो?" दूसरी तरफ से प्रभात की आवाज आई, जिसमें एक अलग सी बेचैनी महसूस हो रही थी।
"कुछ नहीं, बस आराम कर रही हूँ। और तुम?" अरुणिमा ने पूछा।
"तुम्हें मिस कर रहा हूँ," प्रभात ने सीधे-सीधे कह दिया। उसकी आवाज में गहराई थी, जो अरुणिमा के दिल को छू गई।
अरुणिमा ने हल्का सा हँसते हुए कहा, "अभी तो शादी में बस कुछ ही दिन बचे हैं। इतनी जल्दी मिस करने लगे?"
"क्या करूँ? तुम्हें देखे बिना चैन नहीं आता। लगता है जैसे ये शादी की रस्में भी साजिश कर रही हैं, हमें अलग रखने के लिए," प्रभात ने शरारती अंदाज में कहा।
"अच्छा? तो फिर तुम ही बताओ, ये रस्में क्यों होती हैं?" अरुणिमा ने उसे छेड़ते हुए पूछा।
"शायद इसलिए कि हमें एहसास हो सके कि एक-दूसरे के बिना रहना कितना मुश्किल है। लेकिन यकीन मानो, ये फासला मेरे लिए सहना बहुत मुश्किल हो रहा है," प्रभात ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
अरुणिमा ने उसकी बात सुनकर प्यार भरी आवाज में कहा, "बस थोड़ा और इंतजार करो। शादी के बाद तो हर पल एक साथ ही रहेंगे।"
"अरे यार, इतनी बातों से मेरा दिल नहीं भरता। चलो न, वीडियो कॉल कर लो। तुम्हें देखना है," प्रभात ने मानो गुहार लगाई।
"नहीं, अब शादी तक का इंतजार करो। अभी मिलना या देखना मना है। यही तो रस्मों की खूबसूरती है," अरुणिमा ने थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा।
"तुम्हारी रस्मों का तो पता नहीं, पर ये इंतजार मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं है," प्रभात ने नाटकीय अंदाज में कहा।
अरुणिमा खिलखिलाकर हँस पड़ी, "प्रभात, तुम ड्रामा करने में रिया को भी पीछे छोड़ सकते हो।"
"ड्रामा नहीं, सच्ची बात कर रहा हूँ। तुम्हें देखकर ही सुकून मिलता है। खैर, अब जब तुमने कह दिया है कि इंतजार करना होगा, तो मान लेता हूँ। लेकिन याद रखना, मैं शादी वाले दिन तुम्हें इतना घूर-घूर कर देखूँगा कि सारा इंतजार वसूल हो जाएगा," प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम्हारी बातें सुनकर सच में हँसी भी आती है और अच्छा भी लगता है। लेकिन अब मैं तुम्हें और बिगाड़ नहीं सकती। शादी तक अच्छे बच्चे की तरह सब्र करो," अरुणिमा ने प्यार भरे लहजे में कहा।
"ठीक है, लेकिन एक बात बताओ। तुम मुझे मिस करती हो या नहीं?" प्रभात ने थोड़ा शरारती अंदाज में पूछा।
"तुम्हें जवाब चाहिए या झूठा दिलासा?" अरुणिमा ने चिढ़ाते हुए कहा।
"जवाब ही चाहिए।"
"तो सुनो, हाँ, मैं भी तुम्हें मिस कर रही हूँ। लेकिन ये शादी के पहले का इंतजार भी खास होता है। इसे यादगार बनाओ, शिकायतों से नहीं," अरुणिमा ने शांत और स्नेह भरी आवाज में कहा।
"ठीक है, डॉक्टर साहिबा। आपकी हर बात माननी ही पड़ती है," प्रभात ने झूठी हार मानने का नाटक किया।
"अच्छे लड़के बनो और सो जाओ। अब मैं फोन रख रही हूँ।"
"ठीक है। लेकिन याद रखना, मैं हर पल तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ। गुड नाइट," प्रभात ने कहा।
"गुड नाइट, प्रभात। और हाँ, ज्यादा मत सोचो, शादी वाले दिन थक जाओगे," अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा और फोन काट दिया।
फोन रखने के बाद अरुणिमा मुस्कुराई और उसकी आँखों में हल्की चमक आ गई। उसे एहसास हो रहा था कि यह दूरी और यह इंतजार, उनके प्यार को और गहरा बना रहा था। दूसरी ओर, प्रभात अपने कमरे में बैठा, उनके मिलन के हर पल को लेकर सपने बुन रहा था।
आगे की कहानी अगले भाग में......